मध्य प्रदेश 'मोहन' के रंग में रंगा है, अरे भई...जन्माष्टमी जो आ रही है। क्या ही गजब का मौसम है। ग्वाले मटकियां फोड़ रहे हैं और अफसर घर। इन दिनों मध्य प्रदेश सकल देश में छाया हुआ है। बयानों की राजधानी एक्सप्रेस दौड़ रही है। सूबे की राजधानी भोपाल से दिल्ली तक पक्ष और विपक्ष में तकरार छिड़ी हुई है। सबके तरकस से एक से बढ़कर एक शब्द बाण निकल रहे हैं।
ओह्ह बाण से याद आया… एक ओएसडी साहब भी अपने ऐसे ही बाण छोड़ रहे हैं। बस फर्क इतना है कि ये बाण बयानों के नहीं… बल्कि बंडलों के हैं। साहब एक मंत्री महोदया की टीम में हैं। उधर...एक माननीय अलग ही फॉर्म में चल रहे हैं। उन्होंने खनन कंपनियों की ऐसी नसें दबाई हैं कि सब झलाझल हो रहा है। कहानी यहां तक कि पहुंच चुकी है कि अब तो विधायक जी की कई कंपनियों में हिस्सेदारी तक हैं।
खैर देश प्रदेश में खबरें तो और भी हैं, पर आप तो सीधे नीचे उतर आइए और बोल हरि बोल के रोचक किस्सों का आनंद लीजिए।
ऐसा मैनेजमेंट तो मत करो साहब!
क्या ही गजब का प्रबंधन है अफसरों का। अब देखिए न, अधिकारियों ने मंत्रियों को तो खुश कर दिया है पर ऐसा लगता है मानो उन्हें आम आदमी की वाजिब परेशानी से कोई सरोकार नहीं है। मामला ऐसा है कि वित्त विभाग ने मंत्रियों के बंगलों की सजावट पर होने वाले खर्च के भुगतान पर लगाई गई रोक हटा दी है।
अब भी 33 विभागों की 73 योजनाओं में होने वाले खर्च पर अड़ंगा बरकरार है। उधर, बारिश से उखड़ी सड़कों के कारण लोग परेशान हैं, पर वित्त विभाग ने शहरी सड़कों के सुधार के लिए कायाकल्प योजना, पीडब्ल्यूडी की सड़कों के सुधार, उन्नयन, डामरीकरण और नवीनीकरण के लिए बंदिशों की बेड़ियां लगा रखी हैं।
इन्हें हाथ न लगाएं, मैडम के समर्थक हैं...!
डॉक्टर साहब को जिसका डर था, मानो अब वही होने लगा। मंत्रियों को जिलों का प्रभार क्या मिला... कुछ का स्टाफ दूध गाढ़ा करने लगा है। मतलब... मलाई बनने लगी है। ताजा मामला एक मंत्री महोदया का है। उन्हें कमाई वाले जिले की जिम्मेदारी मिली है। इसी के साथ उनके ओएसडी साहब ने अपनी सेटिंग जमानी शुरू कर दी है। अब ये साहब मंत्राणी का काम-काज छोड़कर प्रभार वाले जिले में वसूली में जुट गए हैं।
हालात ये हैं कि कलेक्टर- एसपी को भी खनिज माफिया को बचाने के लिए सीधे फोन जा रहे हैं। कहा जाता है कि इन्हें हाथ न लगाएं, मैडम का समर्थक है। बता दें, ओएसडी अपने आप को डॉक्टर बताते हैं। अपने पेशे के मुताबिक इन्हें पता है कि वसूली करने के लिए किस अधिकारी की कौन सी नब्ज पर हाथ रखना है।
कोयले की दलाली में विधायक जी के हाथ काले!
कहते हैं कोयले की दलाली में सबके हाथ काले होते हैं। फिर क्या नेताजी और क्या अफसर। यहां हम बात कर रहे हैं नेताजी की। नेताजी विधायक हैं। आदिवासी वर्ग से आते हैं, लेकिन उनकी व्यापारिक समझ के आगे अच्छे अच्छे पानी मांगते फिर रहे हैं। विधायक जी का जिला कोयले की खानों के लिए जाना जाता है।
ऐसे में इन माननीय ने जिले में काम कर रहीं बड़ी- बड़ी कंपनियों की नसें दबाकर उनके कई कामों में अपनी हिस्सेदारी डाल ली है। इसमें एक कंपनी तो देश के नंबर वन उद्योगपति की भी है। कमाल यह है कि विधायक जी ने इन्हें भी अपने अंटे में ले लिया है। अब क्या करें, मरता क्या नहीं करता... काम करने के लिए कंपनी भी विधायक जी का पूरा ध्यान रख रही है। बाकी सारा हिसाब किताब विधायक जी के सुपुत्र संभाल ही लेते ही हैं।
हमें बनाओ जी, हमें बनाओ कमिश्नर...
