क्या केजरीवाल कुर्सी का मोह छोड़ेंगे या दिल्ली में लगेगा राष्ट्रपति शासन?

आम आदमी पार्टी के अंदर से जो खबरें आ रही हैं, वह बताती हैं कि पार्टी के अनेक विधायक चाहते हैं कि सरकार हर हाल में चलती रहे और उनकी विधायकी कायम रहे। असल में पार्टी के कुछ समर्पित नेताओं तक यह खबरें आ रही हैं कि कुछ विधायक वाकई ऐसा चाहते हैं।

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Dr Rameshwar Dayal
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CM arvind kejariwal
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NEW DELHI: दिल्ली की आम आदमी पार्टी (AAP) और सरकार में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा है। सरकार व विधायकों (MLAs) के बीच असंतोष के सुर उभरने लगे हैं तो पार्टी नेताओं को दिल्ली में सरकार बचाने की चिंता (worried) भी होने लगी है। पार्टी का एक वर्ग चाहता है कि सरकार बचाने के लिए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा (resign) दे देना चाहिए। इसका लाभ यह होगा कि पार्टी में उभर रहे विरोध के सुरों पर लगाम लग जाएगी। दूसरा मसला यह है कि पार्टी व विधायक चाहते हैं कि दिल्ली में राष्ट्रपति शासन (President's rule) नहीं लगना चाहिए। अगर ऐसा हो गया तो दिल्ली में लंबे समय तक चुनाव ही नहीं होंगे, जिससे पार्टी के बढ़ते कदमों का झटका लग सकता है।  

मंत्री का इस्तीफा और विधायकों के सवाल

असल में भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार सीएम की गिरफ्तारी के बाद भी आप नेता व विधायक दावा कर रहे थे कि सरकार आराम से चलेगी और यह प्रसंग पार्टी की लोकप्रियता में इजाफा करेगा। लेकिन पिछले दिनों हाई कोर्ट में हुई सुनवाई में जिस तरह सीएम को प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से शराब घोटाले में दोषी माना गया, उससे पार्टी में बेचैनी बढ़ गई है। इसी का परिणाम यह हुआ कि आप सरकार के मंत्री राजकुमार आनंद ने सीएम पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाते हुए इस्तीफा दे दिया। दूसरी बात यह भी है कि हाई कोर्ट के बयानों के बाद पार्टी डिफेंस पॉजिशन में आ गई, क्योंकि कई विधायकों ने दबे सुर में ही सही, कहना शुरू कर दिया कि पार्टी की लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ थी और अब वह इसमें घिरी हुई नजर आ रही है। वे चाहते हैं कि दिल्ली में आप सरकार को हर हाल में बचाना होगा, वरना पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।  

बड़ा सवाल कि कैसे चलेगी दिल्ली सरकार 

पार्टी के वरिष्ठ नेता बार-बार कह रहे हैं कि केजरीवाल जेल से ही सरकार चलाएंगे और ऐसा करने में उन्हें कोई कानूनी समस्या नहीं है। लेकिन यह तस्वीर का एक पहलू है। यह स्पष्ट हो चुका है कि दिल्ली में कामकाज पर असर पड़ने लगा है और विधायकों के पुराने काम भी नहीं हो पा रहे हैं। आला अफसरों ने मंत्रियों के पास जाना बंद कर दिया है और यह भी बहाना करना शुरू कर दिए हैं कि लोकसभा चुनाव के चलते आचार संहिता लागू है, इसलिए कामकाज नहीं होगा। लेकिन यह स्पष्ट है कि दिल्ली के अफसरों व मंत्रियों में हमेशा झगड़ा रहता है और अब सीएम के जेल में होने से उन्हें और मौका मिल गया है। दूसरी ओर दिल्ली के अधिकतर आप विधायक नहीं चाहते कि दिल्ली सरकार पर संकट खड़ा हो जाए। इसका तत्कालीन समाधान यह है कि केजरीवाल अपने पद से इस्तीफा दे दें और उसकी जगह किसी और विधायक को मंत्री बना दिया जाए। इसका एक लाभ यह होगा कि दिल्ली के राजनिवास व केंद्र सरकार की टेढ़ी नजरों से दिल्ली सरकार बच जाएगी। 

