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लो भइया! अब सरकारी इंजीनियर किताबें घोटेंगे, क्योंकि भोपाल वालों ने 90 डिग्री में ब्रिज मोड़ दिया। उधर, इंदौर वालों ने भी ऐसा ही मुअज्जमा बनाया है। अब पीडब्ल्यूडी ने कसम खा ली है कि सीमेंट से पहले इंजीनियर्स के दिमाग की कास्टिंग होगी। जो पास, वो साइट पर होगा, जो फेल हुआ, वो फाइलों के पीछे चला जाएगा।
उधर, मंत्रालय में अजब-गजब ही हो रहा है। डेढ़ साल में तीन सैकड़ा अफसर बदले जा चुके हैं। वहीं, एक साहब जब से दिल्ली से लौटे हैं, तब से किसी न किसी फेर में उलझ रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री की नजरों में भी उनकी इमेज की वाट लग चुकी है।
डॉक्टर साहब आज से विदेश दौरे पर हैं। उधर, बीजेपी के नए भाईसाहब की दिल्ली दौड़ चल रही है। खैर, देश-प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
लो साब! अब इंजीनियरों की परीक्षा भी होगी!
मध्यप्रदेश में सरकारी इंजीनियर अब कंस्ट्रक्शन के नियम पढ़ेंगे। पीडब्ल्यूडी बाकायदा इसका एग्जाम कराएगा और इसका रिजल्ट देखने के बाद इंजीनियर्स की फील्ड पोस्टिंग होगी। जो परीक्षा में उम्दा प्रदर्शन करेगा, उसे मैदान की मलाई मिलेगी और जो कमजोर रहेगा, उसे दफ्तर में कागज-पत्री वाला काम करना होगा।
अब पीडब्ल्यूडी को ये अनोखा फैसला क्यों लेना पड़ा… इसकी वजह भी रोचक है। दरअसल, इंजीनियर्स ने भोपाल में 90 डिग्री मोड़ वाला ब्रिज बनाकर ऐसा कांड किया, जिससे पूरे देश में एमपी की किरकिरी हुई।
फिर ऐसा ही मामला इंदौर से भी सामने आ गया। कुल मिलाकर ऐसे मुअज्जमे सामने आने के बाद सरकार अलर्ट मोड में आई है। भविष्य में ऐसी चूक न हो, इसलिए फूंक-फूंककर कदम उठाए जा रहे हैं।
अड़ियल होने के कारण मैनस्ट्रीम में लौटे
ये तबादला किसी फिल्मी स्क्रिप्ट जैसा लगता है। जैसे एक अफसर अपने तेवर के चलते चुपचाप काम कर रहा होता है, फिर अचानक उसे सरकार मैनस्ट्रीम में ले आती है और वह पॉवर में आ जाता है। यह केस भी कुछ-कुछ ऐसा ही है।
अब तक अफसर अड़ियल या अकड़ू है तो उसे लूप लाइन में भेज दिया जाता है।
अब हाल ही में हुए तबादलों में एक प्रमुख सचिव को इसलिए मैन स्ट्रीम में लाया गया है कि वो अड़ियल हैं। मंत्रीजी के दबाव में आकर कोई गलत काम नहीं करेंगे। हालांकि इनके पहले वाले अपर मुख्य सचिव ने भी दबाव में काम नहीं किया, लेकिन ज्यादा विभाग होने के कारण उनसे एक विभाग का प्रभार वापस लेकर नए साहब को दिया गया है।
अब देखना है कि वे अपनी ख्याति के अनुसार मंत्रीजी को पानी पिला पाते हैं या नहीं। या फिर सालों तक लूप लाइन का दर्द झेलने के बाद साहब के तेवर कम हो गए हैं।
एक महीने बाद होम में कौन?
गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव जेएन कंसोटिया एक महीने में रिटायर हो रहे हैं। ऐसे में अपर मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी अंदाजा लगा रहे हैं कि यहां किसका नंबर लगेगा?
दरअसल, होम डिपार्टमेंट ऐसा है, जहां कोई जाना नहीं चाहता। क्योंकि इसे मंत्रालय के बड़े लूप लाइन वाले विभागों में माना जाता है। अफसरों का मानना है कि यहां बैठने वाले अफसर डाकिए की तरह ही काम करते हैं, क्योंकि अधिकांश पॉवर पीएचक्यू के पास ही होते हैं। ऐसे में हर दूसरा एसीएस दुआ कर रहा है कि उनका नंबर ना आए। अब देखना होगा कि डॉक्टर साहब अपने गृह विभाग में किसे बैठाते हैं?
गलत नक्षत्र में दिल्ली से लौटे
एक आईएएस जब से दिल्ली से लौटे हैं, तब से किसी न किसी फेर में उलझ रहे हैं। यहां तक कि मुख्यमंत्री की नजरों में उनकी इमेज की वाट लग चुकी है। अब देखिए न, जो काम उनके अधीनस्थ महिला अफसर को कर लेना था, उन्होंने नहीं किया।
मैडम छुट्टी पर चली गईं। उनकी जगह आए दूसरे साहब ने इन प्रमुख सचिव साहब को फाइल भेजकर मंजूरी करवा ली। सुनने और सुनाने में कितना आसान लग रहा है, लेकिन इसी बीच ठाकुर साहब कूद पड़े।
पर्यावरण के साथ खिलवाड़ कर प्रोजेक्ट को मंजूरी देना ठाकुर साहब को नागवार गुजरा है। उन्होंने सीधे प्रमुख सचिव को ही लपेटे में ले लिया है। ठाकुर साहब भी आईएएस रहे हैं। अभी एक संस्था में चेयरमैन हैं। उन्हें पता है कि किस नस को दबाने से कितना दर्द होता है। अब प्रमुख सचिव ऐसे शख्स को तलाश रहे हैं, जो ठाकुर साहब के प्रकोप से उन्हें बचा सके।
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