मध्य प्रदेश के विक्ट्री फॉर्मूले पर महाराष्ट्र में काम, कैलाश-प्रहलाद समेत 7 नेताओं को भी उतारा

बीजेपी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव की तैयारियां तेज कीं। मध्‍य प्रदेश मॉडल को अपनाते हुए लाड़ली बहना योजना और बूथ मैनेजमेंट पर फोकस किया जा रहा है।

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Ravi Kant Dixit
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महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव
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भोपाल. तुम्ही काय म्हणता... भाजप महाराष्ट्रात जिंकू शकेल का? इस मराठी वाक्य का हिन्दी अर्थ है कि आप क्या कहते हैं...महाराष्ट्र में क्या जीत पाएगी बीजेपी? 

दरअसल, बीजेपी ने इस साल महाराष्ट्र में होने वाले विधानसभा चुनाव ( Maharashtra Assembly Elections ) की तैयारियां तेज कर दी हैं। पार्टी मध्यप्रदेश का फुल प्रूफ विक्ट्री फॉर्मूला ( Madhya Pradesh Model ) महाराष्ट्र में अपना रही है। चाहे बात लाड़ली बहना योजना ( Ladli Bahana Yojana ) की हो या बूथ का कॉन्सेप्ट... वही रणनीति महाराष्ट्र में अपनाई जा रही है, जिससे मध्यप्रदेश में पार्टी ने पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल की है। रणनीति के तहत पार्टी ( BJP Strategy ) ने संगठन कौशल में माहिर मध्यप्रदेश के नेताओं को महाराष्ट्र की सीटों का जिम्मा दिया है। इन्होंने वहां अपना काम भी शुरू कर दिया है।

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लाड़ली बहना योजना

मध्यप्रदेश में विधानसभा और लोकसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत के पीछे सबसे बड़ा कदम लाड़ली बहना योजना को माना जाता है। इसी रणनीति के तहत महाराष्ट्र में महायुति गठबंधन ने वहां एक कदम आगे बढ़ते हुए महिलाओं को 1 हजार 500 रुपए प्रतिमाह देने का फैसला किया है। 

एकनाथ शिंदे की अगुआई वाली गठबंधन सरकार (महायुति) ने 80 लाख महिलाओं के बैंक खातों में दो महीने (जुलाई-अगस्त) के 1500-1500 रुपए ट्रांसफर भी कर दिए हैं। अब 31 अगस्त तक आवेदन करने वाली महिलाओं के खाते में राशि आएगी। 

महायुति और बीजेपी दोनों इस बात से आश्वस्त हैं कि यह योजना गेमचेंजर साबित होगी। वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक दयानंद नेने के एक सर्वे में महाराष्ट्र के लोगों ने भी माना है कि लाड़ली बहना योजना 40 फीसदी तक कारगर सिद्ध हो सकती है। यह शुरुआती रुझान हैं, चुनाव की तारीख आते-आते आंकड़ा बढ़ने की पूरी संभावना जताई जा रही है।

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हर बूथ तक मैनेजमेंट 

बीजेपी का दूसरा कदम बूथ मैनेजमेंट ( Booth Management ) है। महाराष्ट्र के हर विधानसभा क्षेत्र में कोर कमेटियों की सक्रियता पर ध्यान दिया जा रहा है। पन्ना प्रभारी, बूथ कमेटी और शक्ति केंद्र पर काम जारी है। बीजेपी के प्रवासी नेता भावनात्मक जुड़ाव बढ़ाने के लिए स्थानीय कार्यक्रमों में शामिल हो रहे हैं। ये कॉन्सेप्ट मध्यप्रदेश में हिट हो चुका है। 

वहीं, प्रवासी नेता महाराष्ट्र की दिग्गज हस्तियों से मुलाकात कर रहे हैं। बीजेपी की यह भी कोशिश है कि क्षेत्रीय क्षत्रपों को तवज्जो देकर राज्य के सभी इलाकों में अपनी पकड़ मजबूत की जाए। आपको बता दें कि मध्यप्रदेश में भी ऐसा ही किया गया था। यहां शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय, प्रहलाद सिंह पटेल जैसे दिग्गज नेताओं को अपने इलाके की सीटें जिताने की जिम्मेदारी दी गई थी और बीजेपी इसमें कामयाब रही थी। 

भूपेंद्र यादव, अश्विनी वैष्णव की जोड़ी वहां भी उतारी 

देश के कुछ ऐसे नेताओं को भी जिम्मेदारियां दी गई हैं, जिनका महाराष्ट्र से भावनात्मक जुड़ाव हो। बीजेपी के राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश ने महाराष्ट्र में डेरा डाल लिया है। महाराष्ट्र के लिए केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को प्रभारी और केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव को सह प्रभारी बनाया गया है। इन्हीं दोनों नेताओं को मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव की कमान दी गई थी। भूपेंद्र यादव चुनावी रणनीति में माहिर माने जाते हैं। वहीं, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कोटे से सुहास भगत को महाराष्ट्र भेजा गया है। वे अभी पिछले दिनों तक मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में सक्रिय थे। उन्हें अब महाराष्ट्र का सह सेवा प्रमुख बनाया गया है। सुहाष भगत पहले मध्यप्रदेश बीजेपी के संगठन महामंत्री रह चुके हैं। वहीं, पहले संघ कोटे में रहे अबके मध्यप्रदेश के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा महाराष्ट्र में कार्यकर्ताओं से फीडबैक ले रहे हैं। मंथन का दौर चल रहा है।  इसी तरह मध्यप्रदेश में काम कर चुके अरविंद मेनन भी महाराष्ट्र में अहम भूमिका में हैं।

