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वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026 में भारत सबसे असमान देश निकला। टॉप 10% अमीरों के पास 65% संपत्ति और 58% आय है। गरीब 50% को सिर्फ 15% आय मिलती है। चीन आगे बढ़ा, लेकिन भारत पीछे खिसका। महिलाओं की कमाई पुरुषों से आधी भी नहीं।
वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (World Inequality Report 2026) ने आय असमानता पर अपनी नई रिपोर्ट जारी कर दी है। इस मामले में भारत दुनिया में पहले नंबर पर बना हुआ है। यहां 10% अमीर लोगों के पास देश की 65% संपत्ति है। रिपोर्ट कहती है कि भारत के टॉप 10% अमीर लोगों का देश की 58% कमाई पर कब्जा है।
जबकि कम इनकम वाले 50% लोगों के हाथ में देश की सिर्फ 15% आय आती है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में आय असमानता का आलम ये है कि सिर्फ 1% लोगों के पास देश की कुल संपत्ति का लगभग 40% हिस्सा है।
5 प्वाइंट में समझें क्या है पूरा मामला
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आइए thesootr Prime में इस रिपोर्ट के बारे में सरल तरीके से समझते हैं…
क्या है वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (WIL)
वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब (WIL) एक वैश्विक अनुसंधान केंद्र है जो असमानता के अध्ययन और सामाजिक- आर्थिक न्याय को बढ़ावा देने वाली नीतियों पर केंद्रित है। यह विश्व असमानता डेटाबेस (WID) को होस्ट करता है, जो वैश्विक असमानता डेटा का सबसे व्यापक ओपन-एक्सेस स्रोत है।
2025-2026 में इसकी प्रमुख रिपोर्ट "विश्व असमानता रिपोर्ट 2026" जारी हुई, जो आठ अध्यायों में बहुआयामी असमानता का विश्लेषण प्रस्तुत करती है।​
रिपोर्ट की विशेषताएं
यह 200 से अधिक शोधकर्ताओं द्वारा संकलित डेटा पर आधारित है, जिसमें 40 देशों की शीट शामिल हैं जो क्षेत्रीय तुलना सक्षम बनाते हैं। रिपोर्ट प्रगतिशील कराधान, न्यूनतम धन कर और असमानता पर स्वतंत्र पैनल जैसे प्रस्तावों पर चर्चा करती है। यह शिक्षा, स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई के लिए संसाधनों की आवश्यकता पर जोर देती है।​
अर्थशास्त्रियों ने संपादित की है ये रिपोर्ट
इस रिपोर्ट को कई अर्थशास्त्रियों ने मिलकर संपादित किया है। इनमें लुकास चांसल, रिकार्डो गोमेज-कैरेरा, रोवैदा मोशरिफ और थॉमस पिकेटी जैसे चर्चित नाम शामिल हैं।
भारत क्यों असमानता का चैंपियन?
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नई रिपोर्ट ने भारत को आय असमानता में दुनिया का नंबर एक बताया।
यहां 10% अमीर लोग देश की 65% संपत्ति रखते हैं।
टॉप 1% के पास ही 40% संपत्ति का बोलबाला है।
यह आंकड़े 200 से ज्यादा शोधकर्ताओं के डेटा से आए हैं।
रिपोर्ट को लुकास चांसल और थॉमस पिकेटी जैसे विशेषज्ञों ने संपादित किया।
अमीरों की कमाई में उछाल कैसे?
भारत के टॉप 10% लोग 58% राष्ट्रीय आय पर कब्जा जमाए हुए हैं।
2022 की रिपोर्ट में यह 57% था लेकिन अब बढ़ गया।
नीचे के 50% लोगों को सिर्फ 15% आय ही नसीब होती है।
टॉप 1% की आय हिस्सा 22.6% तक पहुंच चुका है।
ये आंकड़े दिखाते हैं कि खाई लगातार चौड़ी हो रही है।
मिडिल क्लास कहां गुम हो गया?
