दिल्ली विधानसभा चुनावों में बीजेपी की संभावित जीत ने मुख्यमंत्री पद के लिए प्रत्याशियों और संभावनाओं पर बहस छेड़ दी है। पार्टी में कई नेता सीएम बनने के सपने देख रहे हैं, लेकिन अंतिम निर्णय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के हाथ में होता है। ऐसे में दिल्ली में कौन बनेगा मुख्यमंत्री, यह सवाल हर किसी की जुबान पर है। तीन प्रमुख नाम- वीरेंद्र सचदेवा, मनोज तिवारी और प्रवेश वर्मा आगे चल रहे हैं। आइए जानते हैं, किस तरह से तीन फॉर्मूलों पर आधारित समीकरण इस चुनाव में काम करेंगे।
1. तीन प्रमुख नाम: कौन बनेगा सीएम?
दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष वीरेंद्र सचदेवा, सांसद मनोज तिवारी और नई दिल्ली से विधायक प्रवेश वर्मा को मुख्यमंत्री पद के लिए मुख्य दावेदार माना जा रहा है। हालांकि पार्टी के भीतर किसी भी संवैधानिक पद पर फैसला करने का अधिकार केवल शीर्ष नेतृत्व के पास होता है। पिछले चुनावों में अन्य राज्यों में भी इसी तरह के अटकलों के बीच अंतिम फैसले लिए गए थे।
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2. डिप्टी सीएम का समीकरण
बीजेपी की हालिया रणनीति के अनुसार, भले ही मुख्यमंत्री किसी एक नेता को बनाया जाए, लेकिन दो डिप्टी सीएम नियुक्त करने की परंपरा जारी रह सकती है। मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी यही फॉर्मूला अपनाया गया था। दिल्ली में यह संभावना जताई जा रही है कि मनोज तिवारी, वीरेंद्र सचदेवा या प्रवेश वर्मा में से दो को डिप्टी सीएम पद दिया जा सकता है।
3. महिला मुख्यमंत्री का कार्ड
बीजेपी के पास एक बड़ा विकल्प महिला सीएम बनाने का है। पार्टी के पास स्मृति ईरानी, मीनाक्षी लेखी और बांसुरी स्वराज जैसी प्रभावशाली महिला नेता हैं। इनकी लोकप्रियता और कार्यक्षमता के कारण महिला मुख्यमंत्री बनने से बीजेपी को कई राजनीतिक लाभ हो सकते हैं। खासकर आम आदमी पार्टी के महिला वोटर्स को बीजेपी अपने पक्ष में कर सकती है।
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4. जाट-गुर्जर-पंजाबी समीकरण
दिल्ली की राजनीति में जाट, गुर्जर, पंजाबी और पूर्वांचली समुदाय का बड़ा प्रभाव है। यदि किसी एक समुदाय के नेता को मुख्यमंत्री बनाया जाता है, तो दूसरे समुदायों में नाराजगी बढ़ सकती है। इसीलिए संभावना है कि बीजेपी एक ऐसा नेता चुन सकती है जो इन सभी समुदायों से इतर हो। महाराष्ट्र और राजस्थान में भी इस प्रकार का समीकरण सफल रहा है।
5. बीजेपी की अंतिम रणनीति
बीजेपी में संवैधानिक पदों के लिए फैसले गुप्त रणनीतियों पर आधारित होते हैं। पार्टी आमतौर पर अटकलों को सार्वजनिक नहीं करती, जिससे आखिरी क्षण तक असमंजस बना रहता है। दिल्ली में भी यही पैटर्न देखने को मिल सकता है। अंतिम फैसला पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा लिया जाएगा।