आज का इतिहास: जब अंग्रेजों ने अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को बनाया अपना कैदी

1857 के विद्रोह के बाद, अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर को ब्रिटिशों के सामने आत्मसमर्पण करने पर मजबूर होना पड़ा। उन्हें कैदी बनाकर उसी लाल किले में वापस लाया गया और फिर रंगून भेज दिया गया, जहां उनकी मृत्यु के साथ ही भारत से मुगल साम्राज्य का अंत हो गया।

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Kaushiki
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आज की तारीख का इतिहास:कहानी की शुरुआत होती है एक ऐसे बादशाह से जो कभी एक विशाल साम्राज्य के वारिस थ, लेकिन अपनी अंतिम सांसों में सिर्फ एक शायर और एक बेबस इंसान रह गए थे।

साल था 1857 और जगह थी दिल्ली का वो लाल किला, जो सदियों से मुगल सल्तनत की शान और शौकत का गवाह रहा था। इसी किले में रहते थे अंतिम मुगल बादशाह, बहादुर शाह जफर।

उनकी जिंदगी का यह सबसे बुरा और ऐतिहासिक पल था जब उन्हें उसी किले में एक कैदी बनकर लाया गया जिसे उनके पूर्वजों ने बनवाया था। यह सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग का अंत था। चलिए, हम इस कहानी को शुरू से समझते हैं।

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Photograph: (the sootr)

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एक बूढ़ा बादशाह और एक अनचाही बगावत

बहादुर शाह जफर एक बादशाह से ज्यादा एक संवेदनशील कवि थे। उनका साम्राज्य सिर्फ लाल किले तक सिमट गया था और उनकी सत्ता नाममात्र की थी। असली ताकत तो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में थी।

लेकिन 1857 में हालात बदल गए। मेरठ में शुरू हुई बगावत की आग पूरे देश में फैल गई और 11 मई, 1857 को बागी सिपाही दिल्ली पहुंच गए।

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ये सिपाही ब्रिटिश शासन से परेशान थे और उन्हें एक ऐसे प्रतीक की तलाश थी, जिसके नाम पर वे अपनी लड़ाई लड़ सकें। उनकी नजर बहादुर शाह जफर पर पड़ी, जो मुगल वंश के अंतिम वारिस थे।

सिपाही लाल किले में घुस गए और जफर को जबरन अपना नेता घोषित कर दिया। जफर ने पहले तो मना किया, क्योंकि वह जानते थे कि उनके पास न तो सेना है और न ही वो ताकत जो एक लड़ाई जीत सके।

लेकिन सिपाहियों के दबाव और उनकी बेबसी ने उन्हें हां कहने पर मजबूर कर दिया। वह जानते थे कि यह एक ऐसी आग थी जिसमें उनका पूरा परिवार जल सकता था, लेकिन उनके पास कोई और विकल्प नहीं था।

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जब एक शहर बन गया युद्ध का मैदान

जब ब्रिटिश अधिकारियों को पता चला कि दिल्ली विद्रोह का केंद्र बन गई है और बहादुर शाह जफर को विद्रोहियों का नेता बना दिया गया है, तो वे आग-बबूला हो गए।

उन्होंने अपनी पूरी ताकत लगा दी दिल्ली को वापस लेने में। सितंबर 1857 में ब्रिटिश सेना ने दिल्ली को चारों ओर से घेर लिया। यह घेराबंदी बेहद क्रूर थी। शहर के अंदर खाना-पीना खत्म होने लगा, बीमारी फैलने लगी और हर तरफ सिर्फ मौत और मातम था।

बहादुर शाह जफर और उनका परिवार भी इस भयानक स्थिति में घिर गया था। उनके बेटे और पोते, जो युद्ध का अनुभव नहीं रखते थे हताश और निराश हो गए।

मुगल दरबार के कई लोग भी ब्रिटिशों से गुपचुप संपर्क साध रहे थे। सबसे बड़ा विश्वासघात किया एक दरबार के सदस्य ने, जिसका नाम था मिर्जा इलाही बख्श और एक और व्यक्ति हाकिम अहसानुल्लाह खान,जो बादशाह के करीबी थे। उन्होंने गुप्त रूप से ब्रिटिशों को सारी जानकारी दी, जिससे ब्रिटिश सेना को शहर में घुसने में मदद मिली।

