पाकिस्तान को ठिकाने लगाने के लिए बदलने होंगी तरकीबें...

पाकिस्तान के खिलाफ भारत को अब अपनी पुरानी रणनीतियों को छोड़कर नई तरीके से प्रहार करना होगा। बलूचिस्तान की स्वतंत्रता और पाकिस्तान का विभाजन इस दिशा में एक अहम कदम हो सकता है, जिससे पाकिस्तान की शक्ति कमजोर होगी।

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देवेश कल्याणी, वरिष्ठ पत्रकार

45 साल पहले आतंक का ये सिलसिला शुरू हुआ था। त्रिपुरा में अगरतला के पास मंडई  गांव में 8 जून 1980 को  एक ही रात में करीब 400 हिंदु बंगालियों का कत्लेआम किया गया था।

उसके 9 साल पहले ही बांग्लादेश बना था और मरने वालों में अधिकांश वही लोग थे जो पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश छोड़ कर आए थे। इन्हें मारने वाले और उनके मददगारों की शिनाख्त में अंगुलियां पाकिस्तान की ओर उठी थी। इसके बाद पहलगाम 122 वीं आतंकी घटना है, जिसने देश को हिला दिया।  

चीन-अमेरिका की दोस्ती

इतने सालों में आतंकी हमलों की फ्रिक्वेंसी बढ़ी और हर बार इन्वेस्टीगेशन की सुई पाकिस्तान की ओर जा कर ठहरती रही। चाहे लिट्टे ऑपरेटेड टेरर हो या खालिस्तानी।

वक्त के साथ चीन और अमेरिका ने भी दोस्त बनकर पाकिस्तान को दक्षिण एशिया के सामरिक समीकरणों में शक्ति के लिए मोहरा बना लिया।

उसने इसे भी भारत के खिलाफ ताकत की तरह इस्तेमाल किया और बेगैरत, बद्जुबान और दुस्साहसी बन गया। कारगिल, कंधार, संसद अटैक और पुलवामा भी संभवत: उसके उदाहरण हैं। 

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पाकिस्तान के खिलाफ नई रणनीति

जटिल परिस्थितियों में पाक को रोकने के उपाय हर बार नाकाफी मालूम पड़ते रहे। इस बार मई 2025 में भारत ने खुले आम पाकिस्तान के टेरर कैंप टारगेट किए, भारी नुकसान भी पहुंचाया मगर उतनी ही तेजी से सीजफायर हो गया।

शायद भारत उसे कोई कमरतोड़ नुकसान नहीं पहुंचा सका ये अनुमान तब सच के करीब लगा जब पाकिस्तान में यौमे तशुक्कर के जुलूसों में गाड़ियों के काफिले और पाकिस्तानी झंडे लहराते दिखे। पाकिस्तान हर बार हाथ और दिल मिलाने की चाल विक्टिम कार्ड ओढ़ कर खेलता रहा है।

लेकिन लगता है अब वक्त आ गया है, जब पुरानी स्ट्रेटेजी और तरीकों को छोड़कर उसकी जड़ों पर इस तरह से प्रहार किया जाए। जैसा इजराइल के मोसाद ने रूथ आफ गॉड बन कर किया या अमेरिका ने ओसामा को ठिकाने लगा कर किया या भारत ने बड़े मूवमेंट के तहत पाकिस्तान को विभाजित कर बांग्लादेश बनाया था। 

भारत-पाक की आजादी के पहले

ये तरीके सुनने पढ़ने में सहज सही लेकिन समझने और उपयोग करने में तलवार की धार है, क्योंकि इसमें चीन की आंख और अमेरिका की नाक में अंगुली किए बगैर अंजाम तक पहुंचना मुमकिन नहीं है।

लेकिन हम डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले युवा देश और सबसे बड़ा बाजार हैं, हमें खोना चीन- अमेरिका भी अफोर्ड नहीं कर सकते, इसलिए अगर वक्त है तो अभी है। 

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बलूचिस्तान की स्वतंत्रता

दरअसल लगभग भारत-पाक की आजादी के पहले से ही आज के पाकिस्तान का एक हिस्सा अलग देश बनने की कोशिश कर रहा है और वह है बलूचिस्तान। इसका क्षेत्रफल 347,190 वर्ग किलोमीटर है, जो पाकिस्तान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 44% है।