क्या केजरीवाल इस्तीफे की सोच सकते हैं

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे केजरीवाल इस्तीफा दे सकते हैं। इसको लेकर कुछ अगर मगर हैं। हिंदू समाचार पत्र के वरिष्ठ पत्रकार रहे सुजय महदूदिया का कहना है कि अगर केजरीवाल इस्तीफा देते हैं तो देखना होगा कि इसका असर क्या होगा। क्या लोगों को लगेगा कि सीएम ने मान लिया कि वह दोषी हैं, जिसके परिणाम परेशानी वाले होंगे। लेकिन भारतीय राजनीति में यह सामान्य घटना है कि किसी केंद्रीय मंत्री, सीएम पर ऐसे आरोप लगे और वह इस्तीफा दे दे। लोगों ने दोबारा उसको सिर-आंखों पर बिठाया है। बड़ी बात यह है कि सीएम का गिरफ्तारी प्रसंग जल्दी नहीं सुलझने वाला, वह बहुत समय लेगा, इसलिए आप नेताओं को सीएम के विकल्प के रूप में जरूर विचार करना होगा। असल में पार्टी के अंदर भी इस मसले से निकलने की मांग उठने लगी है। पार्टी जानती है कि फिलहाल इसका एकमात्र उपाय क्या है। 

पार्टी के अंदर भी बढ़ रहा है दबाव 

आम आदमी पार्टी के अंदर से जो खबरें आ रही हैं, वह बताती हैं कि पार्टी के अनेक विधायक चाहते हैं कि सरकार हर हाल में चलती रहे और उनकी विधायकी कायम रहे। असल में पार्टी के कुछ समर्पित नेताओं तक यह खबरें आ रही हैं कि कुछ विधायक वाकई ऐसा चाहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि पार्टी के अंदर लगभग आधे विधायक ऐसे है जो दूसरी पार्टी से आकर चुनाव जीते हैं। नेताओं को डर है कि अगर इन्हें ‘शांत’ नहीं किया गया तो क्या पार्टी में गंभीर गड़बड़ी हो सकती है। बड़ी बात यह है कि दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल पहले बीजेपी में थे, इसके अलावा पार्टी विधायक शरद चौहान, अजेश यादव, मुकेश कुमार अहलावत, प्रीति तोमर, सोमदत्त, प्रहलाद सिंह, शोएब इकबाल, इमरान हुसैन धनवंती चंदेला, महेंद्र यादव विनय कुमार मिश्रा, प्रवीण कुमार, मदन लाल, नरेश यादव, दिनेश मोहनिया आदि विधायक दूसरी पार्टी से आए हैं। और तो और दिल्ली में आप पार्टी से लोकसभा का चुनाव लड़े रहे महाबल मिश्रा व सहीराम पहलवान भी क्रमश: कांग्रेस व बीएसपी में मजबूत पदों पर रहे हैं। मिश्रा तो कांग्रेस सांसद भी रहे हैं। 

दिल्ली में राष्ट्रपति शासन की संभावना है?

दिल्ली सरकार की मंत्री आतिशी ने आज संभावना जताई है कि केंद्र सरकार दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू करना चाहती है। इस मसले पर संविधान विशेषज्ञ, लोकसभा व दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा के अनुसार तकनीकी तौर पर सीएम केजरीवाल दिल्ली की जेल से किसी भी हाल में सरकार नहीं चला सकते हैं। आप नेता कुछ भी दावे करते रहें, लेकिन सरकारी अफसर कुछ नहीं सुनेंगे। ऐसे में संवैधानिक संकट पैदा हो सकता है, जिसके बाद दिल्ली के उपराज्यपाल के पास यह ‘शक्ति’ आ जाएगी कि वह समीक्षा कर दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश राष्ट्रपति भवन को कर दें। दिल्ली के जो हालात चल रहे हैं, उससे इस बात की पूरी संभावना है कि अगर ऐसा हुआ तो केंद्र सरकार सालों तक दिल्ली में विधानसभा चुनाव ही न कराए। शर्मा के अनुसार सरकार बचाने के लिए केजरीवाल को इस्तीफा देना ही होगा। इस मसले पर आप के एक वरिष्ठ नेता ने माना कि पार्टी नेताओं में छटपटाहट बढ़ रही है, इसे रोकना जरूरी है, वरना आने वाला वक्त भारी परेशानी पैदा करेगा। 

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