जाति जनगणना में मुसलमानों की जातियां भी गिनी जाएंगी
भारत में मुस्लिम समुदाय की जातियों की गणना पहली बार जनगणना में की जाएगी, जिससे उनके सामाजिक और आर्थिक स्तर पर ठोस आंकड़े सामने आएंगे। यह कदम मुस्लिम राजनीति में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
भारत सरकार ने पहली बार मुस्लिम समुदाय के भीतर जातिवार गणना करने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। अब तक मुस्लिम समुदाय को एक धार्मिक समूह के रूप में ही गिना जाता था, लेकिन अब उनकी जातियों की गणना भी होगी। इससे मुस्लिम समाज के भीतर विभिन्न जातियों की संख्या, उनका सामाजिक और आर्थिक स्तर साफ तौर पर सामने आएगा।
बड़ सवाल- क्या मुसलमानों में भी होती हैं जातियां
जी हां, मुसलमानों में भी जातियां होती हैं। भारत में मुस्लिम समुदाय के भीतर विभिन्न जातियां और उप-समुदाय होते हैं, जिनकी पहचान धार्मिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर भी होती है। इन जातियों को आमतौर पर "उच्च" और "निचली" जातियों में बांटा जा सकता है, जैसे कि पसमांदा मुसलमान (backward Muslims) जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े होते हैं, और विभिन्न शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अलग-अलग जातिगत पहचान होती है।
मुसलमानों के बीच जातियों का अस्तित्व प्राचीन समय से रहा है, जो विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों और उनके पारंपरिक पेशों से जुड़ा हुआ है। भारत में मुस्लिम समुदाय में मुख्य रूप से चार प्रमुख वर्ग माने जाते हैं: शिया, सुन्नी, बोहरा और इस्माइली। इसके अलावा, भारतीय मुस्लिम समाज में "पसमांदा मुसलमान" (backward Muslims) और "अशरफ मुसलमान" (upper-caste Muslims) जैसे विभाजन भी पाए जाते हैं। हालांकि, यह ध्यान देने योग्य है कि मुस्लिम समुदाय का मुख्य धार्मिक पहचान इस्लाम है, लेकिन जातिवाद और सामाजिक भेदभाव कुछ इलाकों में आज भी मौजूद है।
मुस्लिम समुदाय में करीब 85 प्रतिशत आबादी पसमांदा (backward) मुसलमानों की है, जिनका समाज में कम प्रतिनिधित्व है। इस नई गणना के जरिए उनकी सही संख्या का पता चलेगा और उन्हें अधिक प्रतिनिधित्व की मांग करने का मौका मिलेगा। इसके परिणामस्वरूप भारतीय राजनीति में मुस्लिम वोटबैंक पर नए समीकरण बन सकते हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने इस फैसले पर केंद्र सरकार से पर्याप्त धन आवंटित करने की अपील की। विपक्षी दल इसे एक अहम कदम मानते हैं और इस बात से खुश हैं कि उनके द्वारा की गई मांग को सरकार ने माना।
पसमांदा मुसलमानों को अब अपने अधिकारों के लिए आवाज उठाने का अवसर मिलेगा, क्योंकि जातिवार गणना के बाद उनके बारे में ठोस आंकड़े सामने आएंगे। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि मुस्लिम समुदाय में जो बड़े राजनीतिक फैसले होते हैं, उसमें पसमांदा मुसलमानों की आवाज अक्सर अनसुनी रह जाती है।
भाजपा और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप
जातिवार गणना को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) और कांग्रेस के बीच आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला जारी है। भाजपा ने कांग्रेस पर यह आरोप लगाया कि वह सिर्फ सत्ता में आने के लिए सामाजिक न्याय का दिखावा करती है, जबकि कांग्रेस ने इसे मुस्लिम समुदाय के लिए एक अहम कदम बताया।
भारत सरकार ने हाल ही में वक्फ संशोधन कानून पारित किया, जिसमें पसमांदा मुसलमानों को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। इस कानून के तहत वक्फ बोर्डों में दो सदस्य पसमांदा मुसलमानों के होंगे। इससे पसमांदा समुदाय को अपनी आवाज उठाने का नया मंच मिलेगा।
FAQ
जातिवार गणना में मुस्लिम समाज को क्यों शामिल किया गया है?
जातिवार गणना का उद्देश्य मुस्लिम समाज के भीतर विभिन्न जातियों की संख्या और उनके सामाजिक, आर्थिक, और शैक्षणिक स्थिति का सही आंकड़ा इकट्ठा करना है। इससे उन्हें उनके अधिकारों के लिए आवाज उठाने में मदद मिलेगी।
क्या जातिवार गणना से मुस्लिम वोटबैंक की राजनीति पर असर पड़ेगा?
हां, मुस्लिम समुदाय के भीतर पसमांदा मुसलमानों की संख्या और उनके बारे में ठोस आंकड़े सामने आने से राजनीति में नए समीकरण बन सकते हैं, जो मुस्लिम वोटबैंक को प्रभावित कर सकते हैं।
पसमांदा मुसलमानों को उनके अधिकार मिल पाएंगे?
जातिवार गणना के बाद पसमांदा मुसलमानों की संख्या सामने आएगी, जिससे उन्हें राजनीतिक, सामाजिक, और शैक्षणिक क्षेत्रों में अधिक प्रतिनिधित्व मिलने की संभावना है।