9 जुलाई आज ही के दिन 1949 में दुनिया के सबसे बड़े छात्र संगठन- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ( ABVP ) की स्थापना हुई थी। ज्ञान, शील और एकता के नारे से बने इस संगठन ने मध्य प्रदेश सहित भारत की राजनीति में नेतृत्व प्रदान करने का काम किया है। मुख्यमंत्री मोहन यादव हों या पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, केंद्र में गृह मंत्री अमित शाह हों या फिर राजनाथ सिंह, सभी खुद को एबीवीपी की ही देन बताते हैं।
एबीवीपी एक छात्र संगठन के तौर पर खुद को बीजेपी से अलग बताता है। हालांकि इसके आरएसएस से जुड़ाव और बीजेपी के नेतृत्व में एबीवीपी से जुड़े नेताओं की उपस्थिति, इस छात्र संगठन को बीजेपी से जोड़कर देखती है।
कैसे हुई एबीवीपी की स्थापना ?
9 जुलाई 1949 को ABVP की स्थापना हुई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ता बलराज मधोक ( Balraj Modhak ) की अगुवाई में यह छात्र संगठन बना। देश की आजादी के बाद भारत की प्राचीन परंपरा को बनाए रखने इस छात्र संगठन का गठन हुआ था।
ABVP ने देशभर के कॉलेजों और यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियों को जोड़ने का काम किया। आजादी के बाद राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए इस संगठन ने कई क्षेत्रों में छात्रों के जरिए काम करना शुरू किया।
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कौन थे बलराज मधोक ?
ABVP के संस्थापक बलराज मधोक का जन्म पाकिस्तान के गिलगित- बल्तिस्तान में हुआ था। वे अपने छात्र जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ( RSS ) से जुड़ गए थे। बलराज मधोक राजनीति से लेकर आंदोलनकारियों में एक बड़ा नाम हैं।
एबीवीपी के संस्थापक रहने के अलावा, वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। वे जम्मू कश्मीर प्रजा परिषद के संस्थापक और मंत्री भी थे। बलराज मधोक दो बार लोकसभा के सदस्य भी निर्वाचित हुए हैं। मधोक अपनी बात स्पष्टता से बोलने में यकीन रखते थे। 1960 के दशक में उन्होंने गौ हत्या के विरोध में भी आंदोलन चलाया था।
एबीवीपी के उद्देश्य
एबीवीपी की स्थापना कुछ खास उद्देश्यों के लिए हुई थी। संगठन आज भी उन उद्देश्यों पर चलता है। एबीवीपी के मुख्य उद्देश्य-
- अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की स्थापना का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय पुनर्निर्माण है।
- विद्यार्थी परिषद के अनुसार, छात्रशक्ति ही राष्ट्रशक्ति होती है।
- राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए छात्रों में राष्ट्रवादी चिंतन को जगाना है।
- देश की युवा छात्र शक्ति का यह प्रतिनिधि संगठन बनना।
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भारत के नेतृत्व में एबीवीपी
भारतीय जनता पार्टी ( BJP ) के ज्यादातर कद्दावर नेताओं की राजनीति की शुरुआत एबीवीपी से ही हुई है। मौजूदा मोदी कैबिनेट के 56 मंत्रियों में से 24 ABVP से हैं। पिछले साल एबीवीपी के छात्र सम्मेलन में गृह मंत्री अमित शाह ने खुद को एबीवीपी का आर्गेनिक प्रोडक्ट बताया था। इसके अलावा 2014 के बाद से भाजपा के मुख्यमंत्रियों में 28 में से 16 अपने कॉलेज के दिनों में एबीवीपी का हिस्सा रह चुके हैं। इसमें मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव और पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम भी शामिल हैं।
एबीवीपी ने मध्य प्रदेश को दिए कई कद्दावर नेता
- डॉ. मोहन यादव
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में प्रदेश के विभिन्न पदों पर रहे, राष्ट्रीय महामंत्री के पद के दायित्वों का निर्वहन किया। माधव विज्ञान महाविद्यालय में वर्ष 1982 में डॉ. यादव छात्र संघ के संयुक्त सचिव तथा 1984 में छात्रसंघ अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
- शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान भी एबीवीपी से उभरे नेता हैं। वे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े फिर एबीवीपी ज्वाइन किया। 1975 में उन्होंने अपना पहला चुनाव मॉडल हाई सेकेंडरी स्कूल के छात्र संघ अध्यक्ष का लड़ा था। इस चुनाव में चौहान की जीत भी हुई थी। इसके बाद इमरजेंसी लगने पर शिवराज सिंह चौहान को जेल भी जाना पड़ा।
- प्रहलाद पटेल
मध्य प्रदेश की राजनीति के कद्दावर नेता प्रहलाद सिंह पटेल की राजनीति की शुरुआत भी एबीवीपी से ही हुई। वे जबलपुर सरकार विज्ञान महाविद्यालय में छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए थे।
- नरेंद्र सिंह तोमर
मध्य प्रदेश विधानसभा के वर्तमान अध्यक्ष नरेंद्र सिंह की राजनीति भी छात्र संघ से शुरू हुई है। तोमर ने राजा मानसिंह कॉलेज में छात्रसंघ का चुनाव जीता था।
- वीडी शर्मा
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष और खजुराहो विधायक वीडी शर्मा भी एबीवीपी से ही उभरे हैं। 90 के दशक में वे संगठन के मंत्री बनकर जबलपुर आए। यहां एबीवीपी का बड़ा नेटवर्क तैयार किया। वे एबीवीपी में प्रदेश, क्षेत्रीय संगठन मंत्री और दो बार राष्ट्रीय महामंत्री रहे।
इसके अलावा भी दर्जनों नेताओं की लंबी सूची है, जो इस छात्र संगठन से निकले हैं।
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कैसे बना बड़ा संगठन ?
एबीवीपी आज भारत का ही नहीं, दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन है। बलराज मधोक द्वारा संगठन की स्थापना के बाद बॉम्बे यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर यशवंतराज केरकर इसके मुख्य ऑर्गनाइजर बने। 1958 में यह पदभार संभालने के बाद उन्होंने संगठन को ऊंचा मुकाम दिलाने की शुरुआत की। इस दौरान संगठन के कई उद्देश्यों में से एक छात्रों में पनप रही वामपंथी विचारधारा को रोकना और दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रचार-प्रसार था।
1974 में पटना से जय प्रकाश नारायण ने कुशासन और भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन खड़ा किया। इस आंदोलन की अगुवाई एबीवीपी के छात्रों ने ही की। इस आंदोलन ने एबीवीपी की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया।
एबीवीपी ने 90 के दशक के मंडल आंदोलन में भी बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया।
लंबे समय तक चले राम मंदिर संघर्ष में भी एबीवीपी ने हिस्सा लिया। इस दौरान मंदिर निर्माण को लेकर कैंपेन चलाए गए, जिससे इस मुद्दे की ओर युवाओं को आकर्षित किया गया।
दिल्ली यूनिवर्सिटी के चुनावों में एबीवीपी की पहली जीत साल 1983 में हुई थी। 90 के दशक में इस संगठन की देशभर में 1100 ब्रांच थी।
2014 में एनडीए की सरकार आने के बाद एबीवीपी का और विस्तार हुआ। 2017 में एबीवीपी सदस्यों की संख्या 32 लाख थी। ऐसे आज ये दुनिया का सबसे बड़ा छात्र संगठन बन गया है।
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