आज ही के दिन लूटा था गजनवी ने सोमनाथ मंदिर, ये है आतंक की पूरी कहानी

इतिहास के पन्नों में आज का दिन बेहद खास है, आज ही के दिन भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में एक सोमनाथ मंदिर पर हमला हुआ था। साल 1026 में महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था। साथ ही लोगों का नरसंहार किया था।

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Vikram Jain
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Story of Mahmud Ghaznavi attack on Somnath temple of Gujarat

विचार मंथन। Photograph: (the sootr)

वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा

इतिहास में कुछ तारीखें और उनमें घटी घटनाएं ऐसी हैं कि जिनकी याद करने से आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी ही एक घटना हैं गुजरात के सोमनाथ मंदिर की लूट, विध्वंस और वहां मौजूद श्रद्धालुओं का सामूहिक नरसंहार है।

सोमनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंग में एक हैं। मान्यता है कि उसकी स्थापना भगवान परशुराम जी ने की थी। यह मंदिर पूरे विश्व के आकर्षण का केंद्र रहा है। संपूर्ण एशिया ही नहीं यूनान और रोम से भी पर्यटकों के सोमनाथ आने का वर्णन मिलता है। नौवीं शताब्दी से पहले यह मंदिर यदि विश्व भर के पर्यटकों और श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र रहा तो नौवीं शताब्दी के बाद लुटेरों और आतताइयों के लालच का केंद्र बना। मध्यकाल का हर आक्रांता और सल्तनतकाल के हर शासक की टेड़ी नजर सोमनाथ पर रही। सोमनाथ का इतिहास सैकड़ों सालों तक लूट, विध्वंस और नरसंहार से भरा है।

महमूद गजनवी का आक्रमण और लूट

महमूद गजनवी की लूट इतनी वीभत्स और क्रूरतम थी कि उसका वर्णन हृदय को विदीर्ण कर देता है। सोमनाथ मंदिर में लूट और विध्वंस की यह घटना 8 जनवरी 1026 की है। उस दिन लुटेरे महमूद गजनवी और उसकी फौज ने केवल संपत्ति लूटकर सोमनाथ मंदिर का विध्वंस नहीं किया था बल्कि वहां उपस्थित एक भी व्यक्ति को जीवित नहीं छोड़ा था। उसने या तो उन्हें मार डाला था या बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था। यही हाल महिलाओं का किया था। उन्हें भी या तो क्रूरता की मौत मिली या बंदी बनाकर ले जाईं गईं। बाद में इन सभी बंदियों को गुलामों के बाजार में बेचा गया। सोमनाथ मंदिर में विध्वंस पहला या अंतिम नहीं था। इससे पहले भी विध्वंस हुआ और बाद में भी। लेकिन यह विध्वंस क्रूरता की पराकाष्ठा थी इसलिए केवल इसी को याद किया जाता है।

जुनायद द्वारा लूट और विध्वंस की घटना

सोमनाथ मंदिर पर पहला हमला और लूट सिंध में तैनात अरब के गवर्नर जुनायद ने की थी। यह गवर्नर जुनायद वही था जो सिंध पर मोहम्मद बिन कासिम की जीत के बाद तैनात हुआ था। जुनायद समुद्री रास्ते चलकर सोमनाथ आया और मंदिर पर सीधा हमला बोला। उसने मंदिर विध्वंस किया संपत्ति लूटी और लौट गया। उसका हमला अचानक हुआ था। इसलिए सुरक्षा और प्रतिकार का वर्णन कम मिलता है। जुनायद का उद्देश्य केवल संपत्ति लूटना और महिलाओं का हरण करना था। वह तेजी से लौट गया। इसलिए सिंध से सोमनाथ आने और लौटने का उसने ऐसा मार्ग चुना था जिसमें किसी बड़ी रियासत से टकराव न हो। उसके जाने के बाद मंदिर का पुनरुद्धार हुआ। यह गुजरात के शासक नागभट्ट ने किया था। मंदिर पुनः अपने वैभव पर लौट आया।

