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4 अक्टूबर 1977 यह सिर्फ एक तारीख नहीं है, बल्कि भारतीय इतिहास और हिंदी भाषा के लिए गौरवशाली मील का पत्थर है।
इसी दिन, भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के मंच से हिंदी में भाषण दिया, जिसने दुनिया के सबसे बड़े कूटनीतिक मंच पर भारत की सांस्कृतिक पहचान और भाषाई शक्ति की छाप छोड़ी।
यह केवल एक भाषण नहीं था; यह लोकतंत्र की बहाली, गुटनिरपेक्षता की दृढ़ता और वसुधैव कुटुंबकम् के भारतीय दर्शन का विश्व पटल पर किया गया औपचारिक संदेश था।
यह घटना न केवल भारत के सांस्कृतिक गौरव को दर्शाती है बल्कि कूटनीतिक साहस का भी प्रमाण है।
एक असाधारण क्षण का जन्म
1977 का साल भारत के लिए असाधारण था। देश ने हाल ही में आपातकाल का काला दौर देखा था। इसके बाद हुए आम चुनावों में, पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई, जिसके प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे।
अटल बिहारी वाजपेयी, जो कि भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में से एक थे और अपनी प्रखर वाक्पटुता के लिए जाने जाते थे, उन्हें इस नई सरकार में विदेश मंत्री बनाया गया।
यह जिम्मेदारी उन्हें तब मिली, जब भारत को विश्व मंच पर अपनी लोकतांत्रिक साख को फिर से स्थापित करने की सख्त जरूरत थी। संयुक्त राष्ट्र महासभा का 32वां अधिवेशन इसी संदर्भ में हो रहा था।
वाजपेयी न्यूयॉर्क पहुंचे और उन्होंने वह फैसला लिया, जिसने उन्हें हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में अमर कर दिया: वह दुनिया के सामने भारत की राजभाषा हिंदी में बोलेंगे।
जब संयुक्त राष्ट्र में गूंजी हिंदी
4 अक्टूबर 1977 को, अटल बिहारी वाजपेयी (atal vihari vajpayee) महासभा के पोडियम पर खड़े हुए। उन्होंने भाषण की शुरुआत में अपने चिरपरिचित अंदाज में थोड़ा संकोच दिखाया, लेकिन फिर आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रखी।
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शुरुआत में आत्मविश्वास और विनम्रता:
"अध्यक्ष महोदय, मैं भारत की जनता की ओर से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामनाओं का संदेश लाया हूं। महासभा के इस 32वें अधिवेशन के अवसर पर मैं राष्ट्र संघ में भारत की दृढ़ आस्था को पुनः व्यक्त करना चाहता हूं। मैं भले ही संयुक्त राष्ट्र संघ में नया हूं, लेकिन मेरा देश नया नहीं है।"
लोकतंत्र की बहाली का संदेश
आपातकाल के बाद, दुनिया भारत की ओर देख रही थी। वाजपेयी ने इस मौके का इस्तेमाल लोकतंत्र की जीत का ऐलान करने के लिए किया।
"जनता सरकार को शासन की बागडोर संभाले केवल छह मास हुए हैं। फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियांं उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं। जिस भय और आतंक के वातावरण ने हमारे लोगों को घेर लिया था, वह अब दूर हो गया है।"
उन्होंने आगे कहा कि ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिससे यह सुनिश्चित हो जाए कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का अब फिर कभी हनन नहीं होगा। यह बयान दुनिया को दिया गया एक मजबूत आश्वासन था।
वसुधैव कुटुंबकम् और आम आदमी की गरिमा
वाजपेयी के भाषण का मूल केंद्र भारत की सदियों पुरानी फिलॉसफी 'वसुधैव कुटुंबकम्' था। उन्होंने राष्ट्रों की सत्ता से ज्यादा आम आदमी की प्रतिष्ठा पर जोर दिया:
"यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं। आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए कहीं अधिक महत्व रखती है।
हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से नापी जानी चाहिए कि क्या हम पूरे मानव समाज, वस्तुतः हर नर-नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ति देने में प्रयत्नशील हैं।"
विश्व के गंभीर मुद्दे और कड़ा रुख
अपने 40 मिनट से अधिक के संबोधन में उन्होंने वैश्विक मंच पर कई गंभीर मुद्दे उठाए, जहां उन्होंने भारत का स्पष्ट रुख सामने रखा:
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रंगभेद पर हमला:
उन्होंने अफ्रीका का उदाहरण देते हुए रंगभेद के सभी रूपों को जड़ से खत्म करने की जोरदार वकालत की। उन्होंने कहा कि रंगभेद में विश्वास रखने वाला अल्पसंख्यक किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन नहीं कर सकता।
फिलिस्तीन और इजरायल:
उन्होंने इजरायल द्वारा वेस्ट बैंक और गाजा में नई बस्तियां बसाकर जनसंख्या परिवर्तन करने के प्रयत्न को संयुक्त राष्ट्र (UN) से पूरी तरह अस्वीकार और रद्द करने की मांग की।
परमाणु निरस्त्रीकरण:
वाजपेयी ने साफ किया कि भारत न तो आण्विक शस्त्र शक्ति है और न ही बनना चाहता है। हालांकि, यह बात अलग है कि 1998 में उन्हीं के प्रधानमंत्री रहते पोखरण में परमाणु परीक्षण किया गया।
भाषण का प्रभाव और परिणाम
वाजपेयी का यह भाषण इतिहास में केवल हिंदी के कारण ही नहीं, बल्कि इसकी विषय वस्तु की स्पष्टता और ईमानदारी के कारण भी दर्ज हुआ।
विश्वव्यापी तालियां:
जब उन्होंने अपना भाषण हिंदी में समाप्त किया, तो सभागार में मौजूद दुनिया भर के नेताओं और प्रतिनिधियों ने खड़े होकर उनके लिए तालियां बजाईं। यह हिंदी के साथ-साथ भारत के लोकतंत्र की बहाली का भी सम्मान था।
हिंदी का मान:
इस दिन से, हिंदी को अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक वैश्विक भाषा के रूप में एक नई पहचान मिली। यह पहली बार था जब भारत की राजभाषा आधिकारिक रूप से इस मंच पर गूंजी।
कूटनीतिक मील का पत्थर:
इस भाषण को भारतीय कूटनीति के इतिहास में एक मील का पत्थर माना जाता है, जिसने दुनिया को दिखाया कि भारत अपनी सांस्कृतिक विरासत पर गर्व करता है और अपनी शर्तों पर वैश्विक मामलों में अपनी बात रख सकता है।
जय जगत:
वाजपेयी ने अपने भाषण का समापन पारंपरिक अभिवादन 'धन्यवाद' के साथ-साथ 'जय जगत' कहकर किया, जो उनके विश्व बंधुत्व के विचार को दर्शाता था।
वाजपेयी जी की ओजस्वी भाषा शैली और सहजता ने विश्व के नेताओं पर एक अमिट छाप छोड़ी। उनके भाषण के अंत में जब उन्होंने "जय जगत" कहा, तो सभागार में मौजूद कई नेताओं ने खड़े होकर उनका अभिनंदन किया।
नई विदेश नीति:
यह भाषण जनता सरकार की विदेश नीति का आईना था—जो शांति, अ-संरेखण और सभी देशों के साथ दोस्ती पर आधारित थी।
वैश्विक मंच पर अंग्रेजी के वर्चस्व के बीच हिंदी में बोलना एक साहसिक और प्रतीकात्मक कदम था, जिसने दुनिया को भारत की सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहने का संदेश दिया।
इस घटना के बाद, संयुक्त राष्ट्र (UN) में हिंदी को एक महत्वपूर्ण भाषा के रूप में पहचान मिली और आगे चलकर भारत के कई प्रतिनिधि, प्रधानमंत्री और विदेश मंत्रियों ने संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में अपनी बात रखी।
यह सब 4 अक्टूबर 1977 को अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा शुरू की गई एक ऐतिहासिक परंपरा का हिस्सा बन गया। आज भी यह क्षण हर भारतीय के लिए गर्व का विषय है।
अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी कविताई और ओजस्वी वाणी से हिंदी को सात समंदर पार तक पहुंचा दिया, यह साबित करते हुए कि भाषा नहीं बल्कि आपकी बात का वजन मायने रखता है।
अटल जी के सबसे प्रसिद्ध भाषणों की दमदार पंक्तियां