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1980 में भारत की ज्यादातर आबादी वैश्विक मिडिल ग्रुप में थी।
अब 2025 में लगभग पूरी आबादी निचले 50% आय वर्ग में चली गई।
चीन ने उलट कहानी लिखी, जहां आम लोग ऊपर चढ़े।
भारत में मिडिल क्लास सिकुड़ता जा रहा है।
यह बदलाव 40 सालों की आर्थिक यात्रा का दर्द दिखाता है।
2025 तक चीन की स्थिति बेहतर हुई
चीन की बड़ी आबादी अब दुनियाभर में मध्य आय वाले 40 प्रतिशत लोगों में शामिल हो चुकी है। चीनी आबादी का एक बढ़ता हुआ हिस्सा अपर-मिडिल ग्रुप (वैश्विक धन असमानता) में भी शामिल हो गया है। आसान शब्दों में कहें तो चीन की आम जनता की आर्थिक हालत पिछले 40-45 सालों में काफी ऊपर उठी है। लेकिन भारत की स्थिति इसके उलट है।
रिपोर्ट कहती है कि 1980 में भारत की आबादी (भारत में गरीबी और अमीरी के बीच बढ़ती खाई) का बड़ा हिस्सा दुनिया के मिडिल इनकम वाले 40% ग्रुप में शामिल था, यानी वैश्विक स्तर पर भारत की आम जनता मध्यम आय वर्ग में थी। फिलहाल, यानी 2025 में भारत की लगभग पूरी आबादी दुनिया की सबसे कम आय वाली 50% श्रेणी में चली गई है।
दुनिया भर में अमीरी की मार किसे?
वैश्विक स्तर पर टॉप 10% के पास 75% संपत्ति है।
टॉप 1% ही 37% वैश्विक धन पर राज करता है।
सबसे ऊपर के 0.001% यानी 60 हजार अमीरों के पास निचले 50% से तीन गुना ज्यादा संपत्ति।
1995 में उनका हिस्सा 4% था अब 6% से ऊपर।
यह खाई पूरे ग्लोब को निगल रही है।
महिलाओं की कमाई का सच क्या?
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महिलाएं पेड काम में पुरुषों की 61% कमाई पाती हैं।
घर का बिना पैसे का काम जोड़ें तो यह सिर्फ 32% रह जाता है।
1990 से महिलाओं का कुल लेबर इनकम हिस्सा 25% से ऊपर नहीं बढ़ा।
भारत में महिला लेबर भागीदारी 15.7% ही अटकी हुई है।
महिलाएं ज्यादा घंटे काम करती हैं लेकिन कम कमाती हैं।
जलवायु असमानता का नया चेहरा
टॉप 10% लोग 77% कार्बन उत्सर्जन के जिम्मेदार हैं।
निचले 50% सिर्फ 3% उत्सर्जन करते हैं।
धनी लोग निवेश से पर्यावरण को ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं।
शिक्षा में भी अंतर है जैसे अफ्रीका में प्रति बच्चा 200 यूरो जबकि यूरोप में 7400।
ये आंकड़े बहुआयामी असमानता को उजागर करते हैं।
रिपोर्ट के पीछे की ताकत
यह तीसरी रिपोर्ट है जो 2018 और 2022 के बाद आई।
वर्ल्ड इनइक्वैलिटी लैब ने इसे तैयार किया।
यह लैब असमानता पर वैश्विक डेटाबेस चलाती है।
रिपोर्ट में 40 देशों के आंकड़े शामिल हैं।
यह सामाजिक न्याय के लिए नीतियां सुझाती है।
आगे क्या रास्ता बचेगा?
रिपोर्ट प्रगतिशील टैक्स और टैक्स के सही उपयोग की सलाह देती है।
शिक्षा स्वास्थ्य पर ज्यादा खर्च जरूरी बताया।
विरासत कर वापस लाने की बात कही गई।
बिना बदलाव के 2030 तक हालात बिगड़ेंगे।
नीतियां अमीरों से गरीबों तक संसाधन ले जा सकती हैं।
सोर्स क्रेडिट: वर्ल्ड इनइक्वैलिटी रिपोर्ट 2026
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