5 जनवरी 1880 : सुप्रसिद्ध क्रांतिकारी बारींद्रनाथ घोष का जन्म

बारींद्रनाथ घोष एक ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दिया, साथ ही युवाओं को जागरूक किया और उन्हें शारीरिक तथा मानसिक रूप से तैयार किया। उनके विचार और कार्य आज भी भारतीय समाज के लिए एक मार्गदर्शन हैं।

author-image
Vikram Jain
New Update
famous revolutionary Barindranath Ghosh Story

वीर क्रांतिकारी बारींद्रनाथ घोष। Photograph: (the sootr)

Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

अंग्रेजों से भारत की मुक्ति के लिए जिन क्रांतिकारियों ने अपनी स्वर्णिम सुख सुविधा का परित्याग करके बहुआयामी संघर्ष किए और जेल गए उनमें बारींद्र घोष भी हैं। उन्होंने प्रत्यक्ष संघर्ष तो किया ही साथ ही जन जागरण के लिए समाचार पत्र निकाला, बैठकें की और युवाओं को सक्रिय किया। ऐसे अमर क्रांतिकारी और पत्रकार बारींद्रनाथ घोष का जन्म 5 जनवरी 1880 को लंदन के पास क्रोयदन नामक कस्बे में हुआ था। यद्धपि उनका पैतृक निवास बंगाल के कोन्नगर में था। पिता श्री कृष्णनाथ घोष अपने समय के सुप्रसिद्ध चिकित्सक और जिला सर्जन थे। माता देवी स्वर्णलता प्रसिद्ध समाज सुधारक व विद्वान राजनारायण बसु की पुत्री थीं। महर्षि अरविंद्र, जो पहले क्रांतिक्रारी लेकिन बाद में आध्यात्मिक संत हो गए थे, उनके बड़े भाई थे, जबकि उनके एक अन्य बड़े भाई श्री मनमोहन घोष अंग्रेजी साहित्य के विद्वान और ढाका यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। बारींद्रनाथ जी अपने संक्षिप्त नाम बारिन घोष के नाम से मशहूर थे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा

बारींद्रनाथ घोष की स्कूली शिक्षा देवगढ़ में हुई और उच्च शिक्षा के लिए 1901 में पटना भेजे गए। अपनी पढ़ाई के साथ उन्होंने बरोड़ा मिलिट्री ट्रेनिंग भी ली। उन दिनों श्री अरविंद क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े हुए थे। उनसे प्रभावित होकर बारिन भी क्रांतिकारी आंदोलन से जुड़ गए। 1902 में अपनी पढ़ाई पूरी कर बारींद्र कलकत्ता लौटे। उनका संपर्क यतींद्रनाथ मुखर्जी से हुआ और उनके साथ क्रांतिकारी समूहों को संगठित करना शुरू किया। बंगाल में 1903 में एक व्यायाम शाला स्थापित हुई। कहने के लिए यह व्यायाम शाला थी। पर यह क्रांतिकारियों के मिलने और उन्हें शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण देना मुख्य स्थान था।

स्वतंत्रता सेनानी डॉ. राधाबाई ने उठाई थी वेश्यावृत्ति के खिलाफ अवाज

युवाओं के प्रशिक्षण में मुख्य भूमिका

बारिन घोष ने शस्त्र संचालन का प्रशिक्षण का काम अपने हाथ में लिया और अनेक युवकों को प्रशिक्षित किया। इसके साथ ही विभिन्न क्रांतिकारी टोलियों को मिलाकर अनुशीलन समिति का गठन भी हुआ, इसमें मुख्य भूमिका बारिन घोष की थी। अनुशीलन समिति के अध्यक्ष प्रमथ नाथ मित्र बने। चित्तरंजन दास व अरविंद घोष उपाध्यक्ष एवं सुरेन्द्रनाथ ठाकुर कोषाध्यक्ष बने। कार्यकारिणी में एकमात्र सिस्टर निवेदिता थीं। 1906 में इसका पहला सम्मलेन कलकत्ता में हुआ। जिसमें क्रांति के लिए नौजवानों को मानसिक और शारीरिक तैयार करने का निर्णय हुआ। कार्य की सुविधा के लिए अनुशीलन समिति ने एक और कार्यालय ढाका में शुरु किया। जिसका नेतृत्व पुलिनबिहारी दास और पी. मित्रा को सौंपा गया। इस संस्था की लगभग पांच सौ शाखाएं खड़ी हो गई थी। जिनमें अधिकांश सदस्य स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थी थे।