महमूद गजनवी ने बोला भयानक हमला

इसके बाद दूसरा और भयानक हमला महमूद गजनवी ने बोला। महमूद गजनवी ने भी रास्ते के लिए जुनियाद की रणनीति का पालन किया। उसने भी ऐसा मार्ग चुना जिसमें कम टकराव के साथ सोमनाथ पहुंच सके। इस लूट और विध्वंस का वर्णन भारतीय इतिहास के साथ अल्बरूनी के वर्णन में भी मिलता है। अल्बरूनी महमूद के लगभग हर अभियान में साथ रहा। बाद में जो भी लिखा गया उसका आधार अल्बरूनी का ही वर्णन है। 

महमूद ने रचा था ऐसा षडयंत्र

अल्बरूनी ने लूट और विध्वंस का वर्णन के साथ आक्रमण की रणनीति का उल्लेख किया है। इस वर्णन के अनुसार महमूद ने अपने कुछ एजेंट पहले भेज दिए थे। ये लोग वेश बदल कर सोमनाथ के हर समूह में फैल गए थे, जो समूह जिस वेषभूषा का था उसी वेष में रहने लगे। पुजारियों के बीच पुजारी जैसे, फल बेचने वालों फल बेचने जैसे और व्यापारियों के बीच व्यापारी वेष में रहने लगे थे और कुछ तो फकीरों के वेष में भी थे। यही नहीं महमूद ने एक नजूमी को भी भेजा था। यह नजूमी यानि भविष्य बताने वाला व्यक्ति जासूस था। उन दिनों गुजरात पर भीमदेव का शासन था। राजा भीमदेव ज्योतिष पर बहुत भरोसा करता थे। इसकी सूचना महमूद गजनवी को थी। उसने इसका लाभ उठाया।

अपनी चाल में सफल हुआ महमूद

महमूद गजनवी का नजूमी जासूस अपनी पूरी टोली के साथ राजा भीमदेव के दरबार में आया। गजनवी जब गुजरात की ओर बढ़ा इसकी जानकारी राजा भीमदेव को मिल गई थी। राजा सोमनाथ की सुरक्षा के लिए सेना भेजना चाहते थे। गजनवी का जासूस नजूमी दरबार में ही था। उसने राजा को चौबीस घंटे रुक कर मुकाबला करने की सलाह दी थी और कहा कि चौबीस घंटे तक कालग्रास योग है। यह योजना महमूद की ही थी। वह रास्ते में युद्ध लड़ना नहीं चाहता था और पूरी शक्ति के साथ सीधे सोमनाथ पहुंचना चाहता था। इसलिए उसने जो मार्ग चुना था वह भारतीय रियासतों के किनारे से निकलता रहा था। उसे रास्ते में केवल दो स्थानों में युद्ध लड़ना पड़ा। बाकी जगह रसद और भेंट लेकर आगे बढ़ता रहा।

गुजरात के राजा ने मान ली नजूमी की बात

उसकी योजना थी कि गुजरात की धरती पर भी युद्ध न लड़ना पड़े। युद्ध टालने के लिए ही उसने राजा के पास नजूमी को भेजने की योजना बनाई थी। गुजरात के राजा ने चौबीस घंटे रुकने की बात मान ली। और राजा ने अपनी सेना को चौबीस घंटे रूकने का आदेश दे दिया। महमूद ने इस चौबीस घंटे के समय का पूरा फायदा उठाया और वह सीधा सोमनाथ पर धमक गया। महमूद ने केवल नजूमी भेजकर ही राजा को रुकने का षड्यंत्र नहीं किया था। उसने राजा के जासूसों को एक भ्रामक सूचना भी भेजी थी। राजा को सूचना दी गई थी कि पहले हमला राजा पर होगा। इस जीत के बाद सेना सोमनाथ जाएगी। इसलिए राजा ने पहले राजधानी की सुरक्षा व्यवस्था के लिए सेना तैनात की। मंदिर की सुरक्षा के लिए सेना की टुकड़ी जाने वाली थी वह चौबीस घंटे के लिये रोक ली गई।