आखिरी उम्मीद की किरण

14 सितंबर को ब्रिटिश सेना ने दिल्ली में घुसना शुरू कर दिया। हर गली, हर चौराहे पर भयानक लड़ाई हुई। चारों तरफ लाशें बिछ गईं। इस नरसंहार से बचने के लिए बहादुर शाह जफर अपने परिवार के साथ लाल किले से बाहर निकले और हुमायूं के मकबरे में शरण ली।

यह एक प्रतीकात्मक जगह थी - उनके पूर्वज हुमायूं का मकबरा, जो अब उनके वंशज के लिए आखिरी शरणगाह बन गया था। लेकिन ब्रिटिश सेना पीछा नहीं छोड़ रही थी।

ब्रिटिशों के पास एक जासूस था जिसका नाम विलियम हडसन था। उसने इलाही बख्श और हकीम अहसानुल्लाह खान से जानकारी ली कि बादशाह कहां छिपे हैं। इन्हीं लोगों ने जफर को सलाह दी कि अब लड़ने का कोई फायदा नहीं है और आत्मसमर्पण ही एकमात्र रास्ता है।

बहादुर शाह ज़फ़र - विकिपीडिया

जफर का आत्मसमर्पण

20 सितंबर, 1857 की सुबह, मेजर विलियम हडसन अपने सैनिकों के साथ हुमायूं के मकबरे के बाहर पहुंच गया। उस समय, बहादुर शाह जफर एक छोटी सी टुकड़ी के साथ मकबरे के अंदर थे।

हडसन ने उन्हें पैगाम भिजवाया कि अगर वह आत्मसमर्पण कर देते हैं, तो उनकी और उनकी बेगम जीनत महल की जान बख्श दी जाएगी। जफर के पास कोई विकल्प नहीं था। अपनी बेगम और परिवार की जान बचाने के लिए उन्होंने आत्मसमर्पण करने का फैसला किया।

वह अपनी बेगम और कुछ करीबी रिश्तेदारों के साथ मकबरे से बाहर आए। उनका चेहरा उदास था और उनकी आंखें नम थीं। उन्होंने अपने पूर्वजों के उस विशाल मकबरे को देखा और फिर ब्रिटिश ऑफिसर हडसन को। हडसन ने अपना वादा दोहराया कि वह बादशाह और बेगम को कुछ नहीं करेग लेकिन उनके बेटों को लेकर कोई वादा नहीं किया।

यह पल इतना मार्मिक था कि इतिहासकार भी इसे मुगल साम्राज्य का सबसे दुखद और अपमानजनक क्षण मानते हैं। जिस बादशाह का कभी हिंदुस्तान पर राज था, वह अब एक ब्रिटिश अधिकारी के सामने झुक रहा था।

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लाल किले पर एक कैदी बनकर वापसी

आत्मसमर्पण के बाद, हडसन ने बहादुर शाह जफर को कैदी बनाकर उसी लाल किले में वापस लाया। लेकिन इस बार वह बादशाह की हैसियत से नहीं, बल्कि एक मुजरिम की तरह लाए गए।

इसके ठीक अगले दिन, हडसन ने जफर के तीन बेटों - मिर्जा मुगल, मिर्जा खिजर सुल्तान और मिर्जा अबू बक्र को भी हुमायूं के मकबरे से पकड़ लिया।

उसने उन्हें दिल्ली गेट के पास एक पेड़ के नीचे खड़ा करके बेरहमी से गोली मार दी। यह क्रूरता इतनी भयावह थी कि खुद ब्रिटिश सैनिक भी इसे देखकर हैरान थे।

बाद में, हडसन ने उन तीनों के सिर काटकर एक थाली में सजाकर बहादुर शाह जफर के सामने पेश किए। यह एक पिता के लिए सबसे दर्दनाक और दिल दहला देने वाला क्षण था।

मिक्स टेप सीरीज़: बहादुर शाह ज़फ़र

मुकदमे से लेकर रंगून तक का सफर

इसके बाद बहादुर शाह जफर पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। यह इतिहास का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण मुकदमा था। जफर पर ब्रिटिश सरकार (British period) के खिलाफ बगावत करने और अंग्रेजी अधिकारियों की हत्या करने का आरोप था।

