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अरुण तिवारी, BHOPAL. बीआरटीएस अब टूटने वाला है। लोगों की मांग और सुविधा के लिहाज से नई सरकार ने नया फैसला ले लिया है। लेकिन सवाल यह उठने लगा है कि आखिर इसका गुनहगार कौन है जिसने आम जनता की 500 करोड़ की गाढ़ी कमाई को धूल में मिला दिया है। आखिर भोपाल पर अलग लेन का ये प्रोजेक्ट जबरिया क्यों लादा गया। बीआरटीएस पर अब 250 करोड़ के घोटाले के आरोप भी लगने लगे हैं। सुनिए आखिर क्या कह रहा है बीआरटीएस।
सरकार, सिस्टम और अदूरदर्शी सोच पर क्या कहता है खुद बीआरटीएस...
मैं भोपाल का 'बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम'... हूं
मैं भोपाल का बीआरटीएस यानी बस रेपिड ट्रांजिट सिस्टम हूं। 15 साल पहले से मैं चर्चा में बना हुआ हूं। पूरी भोपाल की जनता मुझसे आजिज आ चुकी है। सरकार ने अब मेरा अस्तित्व मिटाने का फैसला कर लिया है। मैं अपने निर्माण के समय से ही लोगों की परेशानी की वजह बना हुआ हूं। मेरा सवाल यही है कि जब मैं सुविधा की जगह परेशानी का कारण बना तो फिर मुझ पर 500 करोड़ रुपए खर्च क्यों किए गए। ये पैसे आखिर जनता की गाढ़ी कमाई से ही तो आए हैं। जनता के पैसे धूल में मिलाने का गुनहगार आखिर कौन है। सरकार, सिस्टम,अदूरदर्शी सोच या कुछ और। मैं हादसों की भी बड़ी वजह हूं।
अब आपको बताता हूं अपना तकनीकी पहलू...
मेरे निर्माण से ही मुझ पर घोटाले के आरोप लगते रहे हैं। मेरे निर्माण के साथ ही मेरा मामला 2013 में विधानसभा की प्राक्कलन समिति में चला गया। तत्कालीन विधायक पारस सकलेचा ने मेरे निर्माण पर आपत्ति जताई। इसे ढाई सौ करोड़ का घोटाला भी माना। अब मैं आपको अपने तकनीकी पहलू बताता हूं। मिसरोद से बैरागढ़ तक 24 किलोमीटर का मेरा कॉरिडोर अब सिर्फ 15 किलोमीटर का ही बचा है। कॉरीडोर से दस से पंद्रह मिनट में एक लाल बस गुजरती है। यानी एक तरफ वाहनों का रेला तो दूसरी तरफ खाली कॉरीडोर। मेरा दूसरा पहलू भी है। 368 लाल बसों के लिए एक रूट और भोपाल के 19 लाख वाहनों के लिए एक रुट। ये तो बहुत नाइंसाफी है।
ठेकेदार ने मेरी 10 की बजाए 3 साल की ही गारंटी ली
अब बताते हैं कि मुझ पर किस तरह जनता की गाढ़ी कमाई लुटाई गई। साल 2006 में मुझ पर मुहर लगी। जब इसकी लागत 224 करोड़ थी। जिसमें 110 करोड़ केंद्र सरकार देने वाली थी। 2009 में टेंडर हुए तब तक लागत बढ़कर 368 करोड़ हो गई। केंद्र सरकार ने भी हाथ खींच लिए। इसके बाद फिर मेरे लिए 180 करोड़ मंजूर किए गए। कंसल्टेंट को अलग से राशि नहीं देनी थी, लेकिन दे दिए 50 करोड़। डीपीआर में ठेकेदार को 10 साल की गारंटी लेनी थी, लेकिन असल में उसने ली तीन साल की गारंटी। अब मुझ पर जांच की मांग भी होने लगी है। इसे हटाने में अब 15 करोड़ और खर्च होंगे।
जानिए मेरी तकनीकी खामियों के बारे में
अब मैं अपनी तकनीकी खामियां भी बताता हूं। डीपीआर के हिसाब से फुट ब्रिज, पैदल पथ और साइकिल ट्रेक नहीं बनाए गए। मुझे आसपास की कॉलोनियों से जोड़ा जाना था लेकिन ऐसा नहीं किया गया। लालघाटी पर अधूरा ग्रेड सेपरेटर बनने से लाल बसों को टर्न होने में दिक्कत होती है। कमला पार्क, होशंगाबाद रोड पर ट्रैफिक जाम की बड़ी वजह। कॉरिडोर की अधिकांश लाइटें बंद। जगह-जगह से रेलिंग टूटी। मेरे मेंटनेंस के नाम पर करोड़ों खर्च हुए लेकिन मेरी हालत ऐसी है। जब मैं शुरु हुआ था तो उस समय महापौर कृष्णा गौर थीं जो अब मंत्री हैं। अब वे हटाने के पक्ष में आ गई हैं। बीजेपी के पूर्व विधायक भी अब इस पर खुलकर बोलने लगे हैं। साल 2019 में दिल्ली से एक तकनीकी समिति आई थी जिसने मेरा हाल-चाल देखा। और अपनी रिपोर्ट भी सबमिट की, लेकिन आज तक वो रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं गई। तब से ही मुझे मिटाने की बात ने जोर पकड़ लिया, लेकिन फैसला अब हो पाया।
बड़ा सवाल... आखिर क्यों मेरे जैसे गैर जरूरी प्रोजेक्ट पर लोगों की गाढ़ी कमाई उड़ाई
इससे पहले कमलनाथ सरकार के नगरीय प्रशासन मंत्री जयवर्धन सिंह ने भी मुझे परेशानी का सबब बताया था, लेकिन सरकार चली गई और मैं जस का तस खड़ा रहा। इसके बाद नगरीय प्रशासन मंत्री भूपेंद्र सिंह बने। भूपेंद्र सिंह ने भी शाम के समय मुझे सबके लिए खोलने का ऐलान कर दिया। अब मैं भोपाल से जाने वाला हूं। लेकिन नई सरकार को ये जवाब देना होगा कि जनता के टैक्स से आ रही राशि को आखिर क्यों मेरे जैसे गैर जरूरी प्रोजेक्ट पर बिना सोचे समझे उड़ा दिया गया।