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Photograph: (The Sootr)
भारत के लोकतांत्रिक संविधान में अभिव्यक्ति की आजादी नागरिकों का एक महत्वपूर्ण अधिकार है। इस अधिकार का उल्लंघन हाल ही में राजस्थान के शिक्षा विभाग द्वारा किया गया। राजस्थान में एक शिक्षक को केवल इसलिए एपीओ कर दिया क्योंकि उसने अपने स्कूल में छात्रों को समय पर किताबें नहीं मिलने की समस्या को सार्वजनिक किया। राजस्थान के धोद स्थित राउप्रावि बल्लुपुरा के ग्रेड थर्ड शिक्षक नोलाराम जाखड़ को शिक्षा विभाग की इस तानाशाही कार्रवाई का शिकार होना पड़ा, जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से यह बात रखी कि सरकारी स्कूलों में समय पर पाठ्यपुस्तकें न पहुंचने से विद्यार्थियों की पढ़ाई प्रभावित हो रही है।
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क्या था मामला?
नोलाराम जाखड़ ने बताया था कि राज्य में सरकारी स्कूलों में छात्रों को समय पर किताबें नहीं मिल पा रही हैं, जिससे बच्चों की पढ़ाई में खलल पड़ रहा है। उन्होंने न केवल किताबें, बल्कि स्कूल भवनों की सुरक्षा और बेहतर शैक्षिक माहौल की मांग भी उन्होंने उठाई थी। नोलाराम की यह बात शिक्षा विभाग के लिए एक कड़ी आलोचना बन गई। इसके बाद शिक्षा विभाग ने अपनी गलती को सुधारने की बजाय उल्टे शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई की और उन्हें एपीओ कर दिया।
शिक्षक को एपीओ करने के आदेश को राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत ने अलोकतांत्रिक करार दिया और इस मुद्दे को लेकर आंदोलन की घोषणा की। इस घटना से यह स्पष्ट हो गया कि शिक्षा विभाग न केवल खुद की गलती को मानने से इंकार कर रहा था, बल्कि शिक्षक की आवाज़ को दबाने की कोशिश कर रहा था।
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शिक्षक संगठनों का विरोध और आंदोलन की चेतावनी
शिक्षक संगठन इस कदम के खिलाफ आक्रोशित हैं और शिक्षा विभाग की कार्रवाई को लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए आंदोलन की तैयारी कर रहे हैं। राजस्थान शिक्षक संघ शेखावत ने इस मामले में अपनी आपात बैठक बुलाई और बुधवार यानि 3 सितंबर 2025 को जिला प्रारंभिक शिक्षा विभाग का घेराव करने का फैसला लिया।
इस फैसले की आलोचना करते हुए जिलाध्यक्ष विनोद पूनिया ने कहा, "नोलाराम को एपीओ करना दुर्भाग्यपूर्ण और शिक्षकों की आवाज़ को दबाने वाला तानाशाहीपूर्ण कदम है।"
शिक्षक संगठनों का कहना है कि शिक्षा विभाग का यह कदम पूरी तरह से निरंकुश है और इसका उद्देश्य शिक्षकों के अधिकारों को दबाना है। इस मामले पर बड़े पैमाने पर आंदोलन की चेतावनी दी जा रही है, जिससे राज्य में शिक्षा विभाग की किरकिरी हो रही है।
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क्या राजस्थान में पाठ्यपुस्तकों की कमी है?यहां पर सबसे बड़ी समस्या यह है कि राजस्थान के स्कूलों में आज भी कक्षा 1 से 5 तक की सभी किताबें और कक्षा 6 की कई किताबें विद्यार्थियों तक नहीं पहुंच पाई हैं। यह स्थिति सत्र के दो महीने बाद भी बनी हुई है, और शिक्षा विभाग इन समस्याओं को हल करने की बजाय शिक्षक को सजा दे रहा है। शिक्षकों ने लंबे समय से इन समस्याओं को विभाग के सामने उठाया था, लेकिन विभाग ने इन मुद्दों पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसके बजाय, जो शिक्षक इन मुद्दों को सामने ला रहे हैं, उन्हें एपीओ कर दिया जाता है। यह स्थिति राज्य के शिक्षा क्षेत्र की नाकामी को उजागर करती है और यह सवाल उठाती है कि आखिरकार शिक्षा विभाग क्या कर रहा है। | |