25 दिसंबर 1861: स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद् महामना पं. मदनमोहन मालवीय का जन्म

पहली किताब भवानी मंदिर का लेखन

बारींद्रनाथ घोष ने 1905 में क्रांति से सम्बंधित 'भवानी मंदिर' नामक पहली किताब लिखी। इसमें 'आनन्द मठ' का भाव था और क्रांतिकारियों को संदेश दिया गया था कि वह स्वाधीनता पाने तक सात्विक जीवन अपनायें। बारींद्र ने 1907 में दूसरी पुस्तक 'वर्तमान रणनीति' लिखी। इसमें कहा गया था कि भारत की आजादी के लिए सैन्य शिक्षा और युद्ध आवश्यक है। 

गुरु गोविंद सिंह के साहिबजादों को दी गई क्रूर यातनाओं और बलिदान का स्मृति दिवस

आजीवन कारावास और रिहाई

बारिन और बाघा जतिन ने क्रांति के लिए बंगाल में अनेक युवाओं को तैयार किया। 30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्स्फोर्ड की हत्या का प्रयास किया जिसके फलस्वरूप पुलिस ने बहुत तेजी से क्रांतिकारियों की धरपकड़ शुरू कर दी और 2 मई 1908 को बारिन घोष को भी अपने साथियों सहित गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर अलीपुर बम केस चलाया गया और फांसी की सजा दी गई परन्तु अपील के बाद बाद में आजीवन कारावास में बदलकर अंडमान जेल में भेज दिया गया। यह जेल इतनी कठोर थी कि इसे कालापानी कहा जाता था। जहां बारिन 1920 तक बंदी रहे। 1920 में प्रथम विश्वयुद्ध के संदर्भ राजनैतिक बंदियों को रिहा किया गया। इसमें बारिन घोष की भी रिहाई हो गई। 

के एम मुंशी ने की थी सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार की परिकल्पना

पत्रकारिता का सफर

रिहा होकर बारिन कलकत्ता आए और आश्रम बना कर रहने लगे। 1923 में वह पांडिचेरी गए जहां उनके बड़े भाई श्री अरविंद आध्यात्मिक आश्रम बनाकर रहने लगे थे। बारिन भी इस आश्रम में रहकर साधना करने लगे। ठाकुर अनुकुलचंद उनके गुरु बने। इन्ही ने ही अपने अनुयायियों द्वारा बारींद्र की सकुशल रिहाई में मदद की थी। 1929 में बारिन दोबारा कलकत्ता आए और पत्रकारिता शुरू कर दी। 1933 में उन्होंने 'द डॉन ऑफ इण्डिया' नामक अंग्रेजी साप्ताहिक पत्र शुरू किया। फिर सुप्रसिद्ध समाचारपत्र 'द स्टेट्समैन' से जुड़ गए। स्वतंत्रता के बाद वे बांग्ला दैनिक 'दैनिक बसुमती' के संपादक हो गए। फिर जीवन की अंतिम श्वांस तक उन्होंने पत्रकारिता ही की। उनके आलेख मानसिक, आध्यात्मिक और शारीरिक संतुलन का संदेश देते थे। अंततः 18 अप्रैल 1959 को उन्होंने इस संसार से विदा ली। इस प्रकार एक क्रांतिकारी महानायक चिंतक विचारक शांत हो गया। उनकी स्मृतियां कृतियां आज भी युवाओं की प्रेरणा हैं।

विचार मंथन द सूत्र विचार मंथन रमेश शर्मा विचार मंथन वरिष्ठ पत्रकार रमेश शर्मा स्वतंत्रता संग्राम Barindranath Ghosh आनंद मठ बारींद्रनाथ घोष