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सूबे की राजनीति और अफसरशाही को अगर आप सीरियल समझ रहे हैं तो भूल जाइए…यहां तो हर दिन नए एपिसोड रिलीज होते हैं। कभी साहबजादों के कारनामे, कभी साहबों का स्वैग तो कभी मंत्रालय के गलियारों में फुसफुसाहटों की फायरवर्क्स। मध्यप्रदेश में कुर्सियां सिर्फ बैठने के लिए नहीं, बल्कि भौकाल दिखाने का सिंबल भी हैं।
फाइलों से ज्यादा रील्स और मीटिंग से ज्यादा कॉफी मग चर्चा में रहते हैं। और हां… जिनके नाम के आगे ईमानदारी की मिसाल लिखा जाता है, वही जब किसी खास का नाम रिकमंड कर देते हैं तो गलियारों में कानाफूसी शुरू हो जाती है कि ये रिश्ता क्या कहलाता है?
कुल मिलाकर मध्यप्रदेश की सत्ता और सियासत का ये गॉसिप जगत इतना रंगीन है कि यहां हर दिन खिचड़ी भी पकती है और बारूद भी फूटता है। बाकी आप तो दुनिया जहां की खबरें छोड़िए और नीचे उतरकर बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो हर दिन की तरह बहुत हैं, पर आप तो वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर (Harish Diwekar) के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
साहबजादों ने ये क्या कर डाला?
इंदौर का नामी- गिरानी स्कूल इस सीजन में आरोपों की बारिश से भीगा हुआ है। यहां आए दिन कांड हो रहे हैं। अब ताजा मामला एक प्रतिष्ठित कारोबारी की बेटी से छेड़छाड़ का है। इस बेटी के साथ शहर के ही एक बिल्डर कम नेता और एक दलाल के साहबजादों ने ये गलत हरकत की है। छात्रा ने हिम्मत दिखाते हुए बाकायदा ​मैनेजमेंट को चिट्ठी भी लिखी, लेकिन देखिए तो कुलीनों की इस संस्था में उसकी आवाज को दबाने का प्रयास किया गया। स्कूल के जिम्मेदारों ने स्टूडेंट्स के ही एक दूसरे गुट से उलटे छात्रा पर ही सवाल खड़े किए गए। कुल मिलाकर, मैनेजमेंट ने दो रसूखदारों को साथ देकर ये साबित कर दिया कि जेब में जब माल हो तो बाकी सब चीजें फीकी पड़ जाती हैं।
साहब का स्वैग अलग ही है...!
मंत्रालय हो और वहां मसालेदार किस्से न निकलें… ऐसा हो ही नहीं सकता। हर दिन कुछ न कुछ ऐसा होता है कि सोशल मीडिया पर चर्चा का नया टॉपिक मिल जाता है। ताजा मामला है एक साहब का है, जो हाल ही में दिल्ली से लौटे हैं। अब ये साहब मंत्रालय में आते हैं तो माहौल ही बदल जाता है। उनकी मीटिंग का अंदाज बिल्कुल कॉरपोरेट वाला है। कभी हाथ में स्टाइलिश कॉफी मग थामे रहते हैं तो कभी कॉन्फ्रेंस हॉल में टहलते-टहलते मीटिंग लेने लगते हैं। मातहत अफसरों के लिए ये स्टाइल एकदम नया अनुभव है। कुछ को तो बड़ा मॉडर्न लगता है, लेकिन कुछ फुसफुसाते भी हैं, ये मंत्रालय है या किसी मल्टीनेशनल कंपनी का बोर्डरूम? खैर, साहब का स्वैग जारी है। अब देखना ये है कि साहब के इस अंदाज से उनके पढ़ाई लिखाई वाले मंत्रालय की फाइलों की स्पीड बढ़ती है या सिर्फ कॉफी की खुशबू ही फैलती है।
अफसरशाही का नया राउंड
