मध्यप्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित, धर्मेंद्र प्रधान के बयान से फिर बहस शुरू

मध्य प्रदेश के 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। 55 में से 45 जिले रेड जोन में हैं। इन जिलों के 20% से अधिक बच्चे अपनी उम्र के अनुसार बेहद कम वजन के हैं। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के बयान से यह बहस एक बार फिर गर्म हो गई है।

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केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एमपी में कुपोषण की बहस को जन्म दे दिया है। वे रविवार, 7 दिसंबर को भोपाल आए थे। इस दौरान उन्होंने कहा कि प्रदेश के करीब 1.5 करोड़ छात्रों में से लगभग 50 लाख बच्चे ऐसे हैं, जिन्होंने कक्षा 5 तक पहुंचने पर भी शायद कभी सेब खाकर नहीं देखा होगा।

नई शिक्षा नीति पर आयोजित एक कार्यशाला में प्रधान ने बताया कि कई बच्चों को दूध, मेवे और अंजीर जैसे जरूरी पोषक आहार शायद ही कभी नसीब होते हैं।

बहरहाल, शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के इस बयान ने एक बार फिर मध्यप्रदेश में कुपोषण की बहस को जन्म दे दिया है। राज्य सरकार इस मुद्दे पर हमेशा ही अपनी पीठ ठोकती रही है। वहीं, आंकड़े तो सच्चाई उजागर करते ही हैं। आज इस प्राइम में हम समझेंगे कि वास्तव में कुपोषण को लेकर एमपी के हालात कैसे हैं?

पहले जानें, और क्या-क्या बोले धर्मेंद्र प्रधान

  • धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि बच्चे बाजार में फल-मेवे देखते तो हैं, लेकिन खाने को नहीं मिलते। कई बच्चों को कक्षा 10 तक भी अंजीर खाने का मौका नहीं मिलता, न ही जरूरत के समय एक कप दूध।

  • धर्मेंद्र प्रधान ने एक स्थानीय नेता का नाम लेते हुए कहा कि जो लोग बार-बार भंडारा कराते हैं, उन्हें हफ्ते में एक बार गरीब बच्चों को पौष्टिक भोजन देना चाहिए। उन्होंने कहा, काजू, अंजीर और बेसन के लड्डू जैसे स्वादिष्ट और हेल्दी खाने का महत्व है। संभव है कि उनमें से कोई भविष्य में अब्दुल कलाम जैसा महान व्यक्तित्व बन सके।

अब एक नजर जमीनी हकीकत पर…

मप्र में कुपोषण के सरकारी आंकड़े और स्थिति

  • सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2020 से जून 2025 तक आदिवासी ब्लॉकों के न्यूट्रिशन रिहैबिलिटेशन सेंटर्स (NRC) में 85 हजार 330 बच्चों को भर्ती किया गया था।
  • ऐसे बच्चों की सालाना भर्ती 2020-21 में 11 हजार 566 थी, जो 2024-25 में बढ़कर 20 हजार 741 हो गई।
  • मध्य प्रदेश में 10 लाख से अधिक बच्चे कुपोषित हैं। इनमें से लगभग 1.36 लाख गंभीर रूप से कुपोषित (severely wasted) हैं।
  • राष्ट्रीय स्तर पर अप्रैल 2025 में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में गंभीर व मध्यम कुपोषण दर 5.40% थी। दूसरी ओर मध्य प्रदेश में यह 7.79% दर्ज की गई।

महिला स्वास्थ्य और एनीमिया

मध्य प्रदेश की लगभग 57% महिलाएं एनीमिया से ग्रस्त हैं। एनीमिया यानी खून की कमी पहले से ही अगली पीढ़ी को कमजोर स्थिति में जन्म लेने पर मजबूर कर रही है।

गर्भवती और धात्री महिलाओं का कुपोषण सीधे नवजात और शिशु के वजन, प्रतिरोधक क्षमता और जीवित रहने की संभावना को प्रभावित करता है।

