औरंगजेब की प्रताड़ना से हुआ था छत्रपति संभाजी महाराज का बलिदान

भारत की संस्कृति और परंपराओं की रक्षा करने के लिए असंख्य बलिदानियों ने कठिनतम परिस्थितियों में संघर्ष किया। छत्रपति संभाजी महाराज जैसे महान योद्धाओं ने अत्यंत क्रूर प्रताड़ना सहते हुए भी अपने संकल्प को नहीं छोड़ा।

author-image
Kaushiki
एडिट
New Update
छत्रपती संभाजी महाराज जयंती
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

रमेश शर्मा 

पिछले दो हजार वर्षों में पूरी दुनिया का स्वरूप बदल चुका है। बहुत सी सभ्यताएं और संस्कृतियां समय के साथ समाप्त हो गईं, लेकिन भारत अपवाद है।

भारतीय संस्कृति और परंपराओं पर असंख्य आघात हुए हैं, लेकिन भारत सजीव है क्योंकि इसके पीछे वे असंख्य बलिदानी हैं जिन्होंने कठिनतम परिस्थितियों में भी अपने स्वत्व की रक्षा की। 

कई लोगों को आरे से चीरा गया, कोल्हू में पीसा गया, रुई में बांधकर आग में जलाया गया और कुछ को उबालने के लिए कढ़ाई में डाला गया, लेकिन वे अपने संकल्प से नहीं डिगे।

ये खबर भी पढ़ें... पढ़ें छत्रपति शिवाजी महाराज के अमर विचार, जो आज भी प्रेरणादायक हैं

महान बलिदानी

छत्रपति संभाजी महाराज ऐसे ही महान बलिदानी हैं। उन्हें इतनी क्रूर प्रताड़ना दी गई जिसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती। उनका संघर्ष एक महीने तक चला था।

पहले उनकी आंखें निकाली गईं, फिर अगले दिन उनकी जीभ काटी गई, शरीर पर चीरे लगाकर उसमें नमक और मिर्ची डाली गई, फिर एक-एक अंग काटा गया।

उनपर दबाव था कि, वे मतांतरण स्वीकार करें, अर्थात सनातन धर्म छोड़कर इस्लाम अपना लें, लेकिन वे न डिगे। अंत में इस तरह की भीषण प्रताड़ना के बाद उनके अंग अंग काटकर कचरे की तरह नदी में फेंक दिए गए।

युद्ध में बीता अधिकांश समय

ऐसे अमर बलिदानी वीर छत्रपति संभाजी महाराज का जन्म 14 मई 1657 में हुआ था। वे लगभग बत्तीस वर्ष तक इस संसार में रहे। उनकी शासन अवधि नौ वर्ष रही, लेकिन उनका अधिकांश समय युद्ध करते हुए बीता।

उनके जीवन का संघर्ष नौ वर्ष की आयु से ही शुरू हुआ। जब वे केवल नौ वर्ष के थे, तब अपने पिता शिवाजी महाराज के साथ वे औरंगजेब की आगरा जेल में रहे थे।

जेल से निकलने के बाद शिवाजी महाराज ने सुरक्षा कारणों से अपने छोटे पुत्र को खुद से अलग कर दिया था, और इस प्रकार वे संघर्ष के बीच बड़े हुए।

शौर्य और पराक्रम का परिणाम

उन्होंने 210 युद्धों में हिस्सा लिया और सभी को जीता। दक्षिण भारत में मुगलों को खदेड़ने में उनका शौर्य और कौशल सबसे अहम था। हालांकि, मराठों के बीच कुछ आंतरिक मतभेद थे और निजाम और अंग्रेजों ने इस स्थिति का लाभ उठाया।

यह उनके शौर्य और पराक्रम का ही परिणाम था कि औरंगजेब ने उनके राज्याभिषेक के बाद दक्षिण भारत में अपनी सेना को ज्यादा तैनात किया।

मुगलों की चार टुकड़ियां दक्षिण में थीं और उनके सरदारों को आदेश दिया गया था कि वे तब तक लौटकर न आएं जब तक वे संभाजी महाराज का अंत न कर दें। हालांकि, मुगलों को इस अभियान में सफलता नहीं मिली, और जब मिली तो वह एक गद्दार के कारण हुई।

ये खबर भी पढ़ें... कैसे हुई थी छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु, जानें क्या कहते हैं इतिहासकार

संघर्ष भरा बचपन

संभाजी महाराज ने बचपन से ही युद्ध कौशल और संघर्ष करना सीखा था। वे उन विरले बालकों में से एक थे जिन्होंने केवल आठ वर्ष की आयु में शत्रु से युद्ध करना सीख लिया था।

शिवाजी महाराज की मृत्यु के बाद, औरंगजेब ने उन्हें पंच हजारी मनसब देने का प्रस्ताव दिया था, लेकिन संभाजी ने इसे ठुकरा दिया था। वे भारत राष्ट्र की संस्कृति की रक्षा के लिए संकल्पबद्ध थे और हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के संघर्ष को आगे बढ़ाने में लग गए थे।

शिवाजी महाराज का निधन 

शिवाजी महाराज का निधन 3 अप्रैल 1680 को हुआ था। इसके बाद कुछ समय तक उनके अनुज राजाराम को हिन्दू पदपादशाही पर सत्तारूढ़ कर दिया गया।

16 जनवरी 1681 को संभाजी महाराज का विधिवत् राज्याभिषेक हुआ। इसी वर्ष औरंगजेब का एक विद्रोही पुत्र, अकबर, दक्षिण भारत भाग आया और संभाजी महाराज से शरण की याचना की। संभाजी महाराज ने उसे शरण और सुरक्षा प्रदान की, जिससे औरंगजेब और भी बौखला गया।

संघर्ष और विजय

संभाजी महाराज ने मुगलों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों, और आंतरिक शत्रुओं से संघर्ष किया और मराठा साम्राज्य को विस्तार दिया। 1689 में पुर्तगालियों को हराने के बाद, वे संगमेश्वर में व्यवस्था बनाने लगे, लेकिन उन्हें एक गद्दार गणोजी शिर्के ने धोखा दिया।

शिर्के ने मुगलों को रास्ता दिखाया और संभाजी महाराज को ग़द्दारों के साथ बंदी बना लिया। 1 फरवरी 1689 को उन्हें और उनके मित्र कवि कलश को बंदी बना लिया गया।

औरंगजेब ने दोनों की आंखें निकाल दीं और जुबान काट दी। 11 मार्च 1689 को उन्हें शारीरिक यातनाएं दी गईं और अंत में उनके शरीर के टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।

वे शिवाजी महाराज के बेटे थे और अपने धर्म में पूरी निष्ठा से डटे रहे, लेकिन अंत में औरंगजेब की क्रूरता के सामने उनका बलिदान हुआ।

ये खबर भी पढ़ें...

भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन कराएगी छत्रपति शिवाजी महाराज की विरासत की यात्रा

छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती पर जानें उनकी वीरता की गाथा और संघर्ष

औरंगजेब की कब्र | Indian culture | Indian culture and customs | विचार मंथन | Chhatrapati Sambhaji Maharaj | विचार मंथन रमेश शर्मा

विचार मंथन Chhatrapati Sambhaji Maharaj छत्रपति संभाजी महाराज Indian culture Indian culture and customs औरंगजेब विचार मंथन रमेश शर्मा औरंगजेब की कब्र