मध्य प्रदेश की संस्कृति, परंपरा और आत्म-अभिव्यक्ति का संगम है बाग प्रिंट

मध्यप्रदेश के बाग कस्बे की प्रसिद्ध बाग प्रिंट कला को मोहम्मद यूसुफ खत्री और उनके परिवार ने पुनर्जीवित किया, जिससे यह कला न केवल भारत में, बल्कि विश्वभर में सम्मानित हो गई।

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Kaushiki
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ताहिर अली 

मध्यप्रदेश के धार जिले का एक छोटा सा कस्बा बाग के नाम से जाना जाता है। इस कस्बे की हस्तकला ने इसे एक विशिष्ट पहचान दिलाई है। बाग प्रिंट, जो एक प्राचीन और सुंदर कला है, यहां के शिल्पकारों द्वारा विकसित और संरक्षित की गई है। यह कला, जो प्राकृतिक रंगों और लकड़ी के ब्लॉकों का उपयोग करके कपड़ों पर सुंदर डिजाइन उकेरती है।

इस कला के पुनरुद्धार में मोहम्मद यूसुफ खत्री और उनके परिवार का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है। उनके अथक प्रयासों और समर्पण ने बाग प्रिंट को न केवल भारत, बल्कि दुनिया भर में एक सम्मानित स्थान दिलाया है।

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बाग प्रिंट: ऐतिहासिक धरोहर का पुनर्जागरण

बाग प्रिंट की कला की जड़ें सदियों पुरानी हैं और यह खत्री समुदाय द्वारा संरक्षित और संवर्धित की जाती रही है। हालांकि, शुरू में यह कला स्थानीय लोगों की आवश्यकता तक सीमित थी, लेकिन आधुनिकता और मिलावटी रंगों के आगमन ने इसके पारंपरिक रूप को खतरे में डाल दिया था।

बाग प्रिंट को पुनर्जीवित करने में स्वर्गीय इस्माईल खत्री का योगदान सबसे अहम था। उन्होंने इस कला को एक नया रूप दिया और इसके संरक्षण के लिए कई नवाचार किए। प्राकृतिक रंगों के उपयोग को बढ़ावा देकर उन्होंने इसे पुनः लोकप्रिय बनाया। स्वर्गीय इस्माईल खत्री की पहल को उनके परिवार ने बड़े गर्व और निष्ठा के साथ आगे बढ़ाया है।

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कई शिल्पकारों का योगदान

इस कला के संरक्षण और वैश्विक पहचान में कई अन्य शिल्पकारों का योगदान रहा है, जैसे मो. यूसुफ़ खत्री, स्व. मो. अब्दुल क़ादर खत्री, रशीदा बी खत्री, बिलाल खत्री, मो. रफीक खत्री, उमर मो. फारूख खत्री, मो. काज़ीम खत्री, मो. आरिफ खत्री, अब्दुल करीम खत्री, गुलाम मो. खत्री, कासिम खत्री, अहमद खत्री और मोहम्मद अली खत्री। यह परिवार अपने सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हुए बाग प्रिंट को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक पहचान दिलाने में सक्रिय रूप से जुटा है।

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बाग प्रिंट को जीवित रखने की यात्रा

बाग प्रिंट को जीवित रखने और उसे वैश्विक मंच पर स्थापित करने में खत्री परिवार की कई पीढ़ियों का योगदान है। एक समय था जब यह कला लगभग विलुप्त हो रही थी, लेकिन स्वर्गीय इस्माईल खत्री ने इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। उन्होंने पारंपरिक तरीकों में नए प्रयोग किए, जिससे बाग प्रिंट को नया जीवन मिला।

स्वर्गीय अब्दुल कादर खत्री और मोहम्मद यूसुफ खत्री ने इस कला को केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी एक पहचान दिलाई। उनके प्रयासों ने इस प्रिंटिंग तकनीक को धार जिले से बाहर फैलाकर उसे वैश्विक पहचान दिलाई। इस कला को लेकर खत्री परिवार के सदस्यों का दृष्टिकोण यह है कि यह केवल एक व्यवसाय नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक आंदोलन है।

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परिवार का दृष्टिकोण

"हमारे पिता ने हमें सिखाया कि कला केवल जीविका का साधन नहीं, बल्कि आत्मा की अभिव्यक्ति है," मो. यूसुफ़ खत्री कहते हैं। उनका मानना है कि बाग प्रिंट को संजोना और बढ़ावा देना केवल एक परिवार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि समाज की जिम्मेदारी है। उनके बेटे श्री बिलाल खत्री भी इस कला को वैश्विक पहचान दिलाने के लिए काम कर रहे हैं।