इसकी सीमाएं ईरान और अफगानिस्तान से मिलती हैं। 1944 में बलूचिस्तान के स्वतन्त्रता का विचार जनरल मनी ने दिया था। इसके चलते 1948 से लेकर अब तक बलूचिस्तान में 6 विद्रोह हुए हैं, जिसमें वर्तमान आंदोलन सबसे लंबा है। 

बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग का कारण

बलूचिस्तान में स्वतंत्रता की मांग का मुख्य कारण पाकिस्तान के साथ आर्थिक और राजनीतिक भेदभाव तथा संसाधनों के शोषण का आरोप है। इसकी जड़ है ग्वादर बंदरगाह वाला चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा जो अरब सागर में होर्मुज जलडमरूमध्य के पास स्थित है।

यहां से दुनिया का लगभग 20% तेल व्यापार होता है। यही पाकिस्तान की कराची और पोर्ट कासिम पर निर्भरता कम करता है। यही हिंद महासागर और अरब सागर के बीच एक महत्वपूर्ण प्रवेश द्वार है, जो चीन को ऊर्जा आयात और व्यापार के लिए एक वैकल्पिक मार्ग प्रदान करता है।

मध्य एशिया और यूरोप से जोड़ने के लिए एक सड़क, रेलवे और अन्य बुनियादी ढांचे के नेटवर्क का निर्माण करता है। इसी कारण से चीन ने इसे डेवलप करने में भारी राशि पाकिस्तान को दी और इस पर लगभग कब्जा जमा रखा है।

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अंत में सब भला होने के आसार

सोच कर देखिए ये गलियारा जहां पाकिस्तान-चीन के रिश्तों को एक ग्लू देते हैं, वहीं अमेरिका के दक्षिण एशिया के इंटरेस्ट और सामारिक स्थिति लिए आंखों की किरकिरी है।

लेकिन तेल देशों पर दबदबे के लिए वह पाकिस्तान को पुचकारने पर विवश है। अगर ऐसे में पाकिस्तान के हाथ से बलूचिस्तान निकल जाए तो पाकिस्तान न केवल लगभग आधा रह जाएगा, बल्कि बेहिसाब जनसंख्या से बजबजाता हुआ भिखारी बनकर रह जाएगा।

ऐसे में अगर बलूच क्रांतिकारी कहीं से मदद पाते हैं, तो अमेरिका तटस्थ रह सकता है। वे आजाद हो जाएं तो चीन उनसे भी वैसे ही रिश्ते और नियंत्रण बना सकता है जैसे उसने तिब्बत से बनाए हैं। यानी अगर ये बंटवारा अंजाम तक पहुंच जाए तो अंत में सब भला होने के आसार हैं। 

कब सजा पाएंगे कातिल

अंत में बात मुट्ठी भर ताकत से बड़े-बड़े दुश्मनों की नाक में दम करने वाले इजराइल की खुफिया संस्था मोसाद की। जिसने अपने खिलाड़ियों की मौत का बदला लेने के लिए 20 साल तक पूरी दुनिया को मौत के खेल का मैदान बना दिया और अपने खिलाड़ियों के आतंकी हत्यारों को खोज-खोज कर मार गिराया।

यानी बेशक आप दुनिया के लिए शीरी जुबां हो जाएं लेकिन हाथ में छुरी रखें और मौका निकाल कर दुश्मनों को हलाक करते चलें। अमेरिका ने भी ओसामा के मामले में ऐसा ही किया था।

ऐसा करने में बेशक बहुत से अंतरराष्ट्रीय कानून और प्रतिबंध रास्ता रोकते होंगे, लेकिन डेढ़ सौ करोड़ का कुनबा हो चुके हिंदुस्तान से कुछ सिरफिरों की टोली कहीं कुछ करती फिरे तो सरकार क्या कर सकती है? वैसे जिन्होेंने आतंक में अपनों को गंवाया है वे सोचते तो होंगे, अजहर मसूद और दाऊद इब्राहिम जैसे नामजद कातिल कब सजा पाएंगे?

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