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मौसम कोई भी हो, सत्ता और अफसरशाही में माहौल हमेशा गर्म ही रहता है। अब देखिए ना, एक मंत्री जी दिखवा लेते हैं कहते-कहते खुद वायरल हो गईं। सूबे के कुछ अफसर सरकार की घोषणाओं को ही गंभीरता से नहीं ले रहे हैं।
लिहाजा, 90 फीसदी ऐलान अभी धरातल पर नहीं उतर पाए हैं। एक ​संभाग के कमिश्नर साहब को बड़े साहब के मार्गदर्शन का इंतजार है।
खैर, देश, प्रदेश में खबरें तो और भी बहुत हैं। आप तो सीधे नीचे उतर आईए और वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर के लोकप्रिय कॉलम Bol Hari Bol के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
जनार्दन के नाम पर कानाफूसी
सूबे के मुखिया ने अफसरों को यूट्यूबर्स पर शिकंजा कसने का फरमान सुनाया तो इस अवसर पर उन्होंने उज्जैन के तत्कालीन एसपी जी.जनार्दन का भी नाम लिया। बताया कि कैसे उन्होंने सख्ती की थी। जनार्दन का नाम आते ही दूसरे अफसर कानाफूसी करने लगे कि उज्जैन के एक पत्रकार पर सख्ती करने पर जनार्दन के खिलाफ जांच बैठ गई थी।
मानव अधिकार अलग पीछे पड़ गया था। बड़ी मुश्किल से उन्होंने इस जांच के झमेले से अपनी गर्दन बचाई थी। इतना ही भी जनार्दन के और भी किस्सों को लेकर अफसर एक-दूसरे के मजे लेते रहे। बाकी आप समझदार हैं। कम लिखे को ज्यादा समझें।
नमाज पढ़ने गए थे रोजा गले पड़ गया!
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ये कहावत हाउसिंग बोर्ड के कमिश्नर साहब पर फिट बैठ रही है। दरअसल, हुकुमचंद मिल की जमीन के प्लॉट बेचना हैं या बनाकर देना है, इसका फैसला नहीं हो पा रहा है। कमिश्नर साहब इसी मामले को लेकर बड़े साहब के पास गए थे।
कमिश्नर अपनी बात रख पाते, उससे पहले ही बड़े साहब के पास बैठे प्रमुख सचिव बीच में बोल पड़े कि आप छोटे-छोटे मामले लेकर साहब के पास आ जाते हो, ये फैसला आपको अपने स्तर पर करना चाहिए।
प्रमुख सचिव की इस सलाह पर तत्काल बड़े साहब ने बोला, ये सही कह रहे हैं। आप अपने स्तर पर तय कीजिए। कमिश्नर साहब चुपचाप लौट आए। अब एक महीना हो गया है। कमिश्नर को समझ नहीं आ रहा कि क्या फैसला लें। कहीं कुछ ऊंच-नीच हो गई तो लेने के देने पड़ जाएंगे। अब कमिश्नर साहब अपने एसीएस से उम्मीद लगाए हुए हैं कि वे कोई डायरेक्शन दे दें।
ये तो बेबाकी की हद हो गई...