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संयुक्त राष्ट्र (UN) में हिंदी की पहली गूंज (1977):
"मैं संयुक्त राष्ट्र संघ के इस 32वें अधिवेशन में भारत के प्रतिनिधिमंडल का सदस्य बनकर आया हूं। मुझे यह सौभाग्य मिला है कि मैं अपने देश की जनभाषा हिंदी में अपना वक्तव्य आपके सामने प्रस्तुत करूं।" (इस भाषण ने हिंदी को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर स्थापित किया।)
कारगिल युद्ध के दौरान संसद में (1999):
"युद्ध किसी भी समस्या का हल नहीं है, लेकिन अगर युद्ध थोपा जाता है, तो हम पीठ दिखाकर भागने वाले नहीं हैं।" (यह पंक्ति राष्ट्रीय संकल्प और सुरक्षा के प्रति उनकी दृढ़ता दिखाती है।)
पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद (1998):
"हमने अपनी परमाणु नीति में आत्मसंयम का परिचय दिया है। हमारा यह कदम शांति के लिए है, किसी पर आक्रमण के लिए नहीं।" (इससे भारत की मजबूत और जिम्मेदार छवि सामने आई।)
संसद में विश्वास मत के दौरान (1996):
"आज मैं सदन से अपना मत लेने जा रहा हूं। लेकिन मैं अपने इस्तीफे से पहले यह स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारें आएंगी, जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेंगी, मगर यह देश रहना चाहिए।" (सत्ता से ऊपर राष्ट्र को रखने की उनकी महान सोच।)
कवि के रूप में उनका जीवन दर्शन:
"हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा, काल के कपाल पर लिखता मिटाता हूं, गीत नया गाता हूं।" (यह उनकी व्यक्तिगत दृढ़ता और कभी न हार मानने वाले जज्बे को दर्शाती है।)
Reference Links
यह लेख विभिन्न समाचार स्रोतों, सरकारी अभिलेखागारों और ऐतिहासिक लेखों पर आधारित है जो अटल बिहारी वाजपेयी के 1977 के संयुक्त राष्ट्र हिंदी भाषण का विवरण देते हैं।
Atal Bihari Vajpayee UN General Assembly 1977 Hindi speech
वाजपेयी का संयुक्त राष्ट्र में 1977 का हिंदी भाषण
4 अक्टूबर 1977 संयुक्त राष्ट्र महासभा
Vajpayee Vasudhaiva Kutumbakam UN speech
4 अक्टूबर की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाएं
हर दिन का अपना एक अलग महत्व होता है और 4 अक्टूबर का दिन भी इतिहास (आज की यादगार घटनाएं) में कई महत्वपूर्ण घटनाओं के लिए दर्ज है।
इस दिन दुनिया में कई ऐसी घटनाएं हुईं, जिन्होंने इतिहास की दिशा बदल दी। आइए जानते हैं 4 अक्टूबर को भारत और विश्व में घटी कुछ प्रमुख घटनाओं के बारे में, जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ा सकती हैं।
विश्व इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाएं
1227: खलीफा अल-आदिल की हत्या की गई।
1725: अर्जेंटीना में रोजारियो शहर की स्थापना की गई।
1779: अमेरिकी क्रांति के दौरान फिलाडेल्फिया में 'द फोर्ट विल्सन' दंगे हुए।
1824: मेक्सिको ने अपना पहला संविधान लागू किया और एक गणराज्य राज्य बना।
1830: नीदरलैंड से अलग होकर बेल्जियम एक स्वतंत्र साम्राज्य बन गया।
1832: बावेरिया के राजकुमार ओटो ग्रीस के पहले राजा (ओथॉन) बने।
1862: कुरिन्थ का युद्ध समाप्त हुआ।
1876: टेक्सास ए एंड एम विश्वविद्यालय, टेक्सास राज्य में पहली सार्वजनिक शिक्षण संस्थान के रूप में खोला गया।
1880: कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California) की स्थापना लॉस एंजिल्स में की गई।
1895: पहला यू.एस. ओपन गोल्फ टूर्नामेंट न्यूपोर्ट, रोड आइलैंड में आयोजित किया गया।
1910: पुर्तगाल में क्रांति होने पर अंतिम राजा मैनुअल II गिब्राल्टर भाग गए।
1917: प्रथम विश्व युद्ध में, अंग्रेजों ने ब्रूडोस्सिंडे की लड़ाई में जर्मन रक्षा को तबाह कर दिया।