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इन दिग्गजों ने शुरू किया काम 

बीजेपी ने शुरुआत दौर में मध्यप्रदेश के पांच नेताओं को महाराष्ट्र के जिलों का जिम्मा दिया है। आगे ऐसे नेताओं की संख्या और बढ़ेगी। इनमें मंत्री कैलाश विजयवर्गीय, मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल, मंत्री विश्वास सारंग, पूर्व मंत्री डॉ.नरोत्तम मिश्रा और युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.निशांत खरे शामिल हैं। चार नेताओं को महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र की 62 सीटों की जिम्मेदारी दी गई है। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह तो यही है कि विदर्भ मध्यप्रदेश से सटा हुआ है। मध्यप्रदेश के 9 जिलों की सीमाएं महाराष्ट्र से मिलती हैं। 

मध्यप्रदेश के किस नेता को क्या काम सौंपा

  1. मंत्री कैलाश विजयवर्गीय: नागपुर सिटी और नागपुर ग्रामीण जिले की जिम्मेदारी दी गई है। इन दोनों जिलों के अंतर्गत महाराष्ट्र की 12 विधानसभा सीटें आती हैं। विजयवर्गीय ( Kailash Vijayvargiya ) ने काम शुरू कर दिया है। वे अब तक नागपुर में कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। 
  2. मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल: वर्धा और अमरावती जिले की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसमें वर्धा में चार और अमरावती जिले में आठ विधानसभा सीटें आती हैं। मंत्री पटेल वहां स्थानीय कार्यक्रमों में पहुंचे हैं। रणनीतिक तौर पर भी मंथन का दौर चल रहा है। 
  3. मंत्री विश्वास सारंग: अकोला और बुलढाणा जिले काम का सौंपा गया है। अकोला जिले में पांच और बुलढाणा जिले 7 विधानसभा सीटें आती हैं। मंत्री सारंग रणनीति बनाकर मैदान में उतर गए हैं। पिछले दिनों उन्होंने नागपुर में प्रवासी बैठक में भाग लिया था। 
  4. पूर्व मंत्री नरोत्तम मिश्रा: भंडारा और गोंदिया जिला दिया गया है। पूर्व मंत्री मिश्रा ने वहां अपना काम शुरू कर दिया है। वे प्रवासी कार्यकर्ताओं की बैठक में शामिल हुए थे। वे अर्जुनी मोरगांव विधानसभा क्षेत्र में कई दौर का मंथन कर चुके हैं। 
  5. डॉ.निशांत खरे: युवा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ.खरे को महाराष्ट्र की आदिवासी बहुल 25 सीटों का काम सौंपा गया है। उन्होंने मोर्चा संभाल लिया है। पिछले दिनों मुंबई में शिव प्रकाश और भूपेंद्र यादव की मौजूदगी में हुई बैठक में वे शामिल हुए थे।

पांच साल में पॉलिटिकल प्रयोग खूब हुए 

चलिए अब आगे बढ़ते हैं। महाराष्ट्र को राजनीतिक नवाचारों की धरा कहा जाए तो यह भी अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्योंकि महाराष्ट्र देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पांच वर्षों में सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रयोग हुए हैं। यहीं बीजेपी, शिवसेना का गठबंधन टूटा। फिर अचानक सुबह 5 बजे शपथ हुई। फिर 24 घंटे में सरकार गिर गई। कुछ दिन में एनसीपी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की सरकार बनी। दो साल बाद शिवसेना में सबसे बड़ी टूट हुई और नई शिवसेना बनी, जिसे धनुष बाण का चुनाव चिह्न मिल गया। शरद पवार की एनसीपी भी टूटी और उनके भतीजे अजित पवार को चाचा का चुनाव चिह्न घड़ी मिल गया।

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सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती 

महाराष्ट्र में बीजेपी के महायुति गठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीटों के बंटवारे की है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में अब तक बीजेपी और शिवसेना ठाकरे आधी-आधी या कभी-कभी 171 और 121 सीट पर लड़ते रहे हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 100 फीसदी का नारा दिया और ठाकरे की शिवसेना को कमजोर किया। उसके बाद उनके रास्ते अलग हो गए। अब बड़ा प्रश्न चिह्न यही है कि महायुति में बंटवारा कैसे हो? बीजेपी के पास अभी खुद के 103 और निर्दलीय 10 मिलाकर 113 विधायक हैं। बीजेपी कम से कम 180 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है। ऐसे में उसके दो सहयोगी शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार के हिस्से में कुल बची 100 सीटों में से अधिकतम 50–50 आ सकती हैं, लेकिन शिंदे के पास खुद के 54 विधायक हैं तो अजित पवार के पास 44 विधायक। तीनों पार्टियां उन जगहों को भी चाहती हैं, जहां उनके उम्मीदवार नंबर दो पर थे। अब इसका तोड़ निकालना बीजेपी के लिए कठिन होगा। 

स्थानीय गणित क्या कहता है...

महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र, उत्तर महाराष्ट्र यानी खानदेश और मुंबई सहित कोंकण किनार पटटी पांच प्रमुख क्षेत्र हैं। इन सब इलाकों में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को निराशा हाथ लगी, जबकि विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र को बीजेपी का गढ माना जाता है। इसके साथ महाराष्ट्र में 13 बड़े शहर हैं और बीजेपी की इन पर पकड़ रही है, लेकिन इन सबको अब साधना होगा।

 

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