बोल हरि बोल : डेली कॉलेज में भाईसाहब की धमक, होम का भूत और तुनकमिजाज मैडम, कौन करा रहा मंत्रीजी की जासूसी?

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल में आज पढ़िए मंत्रीजी की जासूसी, डेली कॉलेज विवाद, तुनकमिजाज मैडम के ताजा किस्से…

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Harish Divekar
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मध्यप्रदेश की​ सियासत से मसाला ​न निकले, यह कैसे संभव है? अब देखिए न अफसरों से लेकर राज्य के मंत्रियों और केंद्र के मंत्रियों तक के किस्से सामने आए हैं। पक्ष-विपक्ष सब तरफ सियासी घमासान छिड़ा है। जिसे, जब, जहां मौका मिल रहा है, वह अपना काम कर रहा है। उधर, जय-वीरू की जोड़ी एक बार फिर चर्चाओं में है। कुलीनों की संस्था में भाईसाहब की एंट्री के भी कम चर्चे नहीं हैं। 
खैर, देश- प्रदेश में खबरें तो हर दिन की तरह बहुत हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आईए और वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए। 

जय-वीरू ​क्या ​'मन' से एक हुए?

यदि इश्क है तो फिर बार-बार जताना और बताना क्यों पड़ता है? अब आप सोच रहे होंगे कि हम यूं लैला-मजनू जैसी बातें क्यों करने लगे, लेकिन जनाब इसके पीछे सॉलिड वजह है। यहां हम बात कर रहे हैं दो हमराह नेताओं की। दोनों अपने-अपने समय में खूब पॉपुलर रहे हैं। अब भी राजनीति की पिच पर टेस्ट क्रिकेट खेल रहे हैं, लेकिन पिछले दिनों हुई बयानबाजी और सोशल मीडिया पोस्ट से जनता को लगा कि दोनों के बीच तलवारें खिंच गईं हों। सियासी तौर पर भी खूब बातें हुईं। अब इनमें से एक नेताजी ने फिर सोशल मीडिया पोस्ट कर अपने मजबूत रिश्तों की बात कही है। उनका भाव मानो यही है कि जोड़ी जय-वीरू सरीखी है। अब विरोधियों को तो इसमें भी मौका मिल गया। सत्ताधारी दल के कुछ नेताओं ने लिखा, ये कैसा इश्क है, जो बार-बार जताना पड़ता है। दरअसल, यह कोई पहला मौका नहीं है, जब इस तरह रिश्ते अच्छे होने की सफाई दी गई हो, इससे पहले भी ये मनमुटाव होने के बाद भी एक-दूसरे की पैरवी करते रहे हैं।

डेली कॉलेज के विवाद में भाई साहब ​कूदे!

इंदौर में राजा- महाराजाओं के नाम से पहचान रखने वाला डेली कॉलेज इन दिनों खासा चर्चा में है। दरअसल, यहां चुनाव होने हैं। ऐसे में वर्तमान मैनेजमेंट के खिलाफ कई गंभीर आरोप लग रहे हैं। इनमें चाल- चरित्र से लेकर करोड़ों रुपए के खेल करने के आरोप भी हैं। करीब 2500 सदस्यों वाले डेली कॉलेज में चुनिंदा 9 लोगों ने एजीएम बुलाकर बड़े- बड़े फैसले कर लिए। इसके खिलाफ कुछ सदस्यों ने फर्म एंड सोसायटी में शिकायत कर 9 लोगों की एजीएम पर रोक लगवा दी है। अब मामला उलझा तो मैनेजमेंट के लोगों ने संघ के एक पदाधिकारी को पकड़ लिया। भाईसाहब भी तत्काल मैनेजमेंट की तरफ से बल्लेबाजी करने मैदान में कूद गए और अपने रुतबे का इस्तेमाल करते हुए फर्म एंड सोसायटी के आदेश पर रोक लगाने का फरमान जारी करवा दिया। अब अफसर ऊपर के दबाव में इस मामले में स्टे देने का रास्ता खोज रहे हैं। वहीं, दूसरा पक्ष अब डेली कॉलेज के मैनेजमेंट को छोड़कर भाई साहब की कुंडली निकालकर नागपुर मुख्यालय और दिल्ली के पदाधिकारियों को भेजने की तैयारी में जुट गया है। 