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वीरावल में लूट और आतंक

गजनवी यही चाहता था। उसकी रणनीति सफल रही और वह सीधा सोमनाथ पर धमक गया। उस दिन वहां कोई उत्सव चल रहा था। श्रृद्धालुओं की भारी भीड़ थी। महमूद की सेना ने पहले वीरावल पर धावा बोला। उन दिनों वीरावल व्यापारियों की बस्ती थी। मेहमूद चाहता था कि वीरावल के व्यापारी भी अपना मालमत्ता लेकर मंदिर में छुपाने के लिए भाग जाए। हुआ भी वही। महमूद ने वीरावल सहित आसपास की बस्तियों में लूट मचाई। लोग सुरक्षा के लिए मंदिर परिसर की ओर भागे। जब आसपास के तमाम लोग सुरक्षित होने के लिये मंदिर में एकत्र हो गए तब महमूद की सेना ने मंदिर परिसर को चारों और से घेर लिया ताकि कोई बाहर न निकल सके। मंदिर के भीतर कोई पचास हजार से ज्यादा स्त्री पुरुष और बच्चे एकत्र थे। इनमे उत्सव में भाग लेने आये लोगों के अतिरिक्त वीरावल के व्यापारी भी थे जो छुपने के लिये मंदिर परिसर आ गए थे। यह आंकड़े भी अल्बरूनी ने ही लिखे हैं। 

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पुरुषों का नरसंहार, बच्चों की हत्या

अल्बरूनी के अनुसार गजनवी के सिपाही आंधी की तरह टूट पड़े। सबसे पहले पुरुषों का नरसंहार हुआ। फिर दस्ता शिवलिंग की ओर गया। इस दस्ते ने शिवलिंग का विध्वंस किया। वहां जितने लोग थे सबको यातनायें देकर धन एकत्र किया गया। पहले पुरूषों और बच्चों को मारा फिर महिलाओं पकड़ा गया। शायद ही कोई महिला ऐसी बची हो जिसके साथ बलात्कार न हुआ हो। सैकड़ों महिलाओं को पशुओं की भांति बांधकर ले जाया गया जिन्हे बाद में गुलामों के बाजार में बेचने के लिए भेज दिया गया।

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राजा भीमदेव और राजाभोज ने कराया था जीर्णोद्धार

इस विध्वंस के बाद गुजरात के राजा भीमदेव और धार के राजा भोज ने जीर्णोद्धार कराया। लेकिन सोमनाथ में गजनवी की लूट अंतिम नहीं थी। इसके बाद दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने 1297 में लूट की विध्वंस किया। फिर 1397 में गुजरात के सूबेदार मुजफ्फर शाह ने लूटा, फिर 1442 में अहमद शाह ने। औरंगजेब के हमले को सोमनाथ मंदिर ने दो बार झेला। एक बार 1665 में और दूसरी बार 1706 में। जो मेहमूद ने किया वही औरंगजेब ने दोहराया।

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केएम मुंशी और सरदार पटेल को श्रेय

इस समय जो सोमनाथ मंदिर दिख रहा है इसका श्रेय केएम मुंशी और सरदार वल्लभ भाई पटेल को जाता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, सुविख्यात लेखक और नेहरूजी की कैबिनेट में मंत्री रहे केएम मुंशी जी ने पहली बार भग्न सोमनाथ के दर्शन 1922 में किए थे तभी उनके मन में संकल्प आया जो 1955 में पूरा हुआ। इसका वर्णन उन्होंने अपनी पुस्तक "पिलग्रिमेज टू फ्रीडम" में किया है। उन्होंने अपनी इस पुस्तक में एक कैबिनेट बैठक के बाद नेहरूजी से हुई बातचीत का भी विवरण दिया है जिसमें नेहरूजी ने सोमनाथ के जीर्णोद्धार के प्रति अपनी असहमति जताई थी। लेकिन उनके अभियान को राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का समर्थन मिला और अभियान पूरा हुआ।

विचार मंथन द सूत्र विचार मंथन वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा सोमनाथ नरसंहार महमूद गजनवी सोमनाथ मंदिर हमला