BHOPAL. जैन धर्म में दिगंबर मुनि परंपरा के आचार्य विद्यासागर महाराज(Acharya Vidyasagar) ने अपना शरीर त्याग दिया है। उन्होंने छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ स्थित चन्द्रगिरि तीर्थ में शनिवार (17 फरवरी) की रात करीब 2:35 पर समाधि ली। वहीं इससे पहले उन्होंने आचार्य पद का त्याग कर दिया था और तीन दिन का उपवास और मौन धारण कर लिया था। तीन दिन उपवास के बाद उन्होंने शरीर त्याग दिए। इस बीच सल्लेखना(Sallekhana) शब्द काफी चर्चा में आ रहा है।
हर धर्म की अपनी विशेषताएं रही हैं जिनके बारे में लोगों को बहुत कम जानकारी है। ऐसी ही एक विशेषता है जैन धर्म की जिसमें सल्लेखना विधि का खास महत्व है।
जैन समाज में सल्लेखना:
सल्लेखना (what is Sallekhana)जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रथा है, जो मृत्यु को स्वीकार करने और आत्मा की मुक्ति के लिए तैयारी करने का एक तरीका है। इसे संथारा भी कहा जाता है। यह एक स्वैच्छिक उपवास है जिसमें व्यक्ति धीरे-धीरे भोजन और पानी का त्याग कर देता है, जिससे मृत्यु धीरे-धीरे होती है(Sallekhana In Jainism)।
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सल्लेखना के मुख्य उद्देश्य:
आत्मा की मुक्ति: जैन धर्म में माना जाता है कि मृत्यु के बाद आत्मा कर्मों के अनुसार अगले जन्म में जाती है। सल्लेखना के माध्यम से व्यक्ति कर्मों का बंधन कम कर सकता है और मोक्ष प्राप्त कर सकता है।(importance of Sallekhana)
- आत्म-शुद्धि: सल्लेखना व्यक्ति को अपने जीवन पर विचार करने, क्षमा मांगने, और आत्म-शुद्धि करने का अवसर प्रदान करता है।
- शांतिपूर्ण मृत्यु: सल्लेखना व्यक्ति को मृत्यु को डर के बिना स्वीकार करने और शांतिपूर्ण तरीके से मरने में मदद करता है।
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सल्लेखना कब और कैसे की जाती है:
- जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी मृत्यु निकट है, तब वह सल्लेखना ग्रहण कर सकता है।
- सल्लेखना ग्रहण करने से पहले व्यक्ति को अपने परिवार और गुरु से अनुमति लेनी होती है।
- सल्लेखना एक शांत और पवित्र स्थान पर की जाती है।
- सल्लेखना ग्रहण करने वाले व्यक्ति को धार्मिक ग्रंथों का पाठ करने, ध्यान करने और प्रार्थना करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
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सल्लेखना के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें:
- सल्लेखना आत्महत्या नहीं है। आत्महत्या में व्यक्ति क्रोध, भय, या निराशा के कारण मृत्यु को स्वीकार करता है, जबकि सल्लेखना में व्यक्ति शांति और आत्म-शुद्धि के लिए मृत्यु को स्वीकार करता है।
- सल्लेखना केवल वयस्क और स्वस्थ व्यक्ति ही ग्रहण कर सकते हैं।
- सल्लेखना जैन धर्म में एक महत्वपूर्ण प्रथा है जो व्यक्ति को मृत्यु को स्वीकार करने और आत्मा की मुक्ति के लिए तैयारी करने में मदद करती है।