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Photograph: (the sootr)
वित्तीय वर्ष 2024-25 के दौरान मध्य प्रदेश के निजी, सरकारी बैंकों में भारी घाटा हुआ है, जिससे राज्य के वित्तीय सेहत पर सवाल उठ रहे हैं। 1500 करोड़ रुपए का लोन डूबने से बैंकों के नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (एनपीए) की राशि 37,130 करोड़ रुपए तक पहुंच गई है, जो पिछले वर्ष 35,639 करोड़ रुपये थी।
इन आंकड़ों का खुलासा हाल ही में हुई स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी की बैठक में किया गया। इसमें सबसे अधिक नुकसान केंद्र सरकार की मुद्रा योजना (PM Mudra Scheme) में हुआ है, जिसमें 2500 करोड़ रुपए बर्बाद हुए हैं।
पीएम मुद्रा योजना से संकट में बैंक
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना को 2015 में सूक्ष्म, छोटे और मझोले उद्योगों (MSMEs) को लोन देने के उद्देश्य से शुरू किया गया था। इस योजना के तहत बैंकों को कई छोटे व्यवसायों को लोन देने के लिए प्रेरित किया गया था, लेकिन नतीजे उल्टे साबित हुए। अब तक बैंकों ने मुद्रा योजना के तहत 2500 करोड़ रुपए का लोन गंवाया है।
हालांकि योजना का उद्देश्य छोटे व्यवसायों को सहायता प्रदान करना था, लेकिन लोन लेने के बाद कई हितग्राहियों ने इसे लौटाने में रुचि नहीं दिखाई, जिससे बैंकों का एनपीए लगातार बढा। बैंकों का सबसे अधिक रुपया पीएम मुद्रा योजना में ही अटका है। बैंकों को मुद्रा योजना से हुए नुकसान का विस्तृत आंकड़ा इस प्रकार है:
सार्वजनिक बैंक: 1977 करोड़ रुपए डूबे
सभी बैंक: 2448 करोड़ रुपए डूबे, 14,476 करोड़ रुपए की देनदारी बाकी है।
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बैंकों पर एनपीए का बढ़ता संकट
एनपीए का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। 2024-25 में यह बढ़कर 37,130 करोड़ रुपए हो गया है, जबकि पिछले साल यह 35,639 करोड़ रुपए था। हालांकि, राहत की बात यह है कि एनपीए में बढ़ोतरी की दर में थोड़ी कमी आई है। यह दर 6.72% से घटकर 6.22% हो गई है।
सरकारी योजनाओं से बैंकों के नुकसान को ऐसे समझें
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खास योजनाओं में डूबे हुए पैसे
मध्य प्रदेश के बैंकों को जिन प्रमुख सरकारी योजनाओं में नुकसान हुआ है, वे निम्नलिखित हैं:
सीएम ग्रामीण आवास मिशन: 1685 करोड़ रुपए
पीएम रोजगार गारंटी योजना: 234 करोड़ रुपए
सीएम युवा उद्यमी योजना: 453 करोड़ रुपए
स्वसहायता समूह: 104 करोड़ रुपए
इन योजनाओं में बैंकों का पैसा डूबने से राज्य की वित्तीय स्थिति पर दबाव बढ़ा है।
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राहत की बातः बैंकोें में बढ़ा जमा धन
यहां राहत की बात यह है कि, बैंकों में जमा राशि में 58235 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ है। हालांकि यह वृद्धि लगभग 9% रही, जो पिछले साल की तुलना में कम है। पिछले साल यह वृद्धि 12% से अधिक थी, जो अब घटकर 9% हो गई है। यह स्थिति दर्शाती है कि बैंकों के पास जमा राशि की मात्रा बढ़ने के बावजूद लोन रिकवरी में समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।
कृषि क्षेत्र में वृद्धि
कृषि क्षेत्र में बैंकों ने अपना लोन बढ़ाकर 1,78,745 करोड़ रुपए कर दिया है, जो पिछले वर्ष 1,63,077 करोड़ रुपए था। कृषि क्षेत्र में बैंकों का लोन बढ़कर अब कुल बैंक लोन का 52% हो गया है। यह संकेत करता है कि बैंकों ने कृषि क्षेत्र में निवेश बढ़ाया है, लेकिन अन्य प्राथमिकता क्षेत्रों में निवेश की गति धीमी रही है।
क्या होता है NPA
जब भी बैंकों को हुए नुकसान की बात आती है तो ‘NPA’ बार-बार सुनने को मिलता है। एनपीए यानि नॉन परफॉर्मिंग एसेट (Non Performing Asset) यानी फंसा हुआ कर्ज। सीधे शब्दों में कहें तो लोन लेने के बाद जब कर्जदाता किस्त चुकाने में सक्षम नहीं होते हैं तो बैंकों की रकम फंस जाती है और बैंक इसे एनपीए घोषित कर देता है।
कर्ज कैसे बन जाता है NPA?
आम आदमी से लेकर बिजनेसमैन हर व्यक्ति घर, व्यापार या अन्य किसी कारणों से बैंक से लोन लेता है। यह स्वाभाविक है कि लोन लेने के बाद किस्तों में ब्याज के साथ बैंक लोन की राशि वसूलता है।
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के नियमों के मुताबिक अगर किसी बैंक लोन की किस्त 90 दिनों तक यानी तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती है, तो उस लोन को एनपीए घोषित कर दिया जाता है।
अगर ब्याज या मूलधन 90 दिनों या तीन महीने और उससे अधिक की अवधि के लिए ओवरड्यू रहता है, तो लोन अकाउंट को गैर-निष्पादित संपत्ति (NPA) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
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