जिलों की रेड जोन स्थिति

केंद्र सरकार के न्यूट्रिशन ट्रैकर ऐप के डेटा के मुताबिक, मई 2025 में मध्य प्रदेश के 55 में से 45 जिले रेड जोन में थे। यानी इन जिलों में 20% से अधिक बच्चे उम्र के हिसाब से कम वजन के थे।

यह बताता है कि कुपोषण राज्य के कुछ सीमित क्षेत्रों तक नहीं, बल्कि लगभग पूरे प्रदेश में व्यापक रूप से फैला हुआ है।

बजट, खर्च और योजनाएं

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार, एक बच्चे पर NRC में लगभग 980 रुपए का खर्च दिखाया गया है।

आंगनवाड़ी केंद्रों में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के लिए 12 रुपए प्रतिदिन और सामान्य बच्चों के लिए 8 रुपए प्रतिदिन का प्रावधान है।

2025-26 के लिए पोषण बजट लगभग 4,895 करोड़ रुपए बताया गया है। वहीं, जिलों और गांवों की जमीनी स्थिति में अपेक्षित सुधार दिखाई नहीं देता।

भ्रष्टाचार और सिस्टम की खामियां

2022 में पोषण आहार की खरीद और परिवहन में बड़ी अनियमितताओं का खुलासा हुआ था। CAG की रिपोर्ट ने माना है कि लगभग 858 करोड़ रुपए का घोटाला हुआ है।

आरोप है कि पोषण सामग्री अक्सर लाभार्थियों तक पहुंचने से पहले ही रास्ते में ही खुर्द-बुर्द हो जाती है। कई आंगनवाड़ी केंद्र नियमित रूप से काम नहीं करते और फ्रंटलाइन वर्कर्स पर जवाबदेही की कमी है।

सरकार का पक्ष व दावे

मंडला, देवास और झाबुआ जैसे जिलों में कुछ नवाचार किए गए हैं। माताओं को जागरूक किया जा रहा है और नए मॉडल आजमाए जा रहे हैं। भरोसा है कि जल्द ही स्थिति में सुधार होगा।
- निर्मला भूरिया, महिला एवं बाल विकास मंत्री

12 रुपए में तो दो केले भी नहीं आते

12 रुपए में तो दो केले भी नहीं आते। दूध 70 रुपए प्रति लीटर है तो भला इतने कम बजट में क्या ही पोषण मिलेगा? हकीकत यह है कि राज्य सरकार एक रुपया भी अपने खर्च से नहीं देती। पूरा पैसा केंद्र से आता है।
- डॉ. विक्रांत भूरिया, कांग्रेस विधायक

भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रहा बजट

प्रदेश में कुपोषण से लड़ने के लिए 4895 करोड़ रुपए का बजट दिया गया है। वहीं, प्रदेश की 97 हजार आंगनवाड़ियों में 38% बच्चे कुपोषण की चपेट में पाए गए हैं। भोपाल के 27%, इंदौर के 45%, उज्जैन के 46% और ग्वालियर चंबल में लगभग 35% बच्चे गंभीर कुपोषण वाली सूची में रजिस्टर्ड हैं।

कुपोषण के ये आंकड़े बताते हैं कि मध्य प्रदेश में बच्चों के पोषण पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इतने बड़े बजट को या तो खुर्द-बुर्द किया जा रहा है या फिर इसमें गंभीर भ्रष्टाचार की आशंका है।

मैं सरकार से मांग करता हूं इस पूरे मामले की विस्तृत जांच कराई जाए और बच्चों के लिए पोषण आहार सुनिश्चित किया जाए। इतनी बड़ी संख्या में बच्चों का कुपोषण का शिकार होना प्रदेश के भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा है। जब बच्चे ही स्वस्थ नहीं होंगे तो प्रदेश का क्या भविष्य होगा?
- कमलनाथ, पूर्व मुख्यमंत्री

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