चुनावी लॉलीपॉप के बाद अब कड़वी घुट्टी पीने के लिए तैयार हो जाइए क्योंकि चुनावों के दौरान फ्रीबीज पर बेहिसाब खर्च और टैक्स वसूली में पिछड़े मध्यप्रदेश के नगरीय निकायों की हालत खस्ता हो चली है। अब नई योजनाओं पर अमल और विकास कामों को आगे बढ़ाने के लिए निकायों के पास पैसा ही नहीं है। कई बड़े-बड़े प्रोजेक्ट अधूरे पड़े हैं। पेमेंट के लिए ठेकेदार भी इधर उधर भटक रहे हैं। कई निकायों के पास कर्मचारियों को तनख्वाह देने के लिए भी पैसे नहीं हैं। तंगहाल नगरीय निकाय अब सरकार से आस लगाए बैठे हैं।
सरकार की हालत भी ठीक नहीं
लेकिन सरकार की हालत भी कुछ ठीक नहीं है क्योंकि उस पर फिलहाल तीन लाख 75 हजार करोड़ से ज्यादा का कर्ज है और कर्ज में डूबी सरकार से निकायों को बजट मिलने की गुंजाइश कम ही नजर आ रही है। उधर, नगरीय प्रशासन एवं विकास विभाग भी निकायों को अपने संसाधनों के सहारे माली हालत सुधारने के संकेत दे चुका है। अब निकायों को अपने खर्चों की पूर्ति के लिए कमाई बढ़ानी होगी जिसका निकायों के पास फिलहाल एकमात्र रास्ता बचा है और वो टैक्स बढ़ाने का रास्ता यानी जनता पर करों की जंजीर कसने वाली है।
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