भोपाल और इंदौर शहर छोटे भाई- बड़े भाई जैसे हैं। पूरे सूबे को मानो यही तो शहर चलाते हैं। हर कोई चाहता है कि यहां उसका दबदबा हो। जब से बाजार में ये खबर आम हुई कि यहां के पुलिस कमिश्नर बदलने वाले हैं, तब से दावेदारों ने हर उस दरवाजे पर दस्तक देनी शुरू कर दी है, जहां- जहां से उन्हें इस कुर्सी पर बैठने का ग्रीन सिग्नल मिल सके। हालांकि डॉक्टर साहब ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।
यह भी सामने नहीं आया कि भोपाल- इंदौर पुलिस कमिश्नर की कुर्सी बैठने वाले अफसरों के लिए क्या मापदंड होंगे? इसका राज तो पोस्टिंग के बाद ही खुल पाएगा कि फलां अफसर कौन सी परीक्षा पास होकर इस कुर्सी पर पहुंचा है। फिलहाल तो झमाझम के बीच धड़ाधड़ ट्रांसफर पोस्टिंग चालू आहे है। आपको बता दें कि जल्द ही पांचवें माले से एक और सूची आने वाली है। इसमें भी बड़े नाम होंगे।
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान,
भीलां लूटी गोपियां, वही अर्जुन वही बाण।।
ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी। अभी ये कहावत एक न्यायिक अधिकारी पर सटीक बैठ रही है। माननीय हाईकोर्ट में रुतबे से रहे। फिर रिटायर हुए तो सरकार में जांच एजेंसी में बड़े ओहदे पर जा बैठे। यहां भी जब तक रहे, सरकार को पूरे समय हिलाकर रखा। अब जब कार्यकाल पूरा हुआ तो वही माननीय अपने सेटलमेंट क्लेम के लिए परेशान हैं।
उन्हें समझ आ गया कि मंत्रालय में बेरहम अफसरों का राज है, जब तक कुर्सी पर रहो... सलाम ठोकते हैं, रिटायर होने के बाद पहचानने से इनकार कर देते हैं। इसलिए अब उन्होंने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। हम तो यही कहेंगे कि साहब ये वक्त भी गुजर जाएगा। रात कभी सूरज को नहीं रोक सकती।
बहनों के बजट से बिगड़ी सरकार की सेहत
लाड़ली बहना ने बीजेपी को सत्ता के शीर्ष पर तो पहुंचा दिया, लेकिन अब 'सरकार' को सरकार चलाना भारी पड़ रहा है। पूरा खेल खजाने का है। भारी भरकम बजट बहनों पर खर्च होने के कारण अब जिलों में आरबीसी 6-4, संबल और एससी-एसटी पीड़ितों का बजट गड़बड़ा गया है। कलेक्टरों ने इन मामलों के आवेदनों पर मंजूरी तो दे दी, लेकिन बजट न होने के कारण पीड़ित को राशि नहीं मिल रही है।
सबसे बड़ी बात ये है कि विभाग ने ये बात अभी तक डॉक्टर साहब को नहीं बताई, क्योंकि जब मामला ऊपर जाएगा तो बजट एडजस्ट करने को कहा जाएगा। विभाग दूसरे मद से इसे एडजस्ट करेंगे तो अफसरों की मलाई खतरे में आ जाएगी। कुछ समझे आप....
दंड से न्याय तक...
इंदौर के एक ख्याति प्राप्त साहब की किताब 'दंड से न्याय तक' जल्द ही बाजार में उतरने वाली है। बताया जा रहा है कि इस किताब में पुलिस के नए कानून 'भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता' (बीएनएसएस) और पुराने कानून 'भारतीय दंड संहिता' (आईपीसी) के बीच के बदलाव को सरल भाषा में लिखा गया है। 'दंड से न्याय तक' पुलिस और जनता के बीच जानकारियों का सेतु बनाने वाली किताब है। आपको बता दें, किताब के लेखक महोदय एक पूर्व पुलिस अधिकारी हैं। इन्होंने नौकरी के बाद राजनीति के क्षेत्र में भी प्रबंधन और समन्वय में महारत हासिल है। इनके जीवन का फ़ंडा सबकी मदद करना और सुख-दुख में सबका साथ निभाना है। कानून में आपकी रुचि है तो बस इंतजार कीजिए...।
क्यों भाईसाहब ने कुछ कहा है क्या?
मौसम की वजह से नदियां उफान पर हैं और छतरपुर की घटना पर राजनीति गरमा रही है। चौतरफा बयानबाजी चल रही है। यहां तक कि बाबा और बहना भी अपने मन की बात कह चुके हैं। ताजा घटनाक्रम सत्ताधारी दल के दफ्तर का है। यहां आपसी चर्चा में एक नेताजी मुस्कुराते हुए बोले...क्यों भाईसाहब का कुछ आया क्या? दूसरे ने प्रतिउत्तर में नहीं कहा। फिर बोले, हां उन्हें पता तो सब है। देखो जल्दी ही कुछ आए। तीसरे नेताजी बोल पड़े...उं हूं...कुछ नहीं आएगा। भाईसाहब बिहार, झारखंड और महाराष्ट्र में व्यस्त हैं।