बोल हरि बोल : बड़े साहब की अनोखी पसंद, कलेक्टर मैडम का सख्त अंदाज और श्श्श्श्श...

मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल में आज पढ़िए मंत्रालय से लेकर जिलों तक के सियासी हलचल तक सब कुछ। इसमें तबादलों, कलेक्टर की सख्ती और गुंडागर्दी जैसे मसलों को विस्तार से चर्चा की गई है।

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Harish Divekar
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BHOPAL.मध्यप्रदेश में मंत्रालय के गलियारों से लेकर जिलों की चौपाल तक...फुसफुसाहटें कभी रुकती ही नहीं। यहां हर दिन नई कहानी जन्म लेती है। कहीं आधी रात को तबादलों की बारिश होती है तो कभी फोन टेपिंग पर हंगामा खड़ा हो जाता है। अब बड़े साहब की पसंदगी की फेहरिस्त चर्चा में है। कलेक्टर मैडम का सख्त अंदाज में सुर्खियां बटोर रहा है। सोशल मीडिया अपने ही रंग में सियासी हलचल खड़ी कर रहा है। उधर, इंदौर जैसे चमकते शहर में गुंडों की परछाइयों ने चिंता बढ़ा दी है। कुल मिलाकर सत्ता और सिस्टम की इस गॉशिप डायरी में हर मोड़ पर चौंकाने वाला मसाला है।

आप तो सीधे नीचे उतर आईए और वरिष्ठ पत्रकार हरीश दिवेकर (Harish Diwekar) के लोकप्रिय कॉलम बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का अंदाज लीजिए। 

हाय! में ये क्या चल रिया है?

मंत्रालय और राजनीतिक गलियारों में आजकल एक ही चर्चा है कि कौन-किसे सुन रहा है? नेताओं से लेकर अफसरों तक सबकी धड़कनें तेज हैं। उन्हें खुफियागिरी का डर है। कुछ दिन पहले एक विधायक जी ने एसपी पर फोन टेपिंग का इल्जाम लगाया था। अब भला बताइए, कौन नेता दिन-रात की गपशप आराम से करेगा, अगर मोबाइल पर खुफिया कान लगे हों? वैसे अब खबर पक्की है कि इस हंगामे के बाद एसपी के हाथ बांध दिए गए हैं। अब वे सीधे फोन टेप नहीं कर पाएंगे। पहले पुलिस मुख्यालय की मंजूरी लेनी पड़ेगी। और तो और पुलिस मुख्यालय ने इस काम के लिए स्पेशल फोन टेपिंग सेल भी बना दी है।  

बड़े साहब को IIT-IIM वाले पसंद हैं!

फील्ड की पोस्टिंग हो या फिर मंत्रालय में अहम पद की...बड़े साहब की प्राथमिकता में आईआईटी और आईआईएम करने वाले अफसर रहते हैं। जब भी ब्यूरोक्रसी में बदलाव की लिस्ट होती है तो सबसे पहले देखा जाता है कि क्या उन्होंने आईआईटी या आईआईएम किया है, यदि किया है तो फिर उसके सारे अवगुण माफ हैं। बड़े साहब का मानना है कि आईआईटी और आईआईएम करने के बाद आईएएस बनने वाले अफसर महान होते हैं। वे बड़े और अहम पद के काबिल हैं। बड़े साहब के इस फॉर्मूले से दूसरे अफसर नाराज हैं। हालांकि हॉट सीट के खिलाफ बोलने की हिम्मत किसी की नहीं है, इसलिए रिटायर आईएएस अफसरों की मदद ली जा रही है कि वे ही कुछ इस मामले में आवाज उठाएं। 

मैडम को पतियों की दखल अंदाजी पसंद नहीं

एक जिले की कलेक्टर मैडम महिला सशक्तिकरण को लेकर गंभीर हैं। एक वाकया तो बड़ा दिलचस्प है। उन्होंने भरी बैठक में पार्षद पतियों की बैंड बजा दी। दरअसल, बैठक में महिला पार्षद की जगह उनके प्रतिनिधि के रूप में पति आ गए। कलेक्टर मैडम ने पार्षदों बारे में पूछा तो उन्हें बताया गया कि वे घर पर हैं। इस पर मैडम ने पार्षदों के पतियों को खरी-खोटी सुना दी। उन्होंने कहा कि आगे से बैठक् में उन्हें ही भेजें, आप चाहें तो साथ में आ सकते हैं, लेकिन उनके नाम पर आप पार्षदी नहीं कर सकते। उन्होंने बैठक के बाद सभी महिला पार्षदों को व्यक्तिगत मिलने के लिए भी बुला लिया। अब मैडम के इस काम की खूब वाहवाही हो रही है। 

