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सियासत में जो खुलकर नहीं कहा जाता, वही सबसे ज्यादा बोला जाता है… धीरे से, मुस्कुराकर और व्यंग्य के साथ। इस हफ्ते हम लेकर आए हैं सूबे के अनकहे किस्से, जहां ईमानदारी भी एजेंसी स्पेशल हो गई है। बजट सांस रोककर चल रहा है।
माननीयों की सोलर चमक डिम पड़ रही है और कुछ मंत्री सोशल मीडिया को अपनी सेवा पुस्तिका बना बैठे हैं। आप तो सीधे नीचे उतर आइए और वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर (Harish Diwekar) के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
लॉ डिपार्टमेंट में कानून विश्राम!
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मध्यप्रदेश के लॉ डिपार्टमेंट में कानूनी विश्राम चल रहा है। जी हां! सही पढ़ा है आपने। मंत्रालय में इन दिनों कानून नहीं, कुर्सी चर्चा में है। दो महीने से विधि विभाग में प्रमुख सचिव नहीं है। फाइलें सीएम सचिवालय में अटकी हैं। ये स्थिति तब है, जब प्रमोशन में आरक्षण का केस कोर्ट में है।
यहां तो पूरा विभाग ही रिव्यू पिटीशन में पड़ा है। मंत्रालय के दूसरे दफ्तर भी कम नहीं हैं। कहीं उप सचिव गायब हैं। कहीं अपर सचिव के दर्शन दुर्लभ हैं। अब जलने वाले तो कह रहे हैं कि मंत्रालय तो चल रहा है, लेकिन यह ऑटोपायलट मोड पर। अब देखना है कि सीएम सचिवालय से कब फाइलें रिलीज होती हैं?
माननीयों की चमक डिम हो गई
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सूबे में विधायक निधि से अब तक माननीय अपने क्षेत्र में विकास की रोशनी फैलाते थे, लेकिन इस बार रोशनी सोलर से आने वाली है। और यहीं गड़बड़ है। हुआ यूं है कि माननीयों ने विधायक निधि से सोलर लाइट लगाने का मन बनाया, लेकिन बड़े साहब ने बीच में सूरज की किरण जैसा फरमान चमका दिया है।
मतलब, सोलर से जुड़े सभी काम ऊर्जा विकास निगम से ही होंगे। अब विधायक जी सोच में हैं, क्योंकि इससे उनका पावर कनेक्शन कट गया है। पहले तो कलेक्टर को इशारा करके वे ठेका सीधे अपने वाले को दिलवा देते थे। अब साहब ने सिस्टम में ऐसा सर्किट लगा दिया है कि कोई खास ठेकेदार कनेक्ट नहीं हो पा रहा। सियासी गलियारों में चर्चा है कि सोलर लाइट तो लग जाएगी, पर माननीयों की चमक थोड़ी डिम पड़ सकती है।
बिजली से ज्यादा करंट आदेश में!
सोशल मीडिया का जमाना है साहब। कब कौन-सी पोस्ट करंट मार जाए, कहा नहीं जा सकता। अब देखिए, रबी सीजन में किसानों को 10 घंटे बिजली देने का फरमान चार साल से वैसे ही कॉपी-पेस्ट होता आ रहा था। इस बार भी हुआ वही, लेकिन विपक्ष ने इसे पकड़ लिया और सरकार के तार उलझ गए।
इसके बाद सरकार ने आदेश वापस लेकर सफाई दी और एक सीनियर अफसर को हटा दिया गया। सवाल ये है कि बिना ऊपर के सपोर्ट के कोई आदेश जारी होता है क्या? एमडी साहब के स्तर पर हां हुई थी तो करंट नीचे वाले को ही क्यों दिया गया? अफसरों में खुसर-पुसर है कि सिस्टम में लाइट फेल होने पर हमेशा छोटी मछली ही तली जाती है। बड़े साहब तो हमेशा इनवर्टर मोड पर बच निकलते हैं।
एजेंसी के भक्त हो क्या साहब?