यह मुकदमा एक दिखावा था क्योंकि फैसला पहले ही तय हो चुका था। 29 मार्च, 1858 को उन्हें दोषी पाया गया और उन्हें आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। उन्हें भारत से दूर बर्मा (आज के म्यांमार) के रंगून शहर भेज दिया गया।

अपनी अंतिम सांसों तक वह वहीं रहे, एक कैदी बनकर। 7 नवंबर, 1862 को उन्होंने रंगून में अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु के साथ ही भारत से मुगल साम्राज्य का पूरी तरह से अंत हो गया।

बहादुर शाह जफर का आत्मसमर्पण सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक गौरवशाली इतिहास का दुखद अंत था। उनकी कब्र पर उनकी एक शायरी लिखी है, जो उनके दर्द को बयां करती है:

“कितना है बदनसीब जफर दफन के लिए, दो गज जमीन भी न मिली कू-ए-यार में।” यानी, "जफर कितना बदनसीब है कि उसे अपने प्रिय देश में दफन होने के लिए दो गज जमीन भी नहीं मिली।"

संदर्भ (Sources):

  • The Last Mughal: The Fall of a Dynasty, Delhi, 1857 by William Dalrymple
  • British official records of the trial of Bahadur Shah Zafar.

20 सितंबर का इतिहास

हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता है और 20 सितंबर का दिन भी इतिहास (आज की यादगार घटनाएं) में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए दर्ज है।

इस दिन दुनिया में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने इतिहास की दिशा बदल दी। आइए जानते हैं 20 सितंबर को भारत और विश्व में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में, जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ा सकती हैं।

दुनियाभर में हुई महत्वपूर्ण घटनाएं

1066: नॉर्वे के राजा हैराल्ड तृतीय ने इंग्लैंड के टॉस्टिग गोडविंसन के साथ मिलकर, यॉर्क, इंग्लैंड के पास फुलफोर्ड की लड़ाई में उत्तरी अर्लस एडविन और मोरकर को हराया।

1260: बाल्ट्स के प्रूसिएन्ट्रिब द्वारा दूसरा प्रमुख प्रशियाई विद्रोह, ट्युटोनिक शूरवीरों के खिलाफ शुरू हुआ।

1498: जापान में मेयो नांकाइडो भूकंप से आई सूनामी ने कामाकुरा में कोटकु-इन में स्थित विशाल बुद्ध प्रतिमा को बनाने वाली इमारत को नष्ट कर दिया।

1697: फ्रांस और ग्रैंडअलांस के बीच राइजविक की संधि पर हस्ताक्षर हुए, जिसने नौ साल के युद्ध को समाप्त किया।

1797: यूएस फ्रिगेट संविधान (ओल्ड इरोनसाइड्स) को बोस्टन में लॉन्च किया गया।

1803: आयरिश विद्रोही रॉबर्ट एम्मेट को फाँसी दी गई।

1819: कार्ल्सबैड डिक्रस पूरे जर्मन परिसंघ में जारी किए गए।

1831: गॉर्डन ब्रान्ज़ ने भाप से चलने वाली पहली बस बनाई, जिसमें 30 लोगों के बैठने की क्षमता थी और यह बहुत धीमी गति से चलती थी।

1839: नीदरलैंड के पहले रेल मार्ग, एम्स्टर्डम से हार्लेम का उद्घाटन हुआ।

1848: विज्ञान की प्रगति के लिए अमेरिकन एसोसिएशन की स्थापना हुई।

1857 : अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फर ने आत्मसमर्पण किया। कैदी बनाकर लाल किले लाए गए।

1867: ऑस्ट्रिया में हंगरी के विलय के बाद फ्रांसवा जोसेफ़ औपचारिक रूप से ऑस्ट्रिया-हंगरी के सम्राट बने।

1881: चेस्टर ए. आर्थर ने अमेरिका के 21वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली।

1884: सैन फ्रांसिस्को में 'इचल राइट्स पार्टी' का गठन हुआ।

1906: उस समय का सबसे बड़ा और सबसे तेज़ जहाज, दुनिया का महासागर लाइनर आरएमएस मूरतनिया लॉन्च किया गया।