स्वच्छ शहर को गुंडों ने किया गंदा

स्वच्छता में लगातर नंबर वन का दर्जा पाने वाला इंदौर आज बढ़ते क्राइम से शर्मशार हो रहा है। छुटभैए गुंडे स्थानीय नेताओं के संरक्षण में डॉन बनने का सपना देख रहे हैं। व्यापारियों में डर है। बड़े स्तर पर अड़ीबाजी और वसूली शुरू हो चुकी है। पुलिस मौन है। सबसे बड़ी बात ये है कि इंदौर के बड़े पुलिस अफसर जो अपने आप को धाकड़ और दबंग का तमगा दिए डींगे हांकते हैं, वे इन दिनों कुर्सी बचाने के ​फेर में नेताओं के पाले हुए गुंडों को बचाने में लगे हैं। अब देखिए ना, एक अपराधी सलमान लाला का एनकाउंटर होने के बाद उसकी अंतिम यात्रा में युवा जुटते हैं। इससे जाहिर है कि इंदौर के युवा कानून और पुलिस से ज्यादा गुंडे का सम्मान कर रहे हैं, उसे अपना आदर्श मान रहे हैं। जागो इंदौर जागो, जिस तरह हाथ में झाड़ू ले​कर कचरा साफ किया है, वैसे ही हाथ में डंडा लेकर गुंडों की बैंड बजा दो। क्योंकि जिस पुलिस पर आप भरोसा करके घर में बैठे हैं, वो अभी सो रही है, उसके जागने का इंतजार करने से बेहतर है कि उसे हिला दिया जाए।  

अब जिलों का नंबर आने वाला है! 

इधर आसमान से मानसून विदाई की तैयारी में है और उधर मंत्रालय में तबादलों की बारिश शुरू हो गई है। आधी रात को जब अफसर आराम से नींद ले रहे थे, तब उनके तबादले की लिस्ट टाइप हो रही थी। सुबह मोबाइल में आदेश की कॉपी देखकर कई चौंक गए। जी हां, डॉक्टर साहब ने भारतीय प्रशासनिक सेवा और राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के थोक में तबादले कर दिए हैं। ये तो बस ट्रेलर है, असली पिक्चर अभी बाकी है। क्योंकि अब जिलों का नंबर आने वाला है। जिन जिलों में पिछले दिनों विवादों के तड़के लगे हैं, वहां बदलाव होने वाला है। हम तो यही कहेंगे कि साहब कुर्सी की बेल्ट कस लो, अगले राउंड में तूफान जिलों की तरफ मुड़ने वाला है। 

सोशल मीडिया भी गजब है...

सोशल मीडिया की भी अपनी अलग ही दुनिया है। यहां फिलवक्त हर दिन मंत्रिमंडल विस्तार हो रहा है। हां, सही पढ़ा है आपने। दरअसल, जैसे ही दो बड़े नेताओं की आपस में मेल मुलाकात होती है तो मंत्रिमंडल में फेरबदल की बात उठ खड़ी होती है। अब भले ही नेता अपने निजी कामों से एक दूसरे से मिलें, लेकिन सोशल मीडिया ग्रुप्स को नया मसाला मिल जाता है। टीवी मीडिया तो मानो पिल पड़ती है। हेडिंग होती हैं...एमपी में सियासी हलचल तेज, बड़े बदलाव के आसार...अरे भैया अभी डॉक्टर साहब की सरकार को पूरे दो साल में भी नहीं हुए हैं, कहां से बदलाव होगा...। हां, ये जरूर है कि कुछ मंत्रियों के कामकाज से दिल्ली दरबार खुश नहीं हैं। उन्हें हिदायत दी गई है। लिहाजा कुछ माननीयों में घबराहट है। इसी हड़बड़ी में इन माननीयों ने सोशल मीडिया पर झांकी बाजी करना बंद कर दिया है। पहले ये हर दिन प्लान करके रील बनवाते थे, अब इन पर लगाम कस दी गई है। 

पुलिस 'बेचारी' हो गई?

कभी बुलडोजर न्याय से अपनी अलग पहचान बनाने वाला मध्यप्रदेश इन दिनों खुद पुलिस की वजह से सुर्खियों में है। अब देखिए ना, इंटेलिजेंस के अफसर से ही लूट हो जाए तो आम जनता क्या सोच रही होगी? विदिशा का किस्सा तो और भी करुण है। वहां पुलिस को ही पिटाई झेलनी पड़ गई। ऊपर से भोपाल में रिटायर्ड आईपीएस अफसर की सुनवाई तक नहीं हो रही। अब बताइए, जब पुलिस वाले ही सुरक्षित नहीं तो बाकी लोगों का हाल कैसा होगा? गॉशिप गलियारों में तो यह तंज घूम रहा है कि बुलडोजर से डरने वाले माफिया तो गायब हो गए, लेकिन अब पुलिस खुद ही डर के साए में है। विपक्ष ने इसे मुद्दा बनाकर पकड़ लिया है। हर प्रेस कॉन्फ्रेंस, हर बयान में यही सवाल होता है कि कहां है कानून व्यवस्था?

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