उनका सपना है कि बाग प्रिंट को एक ब्रांड के रूप में पहचाना जाए और इसे और भी ऊंचाइयों तक पहुंचाया जाए। रशीदा बी खत्री, जो इस कला के संरक्षण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं, कहती हैं, "हम सब इस कला के लिए एकजुट हैं। यह सिर्फ हमारा व्यवसाय नहीं, बल्कि हमारी परंपरा और पहचान है। जब हम किसी कपड़े पर हाथ से छपाई करते हैं, तो उसमें हमारी आत्मा झलकती है।"

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बाग प्रिंट का सांस्कृतिक महत्व

बाग प्रिंट एक हस्तशिल्प नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक धरोहर है, जो भारतीय कला और संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह कला परंपरा और आधुनिकता का संगम है, जो समय के साथ अपने मूल रूप को बनाए रखते हुए आधुनिक परिवर्तनों के साथ मेल खाती रही है। हालांकि, इसे केवल एक परिवार की जिम्मेदारी नहीं मानते हुए पूरे समाज को इस धरोहर को संजोने में अपना योगदान देना चाहिए।

बाग प्रिंट को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने में खत्री परिवार की मेहनत और समर्पण को सराहते हुए यह भी जरूरी है कि सरकार और समाज इस कला को और भी बढ़ावा दें। आर्ट फंडिंग, डिजाइन इनोवेशन, और डिजिटल मार्केटिंग जैसी आधुनिक तकनीकों का उपयोग करके इसे और व्यापक रूप से प्रचारित किया जा सकता है।

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बाग प्रिंट की प्रक्रिया: परंपरा से आधुनिकता तक

बाग प्रिंट की प्रक्रिया पूरी तरह से पारंपरिक है, जिसमें कपड़े की तैयारी से लेकर रंगाई, छपाई और परिष्करण तक के कई चरण होते हैं। सबसे पहले कपड़े को प्राकृतिक रंगों और पारंपरिक विधियों से तैयार किया जाता है। इसके बाद लकड़ी के ब्लॉकों से हाथ से छपाई की जाती है, जिससे खूबसूरत डिजाइन उभरते हैं। इसके बाद कपड़े को प्राकृतिक रंगों के घोल में उबाला जाता है, जिससे रंगों में गहराई और चमक आती है।

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बाग प्रिंट के प्रमुख शिल्पकार

बाग प्रिंट को जीवित रखने और इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाने में कई प्रमुख शिल्पकारों का योगदान है। इनमें से स्वर्गीय इस्माईल खत्री, श्रीमती जैतून बी, स्वर्गीय अब्दुल कादर खत्री, रशीदा बी खत्री, मोहम्मद यूसुफ खत्री, हसीना खत्री, मोहम्मद रफीक खत्री, मोहम्मद दाऊद खत्री, उमर फारूक खत्री, मोहम्मद बिलाल खत्री, और अरिफ खत्री जैसे नाम प्रमुख हैं।

इन शिल्पकारों ने न केवल इस कला को संरक्षित किया है, बल्कि इसे एक नई दिशा भी दी है। मोहम्मद यूसुफ खत्री, जो बाग प्रिंट के एक प्रमुख शिल्पकार हैं, ने इसके साथ नई तकनीकों और डिजाइनों का प्रयोग किया है, जिससे बाग प्रिंट को एक वैश्विक पहचान मिली है।

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प्रधानमंत्री मोदी का योगदान

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भी बाग प्रिंट की महत्वता को पहचाना और उसे वैश्विक पहचान दिलाने के लिए कदम उठाए हैं। उन्होंने भोपाल में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के दौरान बाग प्रिंट के युवा शिल्पकार मोहम्मद आरिफ खत्री के स्टॉल का अवलोकन किया और बाग प्रिंट का ठप्पा लगाकर इसे प्रोत्साहित किया।

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भविष्य की दिशा

बाग प्रिंट को वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए खत्री परिवार की अगली पीढ़ी ने कई नवाचार किए हैं। वे पारंपरिक बाग प्रिंट को आधुनिक फैशन और डिज़ाइन के साथ जोड़ने के प्रयासों में लगे हैं। उनका उद्देश्य इस कला को सिर्फ कपड़ों तक ही सीमित न रखते हुए इसे होम डेकोर और एक्सेसरीज जैसे क्षेत्रों में भी फैलाना है।

बाग प्रिंट केवल एक कला नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति और धरोहर का एक जीवित उदाहरण है। इसे सुरक्षित रखने और इसे वैश्विक पहचान दिलाने के लिए खत्री परिवार और अन्य शिल्पकारों के योगदान को सराहना चाहिए। अगर हम इसे समय रहते संरक्षित नहीं करेंगे, तो यह केवल एक संग्रहालय की वस्तु बनकर रह जाएगा। इसलिए, यह जरूरी है कि हम सभी मिलकर इस अमूल्य धरोहर को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए कदम उठाएं।

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लेखक- ताहिर अली, ( सेवानिवृत्त संयुक्त संचालक जनसम्पर्क हैं )

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