जाति जनगणना में क्रीमीलेयर और उपवर्गीकरण की बड़ी चुनौती

विचार-मंथन में पढ़िए देश- दुनिया के जरूरी मुद्दों पर आखिर क्या सोचते हैं बड़े बुद्धिजीवी और विशेषज्ञ? सिर्फ thesootr.com पर पढ़िए और बनाइए अपनी समझ को व्यापक… तो आज बात कास्ट सेंसस के अवसर और चुनौतियों की 

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Caste census presents both challenges and opportunities

Caste census presents both challenges and opportunities Photograph: (thesootr.com)

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भारत में पहली बार 1931 के बाद जाति जनगणना का विवरण लिया जाएगा, लेकिन यह डेटा भारत के सकारात्मक कार्रवाई कार्यक्रमों पर किस हद तक प्रभाव डालेगा, इस पर भी सवाल उठ रहे हैं।
अब तक की जनगणनाओं में नागरिकों को मुख्य रूप से अनुसूचित जातियों (SC), अनुसूचित जनजातियों (ST), और धर्म के आधार पर वर्गीकृत किया गया था। 

दशकों से अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ी जातियों (OBCs) के लिए आरक्षण लागू है, लेकिन यह सवाल भी उठता रहा है कि इन आरक्षण लाभों का वास्तविक फायदा कौन से समुदाय या व्यक्ति उठा रहे हैं? 

आरक्षण का लाभ सिर्फ उन लोगों तक पहुंच रहा है, जो आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं या जिनके पास इसका सही तरीके से लाभ उठाने की स्थिति है। thehindu में प्रकाशित एक लेख ​Cast of characters: On the caste census के अनुसार कुछ जरूरी मुद्दे हैं, जिन पर विचार किया जाना आवश्यक है।  

1. "क्रिमी लेयर" का विचार और आर्थिक रूप से सक्षम वर्ग की अरुचि

क्रिमी लेयर: पिछले कुछ वर्षों से एक मांग उठाई जा रही है कि आर्थिक रूप से सक्षम वर्गों को आरक्षण से बाहर किया जाए, ताकि जिन लोगों को सच में मदद की जरूरत है, उन्हें इसका लाभ मिल सके। इस विचार को "क्रिमी लेयर" के नाम से जाना जाता है।

इसका उद्देश्य उन समुदायों को आरक्षण के लाभ से बाहर करना है, जो आर्थिक दृष्टि से समृद्ध हैं।

इसके अतिरिक्त, उपवर्गीकरण (sub-categorization) की भी मांग उठाई गई है ताकि छोटे या अधिक पिछड़े समुदायों को आरक्षण में स्थान मिल सके और वे बड़े समुदायों के बीच न दब जाएं।
यह भी सही है कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जातियों में से ऐसे वर्गों के लिए अलग से कैटेगराइज करने का फैसला दे दिया है। जिसे तमिलनाडु और हरियाणा ने अपने राज्यों में लागू करने के लिए हामी भर दी है। 

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2. उपवर्गीकरण पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय

2023 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने SC और ST समुदायों में उपवर्गीकरण को मंजूरी दी। इसका मतलब यह है कि इन समुदायों के भीतर भी आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर वर्गों को विशेष ध्यान दिया जाएगा।

इसके अलावा, न्यायमूर्ति जी. रोहिणी आयोग ने 2023 में OBCs में उपवर्गीकरण पर एक अध्ययन पूरा किया। यह अध्ययन यह देखने के लिए था कि OBCs के भीतर कौन से समूह वास्तव में अधिक पिछड़े हैं और उन्हें अधिक मदद की आवश्यकता है।

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3. संविधान में विवाद और निष्कर्षों की गोपनीयता

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने SC और ST समुदायों में उपवर्गीकरण पर बड़ा विवाद उत्पन्न किया है, क्योंकि यह विचार इन समुदायों के भीतर कई अन्य मुद्दों को उभार सकता है। इन समुदायों के विद्वानों का कहना है कि इस फैसले से एक ही वर्ग के भीतर कई वर्ग बनेंगे, जो देश के लिए किसी भी तरह से ठीक नहीं है। 