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सूबे के मुखिया के सामने अफसर अपनी बात दमदारी से रखने में आगे पीछे होते हैं, लेकिन एक अफसर ने हाल ही में एक बैठक में ऐसे बेबाकी से जवाब दिया कि बैठक में मौजूद हर दूसरा अफसर एक दूसरे का मुंह ताकता रह गया। दरअसल, अड़ियल रवैये की पहचान रखने वाले इन साहब को एक प्रकरण को देखकर निर्णय लेने के लिए कहा गया।
इस पर प्रमुख सचिव ने तापक से कह दिया कि मैं पहले ही देख चुका हूं। ये नहीं हो सकता। इस पर मुखिया जी ने कहा फिर से देख लीजिए तो प्रमुख सचिव ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा की मैं 100 बार भी देखूंगा तो आदमी ही रहूंगा, औरत नहीं बन जाऊंगा। इस जवाब से सब सन्नाटे में रह गए। हालांकि मुखिया जी ने ठहाका लगाकर मामले को हल्का किया और सब रफा दफा हो गया।
अफसरों ने चलाया चप्पू
इस बार की आईएएस मीट चर्चाओं में है। अफसर चर्चा में आने के लिए साहसिक एक्टिविटीज में शिरकत कर रहे हैं। इस बार तो बोट रेस तक हो गई। क्रिकेट, चेस, कैरम, पूल, टेबिल टेनिस से लेकर न जाने कौन कौन से इवेंट हो रहे हैं। बोट क्लब में हुई रेस के दौरान अफसरों ने हाथों से चप्पू चलाकर बड़े तालाब में मस्ती और धमाल मचाया।
बड़े साहब ने क्रिकेट का आनंद लेते हुए शॉट मारे। इधर, मीडिया वाले पूरी मीट में एक आईएएस साहब को ढूंढते रहे, लेकिन वे पहुंचे ही नहीं। आपको बता दें कि हाल ही में सरकार ने साहब के पर कतरे हैं।
साहब ने एक समाज विशेष को लेकर बयान देकर बड़ा बखेड़ा कर दिया था। लिहाजा, उन पर सख्त कार्रवाई की तलवार लटकी हुई है। अपनी निजी और प्रशासनिक व्यस्तताओं का हवाला देते हुए कुछ कलेक्टर भी सर्विस मीट में शामिल नहीं हुए हैं।
मंत्री जी की जमकर किरकरी
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क्या हो यदि पत्रकार किसी मंत्री से सवाल करें तो और मंत्री जी 42 सवालों में से 34 के जवाब सिर्फ यह कहकर दे दें कि हम दिखवाते हैं, इसे दिखवा लेते हैं। हम इस पर काम कर रहे हैं। जी हां, ये सच है। सूबे की एक मंत्री महोदया सरकार की दो साल की उपलब्धियां गिना रही थीं।
पहले तो उन्होंने कागज से पढ़कर सरकार के काम गिना दिए, फिर जब पत्रकारों की बात आई तो मैडम मिनिस्टर फंस गईं। मैडम प्रेस कॉन्फ्रेंस में अधूरी तैयारी के साथ पहुंची थीं। पत्रकारों ने जब क्षेत्र से जुड़े एक के बाद एक 42 सवाल पूछे, लेकिन मैडम मिनिस्टर ने 34 सवालों के जवाब कहा कि हम इसे दिखवा लेते हैं। अब मैडम का वीडियो वायरल हो रहा है और लोग उनके कामकाज पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
काम तो कीजिए साहब!
मध्यप्रदेश के अफसर सरकार की किरकिरी कराने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। ये मामला बेहद दिलचस्प है। डॉक्टर साहब ने दो वर्षों में प्रदेश के 42 विभागों से जुड़े कुल 862 ऐलान किए हैं। इनमें से अब तक 81 घोषणाएं ही पूरी तरह जमीन पर उतर सकीं हैं। 92 घोषणाएं ऐसी हैं, जिन पर काम चल रहा है या जो सतत प्रकृति की हैं, जबकि 689 घोषणाएं अब भी पेंडिंग हैं।
यानी दो साल बाद भी जनता को सीधा लाभ देने वाले काम महज 10 फीसदी ही पूरे हो पाए हैं। बाकी घोषणाएं फाइलों, बैठकों और नोटशीट्स के बीच उलझी हुई हैं। यह साफ संकेत है कि समस्या राजनीतिक इच्छाशक्ति की नहीं, बल्कि अफसरशाही की सुस्ती और गैर-जवाबदेही की है।
भाईसाहब का साहस गजब है...
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बीजेपी वाले एक भाईसाहब अपने साहसी और बेबाक बयानों से हमेशा चर्चा में रहते हैं। हाल ही में एक केंद्रीय मंत्री और चार राज्यों के नगरीय प्रशासन मंत्रियों के सामने उन्होंने फ्रीबीज पर सवाल उठाए।
बोले, जनता को लुभाने में राज्यों की वित्तीय हालत बिगड़ रही है। यह कोई पहला मौका नहीं है। इससे पहले भाईसाहब की बेबाकी विधानसभा में सामने आई थी, जहां उन्होंने बीजेपी और कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के काम की तारीफ की थी।
इसके जवाब में राजा साहब ने तो यहां तक कह दिया था कि ऐसे बयानों के लिए साहस चाहिए होता है। इससे पूर्व इंदौर की एक बैठक में भाईसाहब ने डॉक्टर साहब के सामने कहा था कि आपके अफसर हमें चमकाते हैं। खैर, इन बयानों के सियासी मायने जो भी हों, लेकिन राजनीति में भाईसाहब की बेबाकी की खूब तारीफ हो रही है।
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