तुनक मिजाज मैडम का खौफ

एक संचालनालय की मुखिया मैडम तुनक मिजाज हैं। उनके इस व्यवहार से पूरा अमला हैरान- परेशान है। मंत्रालय की हॉट सीट के सामने मैडम ने अच्छा खासा इम्प्रेशन जमा रखा है, जिसके चलते दूसरे सीनियर अफसर भी मैडम पर नकेल नहीं कस पा रहे। साहब की मेहरबानी से जूनियर होते हुए भी इन मैडम को बड़े संचालनालय की जिम्मेदारी मिली है। मैडम से परेशान लोगों ने उनकी कुंडली खंगालना शुरू कर दिया है। बताते हैं कि कुछ लोगों को महत्वपूर्ण जानकारी हाथ लगी है। मैडम अपने पुराने साथियों की कंपनी को ओब्लाइज करने की तैयारी में हैं। अमले के लोगों को भी इसी मौके का इंतजार है, जिससे हॉट सीट के सामने मैडम के ईमानदारी से बेइमानी करने का पिटारा खोल सकें।

होम का भूत अभी भी डरा रहा है

यूं तो होम डिपार्टमेंट के अपर मुुख्य सचिव जेएन कंसोटिया रिटायर हो गए हैं, लेकिन इसमें अभी फुलप्लेस अफसर की पोस्टिंग नहीं की गई है। नाम तय न हो पाने के कारण आनन-फानन में पर्यटन एवं संस्कृति विभाग के अपर मुख्य ​सचिव शिव शेखर शुक्ला को विभाग का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है। बताया जा रहा है कि दशहरे के बाद आने वाली ट्रांसफर लिस्ट में होम में फुलप्लेस पोस्ट होने वाले अफसर का नाम भी होगा। बस इसी बात से होम का भूत अभी भी कुछ अपर मुख्य सचिव स्तर के अफसरों का डरा रहा है। उन्हें डर है कि कहीं इस लिस्ट में नाम न आ जाए। दरअसल, मंत्रालय में होम डिपार्टमेंट सबसे बड़ी लूप लाइन वाली पोस्टिंग मानी जाती है। इसके पीछे वजह यह है कि पीएचक्यू के अफसर सीधे सीएम से कनेक्ट रखकर अपने प्रस्ताव मंजूर करवा लेते हैं, यहां तक कि आईपीएस की पोस्टिंग में भी होम डिपार्टमेंट के एसीएस की कोई भूमिका नहीं रहती। नाम फाइनल होने के बाद आईपीएस की लिस्ट जरूर होम एसीएस के साइन से निकलती है, यानी कुल मिलाकर इस पोस्ट पर रहने वाले अफसर डाक​ विभाग के अफसर की भूमिका में ज्यादा नजर आते हैं।

कौन करा रहा मंत्रीजी की जासूसी?

पिछली बार हमने आपको एक कैमराजीवी केंद्रीय मंत्री से रू-ब-रू कराया था। उनका किस्सा इस बार फिर आया है। दरअसल, हुआ यूं कि मंत्रीजी अंचल में एक कार्यक्रम में शिरकत करने जा रहे थे, तभी रास्ते में विरोधी दल के नेताओं ने उनका काफिला रोक लिया। अब नेताजी भी अपने चिर परिचित अंदाज में कार से उतरे और मुलाकात के लिए आगे बढ़े। इस बीच विरोधी दल के नेता किसानों की परेशानियों पर बात करने लगे, मंत्रीजी ने उन्हें घुट्टी पिलाई, लेकिन इस बातचीत को मीडिया और कार्यकर्ता मोबाइल में शूट करने लगे। बस, फिर क्या था। यह देख मंत्रीजी की टीम कैमरा बंद कराने लगी। ये कहते तक सुना गया कि कैमरे बंद करो। इस घटनाक्रम के बाद अब मंत्रीजी के चाहने वाले ही कह रहे हैं कि वैसे तो मंत्रीजी कैमराजीवी हैं, फिर जब किरकिरी होने लगी तो कैमरा ही क्यों बंद कराने लगे। वहीं, कट्टर समर्थक तो यह तक कह रहे हैं कि मंत्रीजी की जासूसी कराई जा रही है। वीडियो बनाने वाले और कोई नहीं, बल्कि मध्यप्रदेश के ही कुछ अधिकारी थे। 

खून का रिश्ता सबसे मजबूत... 

