भारत में राजनीतिक और न्यायिक संस्थाओं के बीच लगातार बढ़ते विवादों ने समाज में एक नई चर्चा का जन्म दिया है। हाल ही में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रपति को विधेयकों पर फैसला लेने के लिए समय सीमा तय करने के फैसले पर गहरी आपत्ति जताई है। सांसद ने इसे संसद की भूमिका में दखलअंदाजी करार दिया और सुप्रीम कोर्ट को तीखा जवाब दिया। उनका कहना था कि अगर सुप्रीम कोर्ट कानून बनाने लगे, तो संसद को बंद कर देना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय सीमा तय करने का विवाद
सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास विधेयकों पर वीटो पावर नहीं है और राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह आदेश विशेष रूप से तमिलनाडु के गवर्नर और राज्य सरकार के बीच विवाद से उत्पन्न हुआ था। इस फैसले के बाद उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस पर आपत्ति जताई।
ये खबर भी पढ़ें...
छत्तीसगढ़ में 41 IAS अफसरों का तबादला, बदले गए 11 कलेक्टर
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाहियों पर निशिकांत ने की आलोचना
निशिकांत दुबे ने इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाहियों को लेकर कड़ी आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, तो सुप्रीम कोर्ट की ओर से राष्ट्रपति को निर्देश देना संविधानिक रूप से गलत है। उनका मानना था कि सुप्रीम कोर्ट अपनी सीमाओं से बाहर जा रहा है और अगर अदालत हर मामले में हस्तक्षेप करती है, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
दुबे ने कहा कि इस फैसले से सरकार और न्यायपालिका के बीच शक्ति संतुलन बिगड़ रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा करने के लिए मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना जिम्मेदार हैं। उनके अनुसार, यह स्थिति संविधान की अवहेलना का परिणाम है।
ये खबर भी पढ़ें...
दिग्विजय सिंह बोले दंगा रोकने के लिए कट्टरपंथी को दूर रखो, जैसे बजरंग दल-सिमी पर मैंने किया
धार्मिक विवादों पर सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल
निशिकांत दुबे ने देश में चल रहे धार्मिक विवादों को लेकर भी सुप्रीम कोर्ट पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब राम मंदिर या कृष्ण जन्मभूमि जैसे विवादों का मामला आता है, तो सुप्रीम कोर्ट कागजात मांगता है। वे इसे धार्मिक संघर्षों को बढ़ावा देने के रूप में देख रहे थे। उनका कहना था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने देश में धार्मिक युद्ध भड़काने का काम किया है।
ये खबर भी पढ़ें...
मासूम की हत्या : सिर में कील ठोककर मां को थमा दी लाश, बोली- लो, तुम्हारा बच्चा मर गया
धारा 377 और आईटी एक्ट में फैसले पर टिप्पणी
निशिकांत दुबे ने धारा 377 और आईटी एक्ट से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के फैसलों पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर किया, तो यह फैसले देश की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपराओं के खिलाफ थे। उन्होंने आईटी एक्ट की धारा 66A को खत्म करने के फैसले पर भी विरोध किया। उनके अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के इस प्रकार के फैसले देश की धार्मिक और सांस्कृतिक धारा के खिलाफ जा रहे हैं।
ये खबर भी पढ़ें...
निकाह में धोखा : तय हुआ था बेटी से, घूंघट उठते ही सामने आई 45 साल की विधवा सास
संसद बनाती है कानून, सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या का अधिकार
सांसद निशिकांत दुबे ने भारतीय संविधान के आर्टिकल 368 और आर्टिकल 141 का हवाला देते हुए यह कहा कि संविधान के अनुसार संसद को कानून बनाने का अधिकार है, जबकि सुप्रीम कोर्ट को केवल उन कानूनों की व्याख्या करने का अधिकार है। उनके मुताबिक, अगर सुप्रीम कोर्ट कानून बनाने लगे, तो यह संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ होगा और इससे लोकतंत्र को खतरा हो सकता है।
अदालत का हस्तक्षेप करना लोकतंत्र के लिए हानिकारक
निशिकांत दुबे का मुख्य उद्देश्य यह था कि न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्ति का संतुलन बना रहे। उनका कहना था कि अगर अदालत हर मामले में हस्तक्षेप करेगी, तो यह लोकतंत्र के लिए हानिकारक होगा। वे सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को असंवैधानिक मानते हैं और उनका मानना है कि अदालत को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे | parliament | देश दुनिया न्यूज