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आपराधिक मानहानि कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक बड़ा और संवेदनशील बयान दिया है। इसने मानहानि कानून के भविष्य को लेकर व्यापक चर्चा छेड़ दी है। आइए विस्तार से समझते हैं कि यह मामला क्या है, सुप्रीम कोर्ट ने क्या टिप्पणियां की हैं और आपराधिक मानहानि कानून का समाज और मीडिया पर कैसा प्रभाव पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक ऑनलाइन न्यूज पोर्टल द वायर की ओर से दायर याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि अब आपराधिक मानहानि कानून को गैर-आपराधिक बनाया जाना चाहिए। यह याचिका जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) की प्रोफेसर अमिता सिंह द्वारा पोर्टल के खिलाफ 2016 में दाखिल मानहानि मुकदमे से संबंधित है। कोर्ट ने इस मामले में इतना समय बीतने पर सवाल उठाए और पूछा कि इसे कब तक खींचा जाएगा?
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने यह भी कहा कि यह कानून अक्सर व्यक्तियों और राजनीतिक दलों द्वारा बदला लेने के उद्देश्य से दुरुपयोग होता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कई लोकतांत्रिक देशों ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को महत्व देते हुए इस कानून को खत्म कर दिया है और अब भारत के लिए भी यही समय आ गया है।
बता दें कि यह याचिका अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस रूझान ने पूरे देश में इस कानून के महत्व और आलोचना दोनों पर नई बहस छेड़ दी है।
आपराधिक मानहानि क्या है?
आपराधिक मानहानि का मतलब उस स्थिति से है, जब किसी की प्रतिष्ठा, नाम- सम्मान या छवि को जानबूझकर आहत करने वाले झूठे, भ्रामक या अपमानजनक बयान सार्वजनिक रूप से प्रसारित किए जाएं। भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 356 (जो पहले आईपीसी की धारा 499 की जगह ले चुकी है) के तहत यह अपराध माना जाता है।
इस कानून के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का इरादा रखकर शब्द, संकेत या फोटो के माध्यम से गलत आरोप लगाता है तो उसे दो साल तक की साधारण जेल या जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है।
मानहानि के लिए केस दो तरह के हो सकते हैं:
- लिखित रूप में (Libel/अपलेख)
- मौखिक रूप में (Slander/अपवचन)
समझें द वायर बनाम अमिता सिंह (2016-2025) का मामला
2016 में JNU की प्रो. अमिता सिंह ने द वायर के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मुकदमा दायर किया था। आरोप था कि पोर्टल ने एक लेख में JNU को आयोजित सेक्स रैकेट का अड्डा बताया और प्रोफेसर सिंह को इस विवादित डॉजियर की मुख्य लेखक के रूप में दर्शाया। इससे उनकी प्रतिष्ठा पर गहरा असर पड़ा।
मजिस्ट्रेट कोर्ट ने इस मामले में पोर्टल के संपादक और पत्रकार को समन जारी किया। मामला दिल्ली हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर टिप्पणी की कि आपराधिक मानहानि कानून का दुरुपयोग हो रहा है और इसे गैर-आपराधिक बनाना चाहिए। हाल ही में दिसंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए मजिस्ट्रेट को इस मामले में नए सिरे से समन जारी करने को कहा।
यह विवाद लगभग 8 साल से अदालतों में विचाराधीन है और सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान इस लंबित मामले की समुचित निपटान पर भी जोर दिया।
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मानहानि के कानूनी पहलू और बचाव के तरीके
मानहानि संबंधी मुकदमों में अभियुक्त अपना बचाव भी कर सकता है। कानूनी रूप से निम्नलिखित बातें बचाव के तौर पर मानी जाती हैं-
कथन की सत्यता का प्रमाण देना।
कानूनी विशेषाधिकार जैसे न्यायालयीय या विधायी Immunity होना।
सार्वजनिक हित में निष्पक्ष टिप्पणी या आलोचना।
भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत निर्धारित है, लेकिन जब वह किसी की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाती है, तो उपयुक्त कानूनी कार्रवाई भी हो सकती है।
मानहानि के प्रभाव और समाज पर असर
यह कानून पत्रकारिता, मीडिया की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सम्मान के बीच संतुलन बनाने में अहम है। कई बार इसका दुरुपयोग आलोचना को दबाने के लिए किया जाता रहा है। इससे लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी प्रभावित होती है।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी केवल भारतीय मीडिया और न्यायप्रणाली के लिए दिशा- निर्देश ही नहीं है, बल्कि समाज को भी यह समझाने का प्रयास है कि मानहानि कानून के जरिए गलत प्रवृत्तियों को कमजोर करते हुए अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना आवश्यक है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का संक्षिप्त अवलोकन
आपराधिक मानहानि की धारा- पहले IPC की धारा 499, अब BNS की धारा 356
सजा- दो साल तक जेल, जुर्माना या दोनों
सुप्रीम कोर्ट का रुख- कानून का दुरुपयोग हो रहा है, इसे गैर-आपराधिक बनाया जाना चाहिए
लंबित मामला- द वायर बनाम अमिता सिंह (2016 से), अदालतों में लंबित
प्रभाव- पत्रकारिता की स्वतंत्रता और प्रतिष्ठा संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का औजार
देश के चर्चित मानहानि केस
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट ने जो टिप्पणी की है, वह भारतीय कानून में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत सम्मान के बीच संतुलन बनाना कितना आवश्यक है, इसे दर्शाती है। आपराधिक मानहानि कानून को गैर-आपराधिक बनाने का समय आ गया है, ताकि पत्रकारिता और मीडिया को बिना डर के सशक्त आवाज मिल सके और साथ ही किसी की प्रतिष्ठा का भी संरक्षण हो।
भारत में चल रही मानहानि की लंबी और जटिल लड़ाई नई दिशा लेती नजर आ रही है। यह बदलाव लोकतंत्र के दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को मजबूत करते हुए न्याय सुनिश्चित करेगा।