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Photograph: (the sootr)
राजस्थान से जुड़े एक केस में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि यदि मामला केवल पैसों के लेन-देन का है, तो इसे आपराधिक मामला नहीं माना जा सकता।
इस मामले में एक दंपति को अग्रिम जमानत दी गई, जिसे राजस्थान हाई कोर्ट ने पहले नकारा था। इस फैसले से दंपति को राहत मिली है और अदालत ने स्पष्ट किया कि पुलिस का काम केवल वसूली करना नहीं है, बल्कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना है।
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क्या था पूरा मामला?
यह मामला एक शख्स द्वारा शिकायत दर्ज कराने के बाद सामने आया। उसने आरोप लगाया था कि उसने एक दंपति को 16 लाख रुपए में प्लाईवुड (लकड़ी का सामान) बेचा था, लेकिन उनमें से केवल 3.5 लाख रुपए ही दिए गए थे और शेष 12.59 लाख रुपए नहीं दिए गए। इस पर शिकायतकर्ता ने धोखाधड़ी, विश्वासघात और साजिश के आरोप लगाते हुए पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी। मामला कोर्ट में गया और राजस्थान हाई कोर्ट ने पहले अग्रिम जमानत देने से मना कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को सख्त तरीके से लिया और कहा कि जब मामला सिर्फ पैसों के लेन-देन है, तो इसे आपराधिक मामला बनाना गलत है। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने कोर्ट में कहा कि अगर किसी सिविल मामले को आपराधिक केस बना दिया जाए, तो हर लेन-देन जेल जाने का कारण बन सकता है। कोर्ट ने यह भी साफ किया कि पुलिस का काम वसूली करना नहीं है, बल्कि कानून-व्यवस्था बनाए रखना है।
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सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट का आदेश पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने इस विशेष मामले में हाई कोर्ट के जमानत से इनकार करने वाले आदेश को पलटते हुए दंपति को अग्रिम जमानत दे दी। कोर्ट ने यह निर्णय दिया कि जब मामला पैसे के लेन-देन से जुड़ा हो, तो इसमें पुलिस की वसूली का कोई सवाल नहीं उठता। इसके बाद राज्य सरकार और पुलिस को यह समझाया गया कि वे किसी भी सिविल मामले को आपराधिक केस में तब्दील नहीं कर सकते।
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राजस्थान पुलिस और सरकार के लिए संदेश
सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान पुलिस और राजस्थान सरकार को एक कड़ा संदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि वसूली के लिए पुलिस का इस्तेमाल करना गलत है और इसे केवल कानून-व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से काम में लिया जाना चाहिए। इस फैसले से यह भी साफ हो गया कि पुलिस का काम न्यायिक प्रक्रिया के अनुरूप चलना चाहिए, न कि सिविल मामलों में हस्तक्षेप करना।
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