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सोशल मीडिया पर शिक्षा मंत्री मदन दिलावर का विरोध
इस निरंकुश कार्रवाई के खिलाफ सोशल मीडिया पर भी विरोध तेज हो गया है। शिक्षक संगठनों के व्हाट्सएप ग्रुप में यह खबर तेजी से फैल रही है और इसके साथ यह शीर्षक लिखा जा रहा है: "शिक्षक ने बच्चों के लिए मांगी किताब, शिक्षा मंत्री ने दिया एपीओ का खिताब।" यह न केवल शिक्षा विभाग के लिए शर्मिंदगी का कारण बना, बल्कि यह संदेश भी देता है कि राज्य में शिक्षा से जुड़े मुद्दों पर बातचीत करने का अधिकार भी अब शिक्षकों से छीन लिया गया है।
इस स्थिति में शिक्षक संगठनों और अन्य राजनीतिक दलों ने भी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) ने इस कदम के खिलाफ आवाज उठाते हुए चेतावनी दी है कि यदि शिक्षक नोलाराम के खिलाफ की गई कार्रवाई वापस नहीं ली जाती है, तो वे सरकार के खिलाफ बड़े पैमाने पर आंदोलन करेंगे।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के प्रवक्ता राम रतन बगड़िया ने इस पर बयान देते हुए कहा, "शिक्षक पर कार्रवाई संविधान की अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है।"
एपीओ होने के बाद यह बोले शिक्षक नोलाराम जाखड़
नोलाराम जाखड़ ने कहा कि उन्होंने हमेशा पारदर्शिता और ईमानदारी के साथ अपना काम किया है। उन्होंने बताया कि उन्होंने जो भी मुद्दे उठाए थे, वे विद्यार्थियों की भलाई के लिए थे। उनका कहना था कि राज्य में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए थे, लेकिन इसके बजाय उन्हें सजा दी गई।
उनका यह भी कहना था कि "मैंने किसी भी मामले में न तो कोई अनियमितता की है, न ही मुझे कभी किसी जांच एजेंसी ने आरोपी ठहराया है। फिर भी, मेरी आवाज़ दबाने के लिए मुझे एपीओ की सजा दी गई है।"
क्या किताबें मांगने पर शिक्षक को एपीओ करना कदम सही था?
यह कदम शिक्षा विभाग का एक गंभीर निर्णय है, और इस पर सवाल उठना स्वाभाविक है। क्या यह सही है कि शिक्षक को केवल इसलिए सजा दी जाए क्योंकि उसने राजस्थान के सरकारी स्कूलों में किताबों की कमी को उजागर किया? क्या विभाग को अपनी नाकामियों को मानने की बजाय शिक्षक को सजा देने का अधिकार है?
यह कदम ना केवल शिक्षकों के अधिकारों पर हमला है, बल्कि यह एक बड़े सवाल को भी जन्म देता है कि क्या सरकारी संस्थाएं उन लोगों की आवाज़ को दबा सकती हैं, जो उनकी गलतियों को उजागर करते हैं।
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आत्ममंथन करे सरकार और शिक्षा विभाग
राज्य सरकार और शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया पर भी विचार किया जाना चाहिए। यदि विभाग शिक्षकों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई करता है, तो इसका क्या असर राज्य के शिक्षा सिस्टम पर पड़ेगा? क्या राज्य सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि शिक्षा विभाग अपने कर्मचारियों के साथ ऐसा व्यवहार न करे?
यहां पर राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षक बिना किसी डर के अपनी समस्याओं को उजागर कर सकें और सुधार के लिए काम कर सकें। विभाग को अपनी नीतियों पर पुनः विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि शिक्षक अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी से निभाएं।
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