1925: हेरोल्ड लॉयड की कॉमेडी फिल्म द फ्रेशमैन परदे पर दिखाई गई।

1943: द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, ऑस्ट्रेलियाई सैनिकों ने न्यू गिनी में काईपिट की लड़ाई में शाही जापानी सैनिकों को हराया।

1946: पहला कान फिल्म महोत्सव फ्रांस के कान्स शहर में शुरू हुआ।

1954: आईबीएम द्वारा विकसित फोरट्रान भाषा के पहले प्रोग्राम को कंप्यूटर पर चलाया गया।

1970: रूसी प्रोब ने चाँद की सतह से कुछ चट्टानें इकट्ठा कीं।

1971: हरिकेन इरेन अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर को सफलतापूर्वक पार करने वाला पहला ज्ञात उष्णकटिबंधीय चक्रवात बना।

1973: प्रसिद्ध 'बैटल ऑफ द सेक्सेस' में बिली जीन किंग ने जीत हासिल की।

1977: पश्चिमी सोवियत संघ, फिनलैंड और डेनमार्क में अज्ञात खगोलीय घटनाओं की एक श्रृंखला देखी गई।

1984: द कॉस्बी शो का पहला एपिसोड प्रसारित हुआ, जो लगातार पाँच साल तक सबसे ज़्यादा रेटिंग पाने वाले अमेरिकी शो में से एक बन गया।

1990: अमेरिका ने नेवादा परीक्षण स्थल पर परमाणु परीक्षण किया।

1992: फ्रांसीसी मतदाताओं ने मास्ट्रिच संधि को मंज़ूरी दी।

1995: संयुक्त राष्ट्र महासभा का 50वां अधिवेशन हुआ।

2001: अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू. बुश ने अल-कायदा और अन्य वैश्विक आतंकवादी समूहों के खिलाफ 'आतंक पर युद्ध' की घोषणा की।

2007: कनाडाई डॉलर 1976 के बाद पहली बार अमेरिकी डॉलर के बराबर पहुंच गया।

2007: अमेरिका के लुइसियाना में छह अश्वेत युवकों के समर्थन में 15,000 से 20,000 प्रदर्शनकारियों ने मार्च किया, जिन्हें अपने श्वेत सहपाठी को प्रताड़ित करने का आरोप था।

2008: पाकिस्तान के इस्लामाबाद में मैरियट होटल के सामने एक ट्रक में हुए विस्फोट में 54 लोगों की मौत हो गई और 26 अन्य घायल हो गए।

2009: टैडग केनेली केरी के साथ ऑल-आयरलैंड सीनियर फुटबॉल चैम्पियनशिप फाइनल जीतकर ऑस्ट्रेलियाई नियम फुटबॉल और गेलिक फुटबॉल में शीर्ष पुरस्कार जीतने वाले पहले व्यक्ति बन गए।

2010: बृहस्पति ग्रह 1963 के बाद पृथ्वी के सबसे करीब आया, जिससे यह नग्न आँखों से भी दिखाई देने लगा।

2011: अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर "न पूछो, न बताओ" सैन्य नीति को समाप्त कर दिया, जिससे समलैंगिक कर्मियों को खुले तौर पर सेना में सेवा करने की अनुमति मिली।

2013: अमेरिकी ओबामा प्रशासन और ईपीए ने प्रस्ताव दिया कि नए कोयला संयंत्र वर्तमान संयंत्रों की तुलना में कम से कम 40% स्वच्छ होंगे।

2014: इराक के मोसुल से जून में अगवा किए गए 49 तुर्की बंधकों को तुर्की सरकार के एक ऑपरेशन के बाद मुक्त कर दिया गया।

भारत में हुई महत्वपूर्ण घटनाएं

1933: थियोसोफिस्ट और महिला अधिकारों की समर्थक, एनी बेसेन्ट का निधन हुआ।

2005: पूर्वी राज्य मणिपुर में एक आतंकवादी हमले में 4 भारतीय सैनिक शहीद हुए ।

2008: पाकिस्तान ने अपने पानी में घुसने के आरोप में 13 भारतीय मछुआरों को हिरासत में लिया।

2012: भारत में ट्रेड यूनियनों ने हड़ताल की, जो विदेशी निवेश के लिए सुपरमार्केट खोलने की सरकारी योजनाओं के विरोध में थी।

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