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Photograph: (thesootr)
भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई ने हाल ही में मॉरीशस में दिए गए एक भाषण में इस बात का जोर दिया कि भारत का शासन संविधान और कानून के तहत चलता है, न कि किसी तरह की मनमानी ताकत से।
जस्टिस बीआर गवई ने ‘कानून का राज’ (Rule of Law) पर अपने विचार रखते हुए कहा कि कानून की ताकत सर्वोच्च है और यह हर नागरिक, चाहे वह आम हो या सत्ताधारी सब पर समान रूप से लागू होना चाहिए।
गवई ने यह बयान 'रूल ऑफ लॉ मेमोरियल लेक्चर' (Rule of Law Memorial Lecture) में दिया, जिसमें उन्होंने भारत और मॉरीशस के इतिहास का उल्लेख करते हुए बताया कि दोनों देशों ने उपनिवेशवाद का सामना किया है और आज वे लोकतांत्रिक समाज के रूप में एक-दूसरे के साझीदार हैं। यह विषय दोनों देशों के बीच गहरे रिश्तों को दर्शाता है, जिनमें संविधान और लोकतांत्रिक मूल्य प्रमुख हैं।
'कानून का राज' का मतलब क्या है?
कानून का राज (Rule of Law) का मतलब यह है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह आम नागरिक हो या सत्ता में बैठे व्यक्ति, सभी को समान रूप से कानून का पालन करना होता है। मुख्य न्यायाधीश ने यह स्पष्ट किया कि संविधान का पालन न केवल समाज की न्यायिक व्यवस्था को स्थिर बनाए रखता है, बल्कि यह यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी सत्ता का दुरुपयोग न कर सके।
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संविधान से चलने वाला भारत
CJI बीआर गवई ने कहा कि भारत में किसी भी व्यक्ति को बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के दोषी ठहराया नहीं जा सकता। उन्होंने कुछ प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का उल्लेख किया, जिनमें संविधान की मूल संरचना, नागरिक अधिकारों और राजनीतिक पारदर्शिता की रक्षा की गई है। ये फैसले यह प्रमाणित करते हैं कि भारतीय न्यायपालिका ‘कानून के राज’ की पालनकर्ता है।
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गांधी और अंबेडकर को किया याद
मुख्य न्यायाधीश गवई ने महात्मा गांधी और डॉ. भीमराव अंबेडकर के दृष्टिकोण को भी याद किया। उन्होंने कहा कि गांधीजी का दृष्टिकोण था कि कोई भी निर्णय लेने से पहले यह सोचा जाए कि उसका प्रभाव समाज के सबसे कमजोर वर्ग पर क्या होगा। वहीं, डॉ. अंबेडकर ने संविधान के माध्यम से यह सुनिश्चित किया कि समाज में सभी को समान अधिकार मिले और सत्ता का दुरुपयोग न हो।
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सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले
मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ ऐतिहासिक फैसलों का जिक्र किया, जो भारतीय संविधान की शक्ति और कानून के राज को सुनिश्चित करने में अहम रहे हैं-
- केशवानंद भारती केस (1973)– सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में यह निर्णय लिया कि संसद संविधान की मूल संरचना में कोई बदलाव नहीं कर सकती।
- मेनका गांधी केस (1978)– इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि कोई भी कानून तभी मान्य होगा जब वह न्यायसंगत और तार्किक होगा।
- ट्रिपल तलाक मामला (2017)– इसमें सुप्रीम कोर्ट ने ट्रिपल तलाक को असंवैधानिक और मनमाना करार दिया।
- एलेक्टोरल बॉन्ड मामला (2024)- इस केस में सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक दलों के चंदा देने की पारदर्शिता पर जोर दिया।
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बुलडोजर से नहीं, संविधान से चलता है भारत
मुख्य न्यायाधीश ने अपने एक हालिया फैसले का हवाला देते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को बिना सुनवाई के और बिना कानूनी प्रक्रिया के उसका घर बुलडोजर से गिराना कानून के राज के खिलाफ है। उन्होंने यह भी कहा कि “भारत बुलडोजर के राज से नहीं, कानून के राज से चलता है।” यह बयान एक मजबूत संदेश था, जो दर्शाता है कि भारतीय संविधान और कानून की सर्वोच्चता को किसी भी कीमत पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
संविधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता
भारत का संविधान दुनिया के सबसे विस्तृत और मजबूत दस्तावेजों में से एक है। यह न केवल नागरिकों के अधिकारों को संरक्षित करता है, बल्कि यह यह सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति बिना कानूनी प्रक्रिया के शिकार न हो। गवई के बयान ने भारतीय न्यायपालिका और संविधान की अहमियत को फिर से उजागर किया है।