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चाय हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा है। सुबह उठकर चाय पीना हमारे लिए खास होता है। चाय हमें ताजगी देती है और थकान दूर करती है। जब हम दोस्तों या परिवार के साथ मिलते हैं, तो चाय के साथ बातें करना मजेदार होता है। ये एक ऐसा पेय है जो किसी धर्म, जाति या संस्कृति से बंधा नहीं है।
बिना चाय के दिन पूरा नहीं लगता। इसलिए चाय हमारे जीवन का एक जरूरी और प्यारा हिस्सा है। सुबह की पहली किरण के साथ चाय की प्याली हमें ताजगी और ऊर्जा देती है। चाहे खेत हों या शहर, गांव हों या महानगर, चाय सभी जगह लोगों को जोड़ने का जरिया है। यह सिर्फ एक पेय नहीं, बल्कि बातचीत, दोस्ती और मेलजोल का माध्यम भी है।
चाय की खुशबू और स्वाद हमारे दिन को खास बनाते हैं। इसलिए चाय का महत्व हर भारतीय के दिल में गहरा और यूनिवर्सल है। अलग-अलग तरह की चाय जैसे मसाला चाय, इलायची चाय या ईरानी चाय हर रोज की जिंदगी को खास बनाती हैं। आइए आज 21 मई अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस (International Tea Day) पर हम चाय से जुड़ी कुछ रोचक बातों को जानते हैं।
चाय का वैश्विक इतिहास
चाय का जन्म चीन में हुआ माना जाता है, जहां हजारों सालों से इसे पिया जाता रहा है। लेकिन भारत में चाय की शुरुआत 19वीं सदी के दौरान ब्रिटिश शासन के समय हुई, जब ब्रिटिश अधिकारियों ने इसे व्यावसायिक खेती के लिए अपनाया।
पहले ब्रिटिश सरकार चीन से चाय इम्पोर्ट पर निर्भर थी, जो महंगा और कठिन था। इसलिए उन्होंने भारत में चाय की खेती बढ़ाने का फैसला किया, खासकर असम क्षेत्र में। असम की जलवायु और मिट्टी चाय की खेती के लिए बहुत उपयुक्त थी।
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असम में चाय की खेती की शुरुआत
1823 में रॉबर्ट ब्रूस नामक ब्रिटिश अधिकारी ने असम में चाय के पौधों की खोज की और स्थानीय लोगों से इसकी खेती के बारे में जाना। बाद में 1835 में ब्रिटिश सरकार ने बड़े पैमाने पर असम में चाय बागान लगाने शुरू किए।
इसके बाद दार्जिलिंग और नीलगिरी जैसे क्षेत्रों में भी चाय उत्पादन विकसित हुआ।दूसरे क्षेत्र जैसे दार्जिलिंग और नीलगिरी में भी चाय की खेती विकसित हुई।
दार्जिलिंग की चाय को दुनिया में उच्च गुणवत्ता वाली माना जाता है। भारत ने धीरे-धीरे विश्व के प्रमुख चाय प्रोडक्टिव देशों में अपनी पहचान बनाई।
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भारत में चाय की पॉपुलैरिटी
चाय भारत की संस्कृति और जीवनशैली का भी अभिन्न हिस्सा बन गई। भारतीयों ने इसे अपने स्वाद मुताबिक मसाला चाय, इलायची चाय, अदरक वाली चाय जैसे रूपों में अपनाया।
चाय न केवल ऊर्जा देती है, बल्कि लोगों को एक साथ लाने का जरिया भी बनी। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और कंस्यूमर देश है। देश की अर्थव्यवस्था में चाय का योगदान भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि लाखों लोगों को इससे रोजगार मिलता है।
इसलिए चाय का इतिहास भारत में सिर्फ एक पेय का नहीं, बल्कि आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व का है। यह सुबह की शुरुआत से लेकर शाम तक, हर वक्त लोगों को जोड़े रखने का माध्यम बन गई।
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करोड़ों का है देश में चाय का व्यापार
हर साल 21 मई को दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय चाय दिवस मनाया जाता है। भारत में चाय का खास महत्व है और यह देश की सुबहों की शुरुआत का अहम हिस्सा है।
भारत में रोजाना लगभग 13 करोड़ चाय के प्याले बिकते हैं। अगर एक प्याली की औसत कीमत 10 रुपए मानी जाए, तो देश में रोजाना चाय के कारोबार की कुल राशि लगभग 130 करोड़ रुपए होती है।
चाय की दुकानें छोटे-छोटे स्टॉल से लेकर बड़ी फ्रेंचाइजी तक फैली हुई हैं, जो हर दिन लाखों लोगों को चाय उपलब्ध कराती हैं। आमतौर पर घरों में दूध, चाय पत्ती और इलायची से चाय बनाई जाती है, लेकिन दुकान पर इलायची, लोंग, दालचीनी, नींबू, मसाला और बिना दूध वाली चाय भी खूब पसंद की जाती है।
चाय की कीमत
चाय की कीमत 7 से 15 रुपए के बीच होती है। 7 रुपए वाली कट चाय होती है और 15 रुपए में फुल चाय की प्याली मिलती है। चाय बनाने का खर्च लगभग 8 से 10 रुपए आता है, जिससे एक प्याली चाय पर दुकानदार को करीब 5 रुपए की बचत होती है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से खाली पेट चाय पीना नुकसानदेह हो सकता है क्योंकि इससे एसिडिटी, गैस, जलन और कब्ज जैसी समस्याएं हो सकती हैं। इसलिए चाय पीने से पहले हल्का गर्म पानी या फल खाना बेहतर होता है।
कुछ लोग चाय को बेहतर स्वाद और खुशबू के लिए 10-15 मिनट तक उबालते हैं, जिससे टैनिन और कैफीन की मात्रा बढ़ जाती है, जो पाचन तंत्र के लिए हानिकारक हो सकती है। इसलिए चाय को हल्की आंच पर और ज्यादा गाढ़ा न बनाना चाहिए।
तो चाय हमारी जिंदगी का एक अनमोल हिस्सा है, जो न केवल ताजगी देती है बल्कि लोगों को जोड़ने का माध्यम भी है। इसका सांस्कृतिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व हर भारतीय के दिल में गहरा बसा हुआ है।
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