मनीष गोधा, JAIPUR. राजस्थान की राजधानी जयपुर में चल रही मेट्रो ट्रेन का दूसरा रूट एक बार फिर चर्चा में आ गया है, क्योंकि नई सरकार ने अपने अंतरिम बजट में इसके दूसरे रूट की डीपीआर बनवाने की घोषणा की है। हालांकि इस रूट के लिए पहले भी चार बार डीपीआर DPR बन चुकी है, लेकिन यह रूट धरातल पर नहीं आ पा रहा है, जबकि जयपुर में ट्रैफिक जाम के हालात को देखते हुए पहले इस रूट पर मेट्रो चलाई जाती तो ना सिर्फ जयपुर को ट्रैफिक जाम से निजात मिलती, बल्कि मेट्रो ट्रेन चलाने पर हो रहा करेाड़ों रूपए का घाटा भी बच जाता, लेकिन चुनाव मे क्रेडिट लेने के चक्कर में पहले छोटे रूट पर मेट्रो चलाई गई और पहले रूट के घाटे को देखते हुए ही दूसरे रूट को निजी सहभागिता से चलाने के प्रयास भी सफल नहीं हो पाए। अब नई सरकार की घोषणा के बाद फिर वही सवाल उठ रहा है कि क्या इस बार जयपुर मेट्रो दूसरे रूट पर चल पाएगी।
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ये है जयपुर मेट्रो के दूसरे रूट की कहानी
जयपुर में मेट्रो ट्रेन परियोजना की शुरूआत 2009 में कांग्रेस सरकार के समय हुई थी। राहुल गांधी जयपुर में मेट्रो का सपना दिखा कर गए थे और उनके सपने को पूरा करने के लिए तत्कालीन सीएम अशोक गहलोत ने मेट्रो ट्रेन परियोजना की शुरूआत की। शुरूआत मे ही इसके दो रूट बनए गए थे। पहला रूट करीब 12 किलोमीटर का था, जो मानसरोवर से बड़ी चौपड़ का था और दूसरा सीतापुरा से अंबाबरी का था, जो करीब 23 किलोमीटर का था।
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चुनावी फायदे के लिए छोटा रूट चुना गया
तत्कालीन सरकार ने अपने कार्यकाल में ही मेट्रो ट्रेन चलाने और इसका चुनावी फायदा लेने के लिए 12 किलोमीटर के छोटे रूट को चुना। पहले चरण में इसका नौ किलोमीटर का रूट तैयार कराया गया जो मानसरोवर से चांदपोल बाजार तक था। हालांकि अपने कार्यकाल मे कांग्रेस सरकार इसका काम पूरा नहीं करा पाई और वसुंधरा राजे सरकार के समय 2015 मे ये रूट ऑपरेशनल हो सका। फिर वसुंधरा सरकार के समय ही इसका बाकी बचा ढाई किलोमीटर का रूट तैयार हुआ और मेट्रो बड़ी चौपड़ तक पहुंची।
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पहले रूट पर लगातार बड़ा घाटा
इस पहले रूट पर मेट्रो लगातार घाटे में चली। 2015 से 2022 तक की स्थिति तो यह थी कि मेट्रो चलाने पर प्रतिवर्ष करीब 55 करोड़ रुपए खर्च हो रहा था और कमाई सिर्फ 20 करोड़ हो रही थी। यानी औसतन 35 करोड़ रुपए साल का घाटा हो रहा था। घाटे का कारण यह रहा कि रूट सिर्फ नौ किमी का था और इस रूट पर रेलवे स्टेशन और इंटर स्टेट बस स्टेंड थे, लेकिन मेट्रो संचालन का टाइमिंग ऐसा नहीं था कि ट्रेन या बस के रोजाना के यात्री इसका फायदा ले पाते।
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बर्थडे पार्टियां तक करानी पड़ी