अफसरशाही में डायरेक्ट भर्ती और प्रमोटी आईएएस अफसरों की अनबन किसी से छिपी नहीं है। दोनों की पटरी शायद ही कभी ठीक से बैठी हो। अब ताजा और भी रोचक है। डायरेक्ट भर्ती के एक साहब ने अपने साथ काम कर रहे प्रमोटी आईएएस को सीधे-सीधे नोटिस थमा दिया है। आरोप ये कि आपका कामकाज ठीक नहीं है। बस फिर क्या था… अफसरशाही में हड़कंप मच गया। अब प्रमोटी अफसरों का गुट भड़का हुआ है। दबी जुबान में कह रहे हैं, हम पर तो हमेशा ऊंगली उठा दी जाती है, लेकिन डायरेक्ट वाले खुद कितने दूध के धुले हैं? कहानी में ट्विस्ट ये भी है कि हाल ही में एसीएस स्तर के ये बड़े साहब मंत्रालय से बाहर हो गए हैं और उन्हीं की कुर्सी के नीचे यह खींचतान चल रही है। मतलब साफ है कि सीधी भर्ती बनाम प्रमोटी की जंग एक बार फिर सुर्खियों में है।
बड़े साहब और कंसल्टेंट
सूबे के सबसे बड़े साहब…नाम ही काफी है। ये ईमानदारी की मिसाल माने जाते हैं, लेकिन अफसरशाही में इन दिनों उनके एक फैसले ने सबको चौंका दिया है। कहानी ये है कि घर बनाने वाली एक सरकारी संस्था में अचानक दिल्ली के एक खास कंसल्टेंट को इम्पैनल कर लिया गया है और वो भी सीधे-साहब की मंशा पर। अब सोचिए… जब सिफारिश खुद सबसे बड़े साहब की हो तो उस कंसल्टेंट का कद कितना ऊंचा होगा? अब मंत्रालय की गलियों में सवाल यही घूम रहा है कि साहब और दिल्ली वाले कंसल्टेंट का रिश्ता क्या कहलाता है? कुछ लोग कहते हैं पुराने परिचित हैं तो कुछ इसे और गहराई से डिकोड करने में जुटे हैं। खैर, हमने तो बस अपना काम कर दिया है, बाकी गुणा भाग आप ही लगाते रहिए।
साहब पसीना निकाल रहे
अफसरशाही में इन दिनों सबसे ज्यादा चर्चा अगर किसी की है, तो वो हैं रील वाले कलेक्टर साहब। पहली बार कलेक्टर की कुर्सी पर बैठे हैं, लेकिन सोशल मीडिया स्टारडम में पुराना तजुर्बा झलकता है। सुबह-सुबह साहब शहर के बाजारों में साइकिल पर निकल पड़ते हैं। अब भला मातहत अफसर क्या करें, बॉस के पीछे-पीछे साइकिल दौड़ाना उनकी मजबूरी बन चुकी है। असल मजा तो तब आता है, जब इन दौरों की रील बनती है। बाकायदा शूटिंग होती है, एडिटिंग होती है और फिर सोशल मीडिया पर धूमधाम से पोस्टिंग। नतीजा ये कि आम जनता से लेकर अफसरशाही तक, सबके बीच कलेक्टर साहब की ब्रांडिंग फुल-ऑन मोड में है। कुल मिलाकर साहब काम जरूर अच्छा कर रहे हैं। जनता खुश है, अफसर परेशान हैं और सोशल मीडिया पर लाइक और व्यूज की बारिश हो रही है।
पापा का सिंहासन...
अब भला ये भी कोई नई बात है कि पापा मंत्री हों और बेटा भौकाल न दिखाए, जी हां...मंत्रीजी के लाड़ले का ऐसा ही जलवा कायम है। किस्सा कुछ यूं है कि मंत्रीजी जरा कैबिन से बाहर गए और पीछे से लाड़ले सीधे पापा के सिंहासन पर विराजमान हो गए। बस फिर क्या था, उन्होंने अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के सामने राजसी जलवा बिखेरा। कहानी यहीं नहीं थमी, भैया के साथ सौजन्य भेंट वाली तस्वीरें बाकायदा सोशल मीडिया पर फ्लैश हो गईं। वैसे इससे पहले मंत्रीजी के दफ्तर से मूर्ति गायब हो गई थी, तब भी खूब मजमा लगा था। उधर, एक और नेता पुत्र इन दिनों गाड़ियों के काफिले को लेकर चर्चा में हैं। सोशल मीडिया में उसे किसी तमिल फिल्म के हीरो की तरह प्रजेंट किया जा रहा है। बात तो सही है कि ये लाड़ले सौ-सौ गाड़ियों के काफिले के साथ जो निकलते हैं। आपको बता दें कि इनके पिताजी पहले सूबे में कद्दावर मंत्री थे।
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