सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ का कार्यकाल 10 नवंबर को समाप्त होने जा रहा है, लेकिन उनके कार्यकाल के अंतिम दिनों में कुछ फैसले और घटनाएं विवादों में घिर गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के कई वकील और हाई कोर्ट के कुछ जज इन पर सवाल उठा रहे हैं। संभवत: यह पहली बार है कि किसी के CJI रहते हुए मीडिया में सवाल उठाए जा रहे हों। बौद्धिक वर्ग खासतौर पर अंग्रेजी पसंद करने वालों के बीच चर्चित पत्रिका Caravan ने तो CJI के कार्यकाल पर 44 पेज की कवर स्टोरी ही छाप दी। सीजेआई चंद्रचूड़ के कार्यकलापों पर सवाल उठाती इस रिपोर्ट में क्या खास है, आइए जानते हैं…
पीएम मोदी के साथ पूजन करने पर उठाए सवाल
Caravan magazine के पत्रकार सौरभदास की इस लंबी चौड़ी रिपोर्ट की बौद्धिक जगत में खूब चर्चा हो रही है। दरअसल हाल ही में चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के घर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक धार्मिक कार्यक्रम में देखे गए, जहां उन्होंने गणपति की आरती की। अब यह सवाल उठ रहे हैं कि क्या इस घटना से न्यायपालिका की निष्पक्षता पर कोई असर पड़ेगा?
आठ साल पुराने बयान को भी उठाया
पत्रिका में कहा गया है कि आठ साल पहले, जब डीवाई चंद्रचूड़ इलाहाबाद हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश थे, उन्होंने स्पष्ट किया था कि न्यायपालिका को स्वतंत्र और निष्पक्ष रहना चाहिए। इसलिए राजनेताओं को न्यायालय के कार्यक्रमों में न्यौता नहीं दिया जाएगा। Caravan के अनुसार अब यह पुराना रुख और वर्तमान स्थिति लोगों के बीच चर्चा का विषय बन गई है। वायरल तस्वीरों ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को लेकर सवाल उठाए हैं। लोग जानना चाहते हैं कि क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वेच्छा से वहां पहुंचे थे, या चीफ जस्टिस ने उन्हें आमंत्रित किया था।
इस लेख के लेखक सौरभ दास के अनुसार इस मुद्दे पर वरिष्ठ वकीलों का मानना है कि चीफ जस्टिस को अपने पद की गरिमा बनाए रखते हुए राजनीतिक हस्तक्षेप से दूर रहना चाहिए था, ताकि न्यायपालिका की निष्पक्षता पर कोई आंच न आए। वहीं, डीवाई चंद्रचूड़ ने इस विवाद के बीच बयान दिया कि किसी सरकारी व्यक्ति से मुलाकात का यह मतलब नहीं कि कोई समझौता हुआ है। इस घटनाक्रम पर विशेषज्ञों का कहना है कि इससे जनता में न्यायपालिका और सरकार के बीच की दूरी घटने का संदेश जा सकता है, जिससे लोगों का भरोसा कम हो सकता है।
कैरवान की इस रिपोर्ट के अनुसार, जब चंद्रचूड़ महाराष्ट्र से जुड़े एक संवेदनशील केस की सुनवाई कर रहे थे, तब प्रधानमंत्री से उनकी मुलाकात ने इस विवाद को और बढ़ा दिया है। विपक्षी नेता और वकील इसे चिंताजनक संदेश मानते हैं।
रिपोर्ट कहती है कि अब यह सवाल सामने है कि क्या ये घटनाएं न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर असर डालेंगी, और क्या न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच की दूरी को बनाए रखने के सिद्धांत अब बदल रहे हैं? इन सवालों के जवाब शायद समय के साथ मिलेंगे, लेकिन यह निश्चित है कि चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ का यह अंतिम कार्यकाल न्यायपालिका में एक बड़ी बहस का कारण बन चुका है।
बड़ा सवाल: क्या मोदी विरोधी हैं सक्रिय
इस मामले में जिस तरह से प्रतिक्रियाएं आ रही हैं, उनमें घोषित रूप से मोदी विरोधी बुद्धिजीवियों का तबका शामिल है। पत्रकार सौरभ दास के लेख की तारीफ भी इस वर्ग के पत्रकार, वकील और एक्टीविस्ट ही कर रहे हैं। पत्रकार रवीश कुमार ने तो इस रिपोर्ट के समर्थन में लंबी- चौड़ी पोस्ट लिखी है।
“पत्रकारिता के हर छात्र को सौरव का लिखा हुआ पढ़ना चाहिए। सौरव की रिपोर्टिंग ने हिन्दी की बौद्धिक दरिद्रता के कारणों से भी पर्दा हटा दिया है।बहुत से चालाक लोग तरह-तरह के वैचारिक उपनिवेशिकरण के वशीकरणों पर सारा दोष डाल कर पोथी-पतरा बाँचना शुरू कर देते हैं। हिंदी के बड़े बड़े पत्रकार थके पुराने नेताओं का इंटरव्यू कर पत्रकारिता में होने का बहाना कर रहे हैं, सामने होने वाली चीजों को लिखने के बजाए जेपी- लोहिया, गांधी-अंबेडकर करने में लगे हैं। धर्म की व्याख्या कर रहे हैं। इनके नाम पर सौदा करने लगे हैं।”
-रवीश कुमार
https://x.com/ravishndtv/status/1852556293925466325
कौन हैं पत्रकार सौरभदास
इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिज्म करने वाले सौरभदास Caravan magazine के लिए रिपोर्टिंग करते हैं। CJI पर लिखी इस रिपोर्ट के बारे में वे कहते हैं-
'प्रदर्शनकारी न्याय : डीवाई चंद्रचूड़ के समीकरण'
परिष्कृत आचरण वाले एक विद्वान व्यक्ति पर अपेक्षाओं का बोझ बहुत अधिक था, लेकिन चंद्रचूड़ का कार्यकाल "दो कदम आगे, चार कदम पीछे, छह कदम किनारे" रहा है।
https://x.com/SauravDassss/status/1852218301440483356
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