मेट्रो को घाटे से उबरने के लिए जयपुर मेट्रो रेल कॉरपोरेशन ने मेट्रो में बर्थ डे पार्टी, फिल्म शूटिंग और प्री वेडिंग शूट आदि से भी कमाई करने का प्रयास किया, लेकिन यह भी ज्यादा सफल नहीं हो पाया।
बाकी बचा रूट तैयार होने के बाद सुधरे कुछ हालात
मेट्रो का घाटा कम करने के लिए पहले रूट का बाकी बचा हिस्सा यानी चांदपोल गेट से बड़ी चौपड़ तक का रूट तैयार करना जरूरी हो गया था। यह पूरा रूट भूमिगत बना और इसी पर सबसे ज्यादा लागत भी आई। करीब 3100 करोड़ रुपए में यह तैयार हो पाया। इसके लिए जयपुर की परंपरागत चैपड़ों को तोड़ कर नए सिरे से उनका निर्माण करना पड़ा। यह बाकी बचा रूट तैयार होने के बाद अब जाकर मेट्रो का यात्री भार बढ़ सका है। इस रूट से पहले जहां तीस हजार लोग रोज सफर कर थे, वहीं अब 50 हजार तक लोग रोज सफर कर रहे हैं, हालांकि इसके बावजूद मेट्रो घाटे से उबर नहीं पाई है।
दूसरे रूट पर पहले काम होता तो नहीं होता घाटा
जयपुर स्थित शिवचरण माथुर शोध संस्थान के निदेशक मनीष तिवारी का मानना है कि चुनावी फायदा देखने के बजाए जयपुर का भला सोचा जाता तो पहले दूसरे रूट पर काम किया जाता। यह रूट जयपुर के दो औद्योगिक क्षेत्रों को आपस में जोड़ता है। इसके अलावा इस रूट पर कई सरकारी कॉलेज, राजस्थान युनिवर्सिटी, सवाई मानसिंह अस्पताल, कई सरकारी ऑफिस हैं। यानी जिन लोगों के लिए मेट्रो सबसे ज्यादा जरूरी होती है, उनका पूरा यात्री भार इस रूट की मेट्रो को मिल जाता और जयपुर के ट्रैफिक की स्थिति बहुत हद तक सुधर जाती।
सिर्फ DPR बनती रहीं, 16 करोड़ खर्च कर दिए, लेकिन काम शुरू नहीं हो पाया
इस दूसरे रूट के लिए राजस्थान की पिछली सरकारें डीपीआर तो बनवाती रहीं, लेकिन काम शुरू नहीं करवा पाई। अब तक इस रूट की तीन डीपीआर तैयार हो चुकी है, जिस पर सरकार 16 करोड़ रुपए खर्च कर चुकी है। पिछले बजट में चौथी बार डीपीआर बनवाने की घोषणा की गई थी, जिसके लिए चार करोड़ रुपए का प्रावधान रखा गया था हालांकि इस पर काम हो नहीं पाया आौर अब फिर एक बार नई सरकार ने डीपीआर बनवाने की घोषणा कर दी है। यानी फिर पांच-छह करोड़ खर्च हो जाएंगे। इस दौरान बीजेपी की पिछली सरकार ने इसे निजी सहभागिता से चलाने का प्रयास भी किया और सरकार सिंगापुर तक का दौरा कर आई। बडे़ औद्योगिक घरानों अंबानी और अडानी से भी बात हुई, लेकिन पहले रूट के घाटे को देखते हुए किसी ने रूचि नहीं दिखाई।
इस बार क्या है उम्मीद
इस बार फिर सरकार ने डीपीआर बना काम शुरू करने की बात की है और इसकी लंबाई भी 23 से बढा कर 30 किलोमीटर की है अच्छी बात यह है कि अंतरिम बजट में ही इसकी घोषणा कर दी गई और जययुर व राजस्थान को लेकर केंद्र सरकार का जिस तरह का फोकस इस बार केंद्र सरकार का दिख रहा है, उसे देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि इस बार कम से कम जयपुर के लोगों की उम्मीद पूरी हो जाएगी।