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📘 किताब का नाम: दीवार में एक खिड़की रहती थी
✍ लेखक: विनोद कुमार शुक्ल
📆 पहली पब्लिशिंग: 2003
🌍 भाषा: हिंदी
विनोद कुमार शुक्ल की नई किताब दीवार में एक खिड़की रहती थी, हिंदी साहित्य की एक बेहतरीन रचना मानी जा रही है। यह जीवन की सरलता और उसमें छिपे गहरे भाव को दिखाती है।
इस किताब में जीवन की सादगी और उसमें छिपे गहरे भाव को बहुत अच्छे से दिखाया गया है। किताब, हमारी डेली रूटीन की जिंदगी से जुड़ने को इंस्पायर्ड करती है। साथ ही यह बताती है कि हम अपने आसपास की छोटी-छोटी चीजों को नजरअंदाज करते हैं, जो असल में हमारी खुशियों का कारण बन सकती हैं।
📖 दीवार में एक खिड़की रहती थी कहानी का सारांश
इस किताब की कहानी एक छोटे शहर के जीवन की है, जहां एक आदमी अपनी नार्मल जिंदगी जीता है। कहानी में एक खिड़की का जिक्र है, जो किसी बदलाव और उम्मीद का प्रतीक बन जाती है। यह खिड़की केवल एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि यह जीवन में नए रास्तों और नए व्यू प्वाइंट को अपनाने का हिंट देती है। पात्र अपनी साधारण जिंदगी में छोटे बदलावों को महसूस करते हैं। साथ ही हमें यह भी सिखाते हैं कि असल खुशी इन छोटे-छोटे पलों में ही छिपी होती है। दरअसल यह किताब जीवन को एक नई और गहरी नजर से देखने का एक सुंदर तरीका है।
✍ राइटर के बारे में
विनोद कुमार शुक्ल हिंदी साहित्य के फेमस राइटर हैं। उनकी लेखनी सरल और दिल को छू लेने वाली होती है। उनकी किताबें हमेशा जीवन के छोटे, लेकिन जरूरी पक्ष पर ध्यान खींचती हैं। शुक्लजी का लेखन हमेशा मानवीय भावनाओं और संवेदनाओं को समझने का एक तरीका है। दीवार में एक खिड़की रहती थी उनकी एक ऐसी किताब है जो हमें जीवन के सबसे सामान्य पलों को देखने का एक अलग नजरिया देती है।
📌 किताब के मेन कैरेक्टर
इस किताब का मेन कैरेक्टर कोई एक व्यक्ति नहीं है, बल्कि यह पूरे समाज और सामान्य लोगों का प्रतीक है। कहानी में जिन कैरेक्टर्स की बात की जाती है, वे बाहरी तौर पर तो नार्मल होते हैं, लेकिन उनके भीतर बहुत सारी चिंताएं और सवाल होते हैं। ये कैरेक्टर असल में किसी भी सामान्य व्यक्ति की तरह होते हैं, जो अपनी जिंदगी के अच्छे और बुरे पल जीते हैं। इन कैरेक्टरों के अनुभवों से ही कहानी में गहराई और सच्चाई आती है।
🏆 किताब को मिले पुरस्कार
दीवार में एक खिड़की रहती थी, को किसी बड़े पुरस्कार से नवाजा नहीं गया है, लेकिन इस किताब ने रीडर्स और राइटर्स से बहुत सराहना पाई है। यह किताब हिंदी साहित्य में अपनी एक खास पहचान बनाती है और यह विनोद कुमार शुक्ल के लेखन का एक बेहतरीन उदाहरण है।
दीवार में एक खिड़की रहती थी की रॉयल्टी
'दीवार में एक खिड़की रहती थी' किताब के ऑथर विनोद कुमार शुक्ल रॉयल्टी को इस किताब की बिक्री से 30 लाख रुपए की रॉयल्टी मिली। यह रॉयल्टी उनकी किताब की 87,000 से अधिक कॉपियां बिकने के बाद मिली है, जिसने हिंदी साहित्य के लिए एक नया रिकॉर्ड बनाया है। इस घटना ने हिंदी साहित्य की पॉपुलैरिटी और मार्केटिंग की क्षमता को दिखाया है।
💡 किताब का एक रोचक अंश
किताब का एक बहुत अच्छा और दिल छूने वाला अंश है:
दीवार में एक खिड़की रहती थी, जिसमें से बाहर की दुनिया को देखना कभी-कभी इतना रोमांचक हो जाता था कि लगता था जैसे जीवन एक नया रास्ता तलाशने निकला हो।
यह लाइन ये बताती है कि जिंदगी में बदलाव की संभावनाएं हर जगह होती हैं, बस हमें उनका ध्यान रखना होता है। यह खिड़की जीवन में एक नए नजरिए और नई दिशा का प्रतीक बन जाती है।
📌 पब्लिकेशन और क्रेडिट
यह किताब राजकमल पब्लिकेशन ने छापी है, जो हिंदी साहित्य के सबसे सम्मानित पब्लिकेशर्स में से एक है। राजकमल पब्लिकेशन ने इस किताब को सही तरीके से रीडर्स तक पहुंचाया और इसे एक व्यापक पहचान दिलाई।
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