आयोग की रिपोर्ट के संभावित विवादित निष्कर्षों को देखते हुए सरकार ने इसके निष्कर्षों को गुप्त रखा है, ताकि किसी भी प्रकार के राजनीतिक विवाद से बचा जा सके।

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4. जाति समूहों का सामाजिक और राजनीतिक जीवन में प्रभाव

जाति अब भी समाज और राजनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है। जाति आधारित डेटा विकास योजनाओं के लिए बेहद आवश्यक है, क्योंकि इससे यह समझने में मदद मिलती है कि समाज के किस वर्ग को अधिक सहायता की आवश्यकता है।

हालांकि, सामाजिक वर्गों को पुनः नामांकित करने और पुनः वर्गीकृत करने की कोशिशों के चलते यह एक अनंत प्रक्रिया बन सकती है, जिससे किसी न किसी समूह को हमेशा असंतोष रहेगा।

5. जाति गणना की जटिलताएं

भारत में जाति का सही तरीके से वर्गीकरण करना एक कठिन कार्य है, क्योंकि यहां जातियों, उपजातियों और विभिन्न समूहों के बारे में कई परिभाषाएं हैं।

2011 की जनगणना के आंकड़ों में यह विसंगति साफ दिखी थी, क्योंकि इस डेटा में 46 लाख से ज्यादा विभिन्न जातियां दर्ज की गई थीं, जो जाति की वास्तविक पहचान और वर्गीकरण को लेकर उठने वाली जटिलताओं को दर्शाती है।

इसके अलावा, विभिन्न जातियों, जनजातियों और OBCs की पहचान करने के बारे में उच्च न्यायालयों में कई मुकदमे चल रहे हैं। इस मामले में अदालतों में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें जाति, जनजाति, और पिछड़े वर्गों को शामिल करने या बाहर करने की मांग की गई है।

6. जाति गणना की प्रक्रिया और राजनैतिक संवेदनशीलता

जाति गणना की प्रक्रिया को लेकर यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि कैसे जाति, उपजाति और समुदायों को वर्गीकृत किया जाएगा।

बिहार, कर्नाटक, और तेलंगाना में जाति गणना को लेकर जो राजनीतिक विवाद उठे हैं, वे इस बात को दर्शाते हैं कि यह प्रक्रिया संवेदनशील और विवादास्पद हो सकती है। इन राज्यों में जाति गणना को लेकर कई विरोधी राजनीतिक दलों के बीच तीव्र बहसें हुईं।

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आगे की राह कैसी हो
अब जबकि सभी राजनीतिक दल सिद्धांततः जाति गणना को स्वीकार कर चुके हैं, केंद्र सरकार को जाति गणना की प्रक्रिया और उसके निष्कर्षों पर एक सर्वसम्मति बनाने की आवश्यकता है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि यह प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से की जाए।

राजनीतिक दलों को मिलकर इस पर सहमति बनाने की जरूरत है ताकि जाति गणना का उद्देश्य पूरा हो सके और सभी समुदायों के लिए इसके परिणाम लाभकारी हो सकें।

इस प्रकार, जाति गणना का यह कदम न केवल सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह राजनीतिक दृष्टि से भी संवेदनशील हो सकता है। इसलिए इसे सटीक और तटस्थ तरीके से निष्पादित किया जाना चाहिए।

इस लेख के क्या मायने हैं? 
यह लेख भारत में आगामी जनगणना में जाति का विवरण लेने के फैसले के बारे में है। लेख में जाति आधारित आरक्षण प्रणाली और उसके प्रभावों को लेकर उठने वाले सवालों का उल्लेख किया गया है, जैसे कि "क्रिमी लेयर" और उपवर्गीकरण की आवश्यकता। इसके अलावा, जाति गणना के दौरान होने वाली जटिलताओं और राजनीति के प्रभाव को भी उजागर किया गया है। लेख का मुख्य उद्देश्य यह है कि जाति गणना की प्रक्रिया पारदर्शी और निष्पक्ष हो, ताकि समाज के सभी वर्गों का समुचित विकास सुनिश्चित किया जा सके।

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