1918: अमेरिका के न्यूजर्सी में एक बारूद संयंत्र में विस्फोट हुआ, जिससे 100 से अधिक लोगों की मौत हुई।
1921: मिशिगन राज्य में तपेदिक (Tuberculosis) से होने वाली मौतों की मात्रा में वृद्धि की खबर आई।
1928: जर्मन मतदाताओं ने राष्ट्रीय जनमत संग्रह में नई युद्धपोतों के निर्माण को मंजूरी दी।
1941: विली गिलिस, जो नॉर्मन रॉकवेल के पात्रों में से एक हैं, ने शनिवार की शाम पोस्ट के कवर पर शुरुआत की।
1956: ग्रेट ब्रिटेन ने आस्ट्रेलिया में परमाणु परीक्षण किया।
1957: सोवियत संघ ने मानव इतिहास का पहला कृत्रिम उपग्रह, स्पुतनिक 1 (Sputnik 1), सफलता से अंतरिक्ष में पहुँचाया।
1958: फ्रेंच फिफ्थ रिपब्लिक (French Fifth Republic) का वर्तमान राजनीतिक संविधान पेश किया गया।
1963: क्यूबा और हैती में चक्रवाती तूफान ‘ह्याफ्लोराह्ण’ से लगभग छह हजार लोग मारे गए।
1966: लेसोथो देश ने ब्रिटेन से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की और आज का दिन वहाँ राष्ट्रीय दिवस के रूप में मनाया जाता है।
1969: चीन ने घोषणा की कि उसने हाइड्रोजन बम के बाद अपना पहला भूमिगत परमाणु विस्फोट सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है।
1976: यूनाइटेड किंगडम में इंटर-सिटी 125 हाई स्पीड ट्रेन सेवा पेश की गई।
1984: टिम मैकार्टनी-स्नैप और ग्रेग मोर्टिमर माउंट एवरेस्ट के शिखर सम्मेलन के लिए पहले ऑस्ट्रेलियाई बने।
1985: फ्री सॉफ्टवेयर फाउंडेशन की स्थापना मैसाचुसेट्स, यूएसए में हुई।
1992: एक इज़राइली कार्गो जेट एम्स्टर्डम में एक अपार्टमेंट इमारत में दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिससे लगभग 100 लोगों की जान गई।
1993: रूसी संवैधानिक संकट के दौरान, टैंक ने मॉस्को में व्हाइट हाउस (संसद भवन) पर बमबारी की।
1996: पाकिस्तानी क्रिकेटर शाहिद अफरीदी ने श्रीलंका के खिलाफ 37 गेंदों में शतक बनाकर रिकॉर्ड बनाया।
2000: चांग चून शियुंग ताइवान के नए प्रधानमंत्री बने।
2003: इज़राइल के हाइफा में एक आत्मघाती हमलावर ने मैक्सिम रेस्तरां के अंदर 21 लोगों को मार डाला।
2010: पश्चिमी हंगरी में एक बेकार जलाशय का बांध ध्वस्त हो गया, जिससे लाल मिट्टी का रिसाव हुआ और कम से कम नौ लोगों की मौत हुई।
2010: अफगानिस्तान के नाटो बलों के लिए इरादा एक दर्जन से अधिक तेल टैंकरों पर पाकिस्तान के रावलपिंडी में एक मशाल का हमला हुआ।
2011: Apple Inc. ने Apple के क्यूपर्टिनो कैंपस में अपने बहुप्रतीक्षित iPhone 4S का खुलासा किया।
2012: जर्मनी के पूर्व रेसिंग ड्राइवर माइकल शूमाकर ने संन्यास की घोषणा की।
2012: एफबीआई ने लीबिया के बेनगाजी में अमेरिकी वाणिज्य दूतावास पर हमले की अपनी जांच केवल एक दिन में की।
2014: थॉमस एरिक डंकन, अमेरिका में इबोला के लिए अस्पताल में भर्ती होने वाले पहले रोगी बने।
भारत इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाएं
1977: भारत के विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा (UN General Assembly) की बैठक को हिंदी में संबोधित किया, जो हिंदी में दिया गया पहला संबोधन था।
1977: भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी को राजनीतिक भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद पुलिस हिरासत से 16 घंटे बाद रिहा कर दिया गया था।
1986: भारतीय हेलिकॉप्टर निगम (Indian Helicopter Corporation) की स्थापना हुई।
2013: आंध्र प्रदेश राज्य के विभाजन के समझौते के कारण सीमांध्र क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन और हमले हुए।
2015: भारतीय फिल्म निर्देशक एवं निर्माता इदिदा नागेश्वर राव का निधन हुआ।
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