और अब खबर चलते–चलते… मध्यप्रदेश की सियासत में इन दिनों परिवारवाद का तड़का खूब लगाया जा रहा है। ताजा मसाला एडीआर (एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स) ने पकड़ा है। रिपोर्ट आई है कि प्रदेश के 270 माननीयों की कुर्सियों के पीछे किसके आशीर्वाद हैं। आंकड़े बताते हैं कि 57 नेता तो सीधे अपने खानदान की विरासत संभाल रहे हैं। बात करें विधायकों की तो कुल 230 विधायकों में से 48 विधायकों का राजनीतिक डीएनए घर से ही आया है, इनमें से 28 बीजेपी के और 20 कांग्रेस के हैं। यानी सियासत की ये कुर्सियां नए टैलेंट से ज्यादा घरानों की परंपरा निभा रही हैं। सांसदों की गली में झांकें तो लोकसभा के 29 और राज्यसभा के 11 सांसदों में भी वंशवाद की पकड़ मजबूत है। दिलचस्प ये है कि इसमें महिला सांसद सबसे आगे हैं। तो साहब, बहस चाहे कितनी भी छिड़ जाए, पर हकीकत यही है कि प्रदेश की सियासत में टिकट से लेकर ताज तक, खून का रिश्ता ही सबसे मजबूत पासवर्ड है।

महाराज का इशारा या...?

कैबिनेट बैठक के बाद एक माननीय डॉक्टर साहब के सामने फट पड़े। उनकी टीस यह थी कि शहर में बदइंतजामी के हालात हैं और अफसर इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे। उनके सुर में सुर मिलाते हुए उनके दोस्त ने भी सवाल खड़े किए। इस पर डॉक्टर साहब ने समझाइश दी और मामला शांत कराया। अब यहां सवाल यह खड़ा हो रहा है कि मंत्रीजी यूं तो अपने सीनियर नेताओं से ज्यादा उलझते नहीं हैं, लेकिन क्या यह सब 'महाराज' के इशारे पर हुआ? कुछ इसी तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। राजनीतिक रूप से महाराज का कद तो सब बड़ा मानते ही हैं, हो सकता है कि जो बात महाराज ने कहना उचित न समझी हो, वह अपने समर्थक मंत्रीजी से कहलवा दी हो? जो भी हो, लेकिन मंत्रीजी की गुहार कम, गुस्से के कई मायने निकाले जा रहे हैं। उधर, इसका असर यह हुआ है कि अब अधिकारी एक्शन मोड में आ गए हैं। 

ये रिश्ता क्या कहलाता है?

रह-रहकर एक मंत्रीजी को खूब टारगेट किया जा रहा है। अपराधियों के साथ उनके पुराने फोटो-वीडियो अपलोड किए जा रहे हैं, लोग पूछ रहे हैं ​ये रिश्ता क्या कहलाता है? रही सही कसर अब एक कॉलेज घराने के खुलासे ने पूरी कर दी है। ये दूसरा मौका है, जब मंत्रीजी को टारगेट किया गया है। अब मंत्रीजी के विरोधी तो अपनी तरह से व्याख्या कर रहे हैं, लेकिन मंत्रीजी के समर्थक चिंता में हैं। कहा जा रहा है कि ये सब ऊपर के इशारे पर हो रहा है। अब ये ऊपरवाले कौन हैं, ये तो राम ही जानें...लेकिन अभी तो मंत्रीजी की मुसीबतें कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। अप्रत्यक्ष रूप से मंत्रीजी पर अचानक यूं शिकंजा कसा जाने से उनके मॉटिवेशनल वीडियो आना बंद हो गए हैं। पहले वे अपने यहां आने वाले पीड़ितों के वीडियो बनाकर खूब वाहवाही लूटते थे, लेकिन अब बदली हुई परिस्थितियों में सब बदल गया है।

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