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MUMBAI. भारत की महिला टीम ने इतिहास रच दिया है। टीम इंडिया ने महिला वनडे विश्व कप 2025 के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रन से हराया। पहले बल्लेबाजी करते हुए भारत ने 50 ओवर में 298 रन बनाए। दक्षिण अफ्रीका 246 रन पर सिमट गई। दीप्ति शर्मा ने चार विकेट लेकर मैच पलट दिया।
दक्षिण अफ्रीका की कप्तान एल वोल्वार्ट की 101 रन की पारी बेकार गई। यह भारत का पहला महिला वनडे विश्व कप खिताब है। महिला वनडे विश्व कप 52 साल पुराना है। इस जीत में भारतीय महिला टीम के कोच अमोल मजूमदार भूमिका भी अहम रही। आइए जानते है कि भारतीय महिला टीम के कोच अमोल मजूमदार का किक्रेट करियर कैसा रहा....
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अमोल मजूमदार ने कभी नहीं पहली नीली जर्सी
अमोल मजूमदार की कहानी सिर्फ एक कोच की नहीं है। वह खिलाड़ी हैं, जिन्होंने भारतीय टीम की जर्सी नहीं पहनी। उन्होंने वह किया जो भारत के लिए खेलने वाले नहीं कर पाए। उन्होंने खुद मैदान पर मौका नहीं पाया, लेकिन दूसरों को मौका दिलाया। इसी से भारत महिला क्रिकेट विश्व कप फाइनल में पहुंचा। भारत की महिला क्रिकेट टीम 2005 और 2017 के बाद तीसरी बार फाइनल में पहुंची और चैंपियन बनी।
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अमोल को नहीं मिला था बल्लेबाजी का मौका
मजूमदार का क्रिकेट जीवन इंतजार से शुरू हुआ। 1988 में वह 13 साल के थे। स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट हैरिस शील्ड के दौरान वह नेट्स में थे। उसी दिन सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की साझेदारी की। दिन खत्म हुआ और पारी घोषित हो गई। अमोल को बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला। यह घटना उनके लाइफ का टर्निंग पॉइंट बन गया। बैटिंग की बारी हमेशा उनसे कुछ दूर रही।
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बेहतर रिकॉर्ड फिर भी मौका नहीं
1993 में उन्होंने बॉम्बे (अब मुंबई) के लिए डेब्यू किया था। पहले ही मैच में 260 रनों की ऐतिहासिक पारी खेली थी। यह तब किसी भी खिलाड़ी का डेब्यू पारी में सबसे बड़ा स्कोर था। लोग कहने लगे, "यह अगला सचिन तेंदुलकर बनेगा।" लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। दो दशकों के करियर में उन्होंने 11,000 से ज्यादा रन बनाए। उन्होंने 30 शतक जड़े, लेकिन कभी भारत के लिए नहीं खेले। वह गोल्डेन एरा के प्लेयर थे। उस समय तेंदुलकर, द्रविड़, गांगुली, लक्ष्मण जैसे सितारे थे। मजूमदार उनके साए में खो गए।
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पिता की बात ने कैसे बदली मजूमदार की किस्मत
मजूमदार 2002 तक हार मान चुके थे। चयनकर्ता उन्हें बार-बार नजरअंदाज करते रहे। वह खुद कहते हैं कि वे एक खोल में चले गए थे। उनके पिता अनिल ने उनसे कहा, "खेल छोड़ना नहीं, तेरे अंदर क्रिकेट बाकी है।
इस वाक्य ने उनकी जिंदगी बदल दी। इसके बाद मजूमदार ने वापसी की और 2006 में मुंबई को रणजी ट्रॉफी जिताई। इस दौरान उन्होंने रोहित शर्मा को फर्स्ट-क्लास क्रिकेट में मौका दिया। दो दशकों में 171 मैच, 11,167 रन और 30 शतक के बावजूद उन्होंने भारत के लिए एक भी मैच नहीं खेला।
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कई टीमों के कोच रहे अमोल
सचिन तेंदुलकर ने 2014 में अमोल के संन्यास पर कहा, "मजूमदार सच्चे खेल सेवक हैं।" अमोल के मन में खालीपन रह गया। वह कहते हैं कि भारत के लिए नहीं खेला, यही कमी रह गई। 2014 में क्रिकेट छोड़ने के बाद उन्होंने कोचिंग शुरू की। उन्होंने नीदरलैंड, दक्षिण अफ्रीका और राजस्थान रॉयल्स में काम किया। उनकी पहचान एक कोच की बनी जो कम बोलता है, पर गहराई से समझता है। अक्टूबर 2023 में उन्हें भारतीय महिला क्रिकेट टीम का मुख्य कोच बनाया गया। शुरुआत में कई लोगों ने सवाल उठाए थे। दो साल बाद, वही लोग उन्हें सलाम कर रहे हैं।
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अमोल ने सचमुच क्रिकेट को बदल दिया!
भारतीय शेरनियों को चैंपियन बनाकर अमोल मजूमदार की कहानी पूरी हुई। 13 साल की उम्र में बल्लेबाजी का मौका न मिलने वाला बच्चा अब कोच बनकर चैंपियन बना रहा है। जो इंतजार उनका दर्द था, वही अब उनकी पहचान बन गया। उन्होंने साबित किया कि क्रिकेट सिर्फ खेलने वालों का खेल नहीं है। यह उन लोगों का भी खेल है जो दिल से खेलते हैं। कभी खेल उन खिलाड़ियों को याद नहीं रखता, जिन्होंने खेला। वह उन्हें याद रखता है जिन्होंने उसे बदला। अमोल ने सचमुच क्रिकेट को बदल दिया। बैटिंग की बारी न मिलने वाला कोच अब टीम को जीत दिला रहा है।
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