राजस्थान में कैसे खड़ी होगी तीसरी ताकत: RLD के पास कैडर नहीं, BAP और बेनीवाल पड़े अलग-थलग

राजस्थान में समय-समय पर तीसरे मोर्चे की चर्चा होती रहती है। आरएलपी, बाप और आरएलडी मजूबती से चुनाव लड़ने की बात करते हैं, लेकिन अभी ये सभी छोटे दल अलग-थलग पड़े हुए हैं।

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Santosh Kumar pandey
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राजस्थान में भाजपा या कांग्रेस ही सत्ता में आ पाती है। ऐसे में यहां तीसरी राजनीतिक ताकत के बारे में समय-समय पर बात होती रहती है, लेकिन इसका जमीनी स्तर पर परिणाम सामने नहीं आता है। राजस्थान में तीसरा मोर्चा कभी कोई कमाल दिखा नहीं पाया है। अभी कुछ छोटे दलों ने अपने स्तर पर ही अपने प्रभाव वाले हिस्सों में खुद को मजबूत बनाने की तैयारी की है। 
राष्ट्रीय लोक दल (RLD), राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक दल (RLP) और भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) राजस्थान के कुछ हिस्से में अपनी पकड़ मजबूत बनाने के लिए इन दिनों सक्रिय हो रहे हैं। इन सभी दलों ने विधानसभा और लोकसभा चुनाव में अपनी पूरी ताकत दिखाई थी। अब इनकी नजर राजस्थान में नवंबर-दिसंबर में होने वाले निकाय चुनाव पर है।

आरएलडी को दिख रही उम्मीद  

राष्ट्रीय लोक दल ने पूर्व बसपा विधायक जोगिंदर सिंह अवाना को पार्टी का नया अध्यक्ष बनाया है। अवाना बसपा के टिकट पर नदबई से विधायक बने थे, लेकिन वर्ष 2023 में कांग्रेस के टिकट पर लड़े और हार गए। वहीं उन्होंने अब राजस्थान में अन्य दलों के नेताओं को आरएलडी में जोड़ना शुरू कर दिया है। आरएलडी के एकमात्र विधायक सुभाष गर्ग भी अशोक गहलोत के करीबी हैं। एनडीए में आरएलडी के आने के बाद से सुभाष गर्ग असमंजस में हैं। वे खुलकर कांग्रेस या अशोक गहलोत पर बोल नहीं पाते हैं। राजस्थान आरएलडी प्रभारी पूर्व सांसद मलूक नागर बसपा से सांसद रहे हैं। नागर का कहना है कि हम पूरे प्रदेश में पार्टी को मजबूत करेंगे। 

प्रभाव वाले क्षेत्रों में सक्रिय

इन दलों की बड़ी खासियत है कि ये उन्हीं क्षेत्रों में चुनाव लड़ने की प्लानिंग कर रहे हैं, जहां इनका प्रभाव है या इनके लोग सक्रिय हैं। मतलब साफ है कि इन सभी को जातीय कार्ड को खेलना है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि आरएलडी के पास जहां अपना खुद का कैडर नहीं है। वहीं हनुमान बेनीवाल एक तरह से अलग-थलग पड़ गए हैं। वहीं बाप के सामने कई परेशानी खड़ी हैं। 

आरएलपी में बेनीवाल अलग-थलग पड़े 

आरएलडी के नेता और सांसद हनुमान बेनीवाल की पार्टी से अभी कोई विधायक नहीं है। उपचुनाव में उनकी पत्नी हार गईं। बेनीवाल के साथ अभी कोई बड़ा चेहरा नहीं है। उम्मेदाराम बेनीवाल कांग्रेस में चले गए और अभी जैसलमेर-बाड़मेर से सांसद हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ऐसे में बेनीवाल की राजनीति नैया डगमगा रही है। इससे निकाय चुनाव में उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में बेनीवाल की पार्टी के तीन विधायक चुनाव जीतकर आए थे। 

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बाप के लिए बढ़ गया संकट 

भारतीय आदिवासी पार्टी (बाप) के चार विधायक और एक सांसद हैं। राजकुमार रोत को मजबूत समर्थन मिला, लेकिन उन पर अब कांग्रेस और भाजपा की दोनों की नजरें हैं। बाप के बागीदौरा से विधायक जयकृष्ण पटेल को रिश्वत लेने के मामले में एसीबी ने गिरफ्तार किया है, जिससे बाप को बड़ा धक्का लगा है। इससे कैसे पार्टी उबर पाएगी, यह भी कुछ साफ नहीं है।

FAQ

1. राजस्थान में तीसरी राजनीतिक ताकत के रूप में कौन से दल सक्रिय हैं?
राजस्थान में राष्ट्रीय लोक दल (RLD), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) और भारतीय आदिवासी पार्टी (BAP) तीसरी ताकत के रूप में सक्रिय हैं।
2. क्या आरएलपी की स्थिति कमजोर हो गई है?
जी हां, हनुमान बेनीवाल की पार्टी आरएलपी अब अलग-थलग पड़ चुकी है और उन्हें आगामी चुनावों में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
3. बीएपी पार्टी को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है?
बीएपी को हाल ही में रिश्वत लेने के आरोप में अपने विधायक की गिरफ्तारी का सामना करना पड़ा, जिससे पार्टी को बड़ा धक्का लगा है।

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