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प्रदेश के एक ईमानदार अफसर इन दिनों एक ही कंपनी को काम देने की वजह से चर्चा में हैं। इससे पहले तक स्थिति ऐसी थी कि साहब की ईमानदारी की कसमें खाई जाती थीं। कोई उनके काम पर उंगली नहीं उठा सकता था, लेकिन अब हालत ऐसे हैं कि वे जहां भी जाते हैं, अपनी खास एजेंसी को ठेका दे देते हैं।
दिल्ली की यह एजेंसी भी गोलमाल करने में माफिर मानी जाती है। यह फर्जी कागजात तक से ठेका हासिल कर लेती है। साहब का दबदबा रहता है तो दीगर अधिकारी कंपनी के कागज भी नहीं जांचते। अब साहब के शुभचिंतक उनके पीछे लग गए हैं। आपको बता दें कि ये साहब अपने सरल, सहज अंदाज के लिए जाने जाते हैं। भगवान के बड़े भक्त हैं।
खजाना खाली, विभागों के पर करते
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सरकार के खजाने में इन दिनों सन्नाटा और उधारी दोनों गूंज रहे हैं। हालात ऐसे हैं कि विभागों को साफ कह दिया गया है कि जो बजट मिला है, उसी में सांस लीजिए। इससे कोई नया काम नहीं होगा। इसके पीछे वजह बड़ी सीधी है। लाड़ली बहना योजना में अब राशि 1500 रुपए करनी है।
सोयाबीन खरीदी का भुगतान सिर पर है और केंद्र से पैसा कब आएगा, ये किसी को नहीं पता। सरकार ने किसानों को 13 नवंबर को भुगतान का भरोसा दिलाया है, जबकि केंद्र की रकम डेढ़ महीने बाद आएगी। आंकड़े बताते हैं कि सरकार साल के सात महीनों में 42,600 करोड़ का कर्ज ले चुकी है। अब मंत्रालय के गलियारों में फुसफुसाहट है कि विकास तो होगा, पर उधार की सांसों पर।
चर्चा में है जीत का प्लान
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पचमढ़ी की वादियों में इन दिनों कांग्रेस की पॉलिटिकल वर्कशॉप चल रही है। राहुल गांधी खुद क्लास ले रहे हैं। विषय है पार्टी मैनेजमेंट और समन्वय के गुर। कोई नेता अपनी उपलब्धियां गिना रहा है तो कोई दुखड़ा सुना रहा है। सबसे ज्यादा चर्चा एक दिग्गज लीडर के प्रेजेंटेशन की है। इसमें उन्होंने बताया है कि कांग्रेस को कैसे मजबूत कर फिर से जीत की दहलीज पर लाया जा सकता है।
आपको बता दें कि यही नेताजी 2020 में सरकार गिरने के समय मैनेजमेंट मिसफायर के मास्टर माने गए थे। अब पार्टी गलियारों में फुसफुसाहट है कि जिनके प्लान से सरकार गई थी, अब वही जीत का प्लान पढ़ा रहे हैं।
मंत्रियों में मंथन...कुर्सी बचाओ अभियान
गुजरात में सत्ता की हलचल क्या हुई, मध्यप्रदेश के आधा दर्जन माननीयों की धड़कनें बढ़ गईं हैं। दिसंबर में सरकार के दो साल पूरे होने वाले हैं और डॉक्टर साहब पहले ही संकेत दे चुके हैं कि मंत्रियों का परफॉर्मेंस टेस्ट किया जाएगा। जो मंत्री रिपोर्ट कार्ड में पीछे चल रहे हैं, उनकी कुर्सी पर खतरा मंडरा रहा है।
नतीजा ये कि इन दिनों मंत्री जी लोगों ने सोशल मीडिया को ही सेवा भाव का मंच बना लिया है। दिल्ली दरबार की पोस्ट पर जय-जयकार, रिपोस्ट और शेयर की बाढ़ है। कोई मंदिरों की परिक्रमा कर रहा है तो कोई अचानक जनता दरबार में जमीन पर बैठा दिख रहा है।
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