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Kolkata. कलकत्ता हाईकोर्ट ने गुरुवार को मुकुल रॉय की विधायकी रद्द की है। यह फैसला दलबदल विरोधी कानून के तहत लिया गया। जस्टिस देबांगसु बसाक की अध्यक्षता वाली बेंच ने यह फैसला सुनाया है। बता दें कि इस मामले पर विपक्ष नेता सुवेंदु अधिकारी और भाजपा विधायक अंबिका रॉय ने याचिका दायर की थी।
मुकुल ने जून 2021 में छोड़ी थी बीजेपी
मुकुल रॉय मई 2021 में भाजपा की टिकट पर विधायक बने थे। 11 जून 2021 को रॉय और उनके बेटे सुभ्रांशु ने TMC जॉइन की। उन्होंने सीएम ममता बनर्जी और सांसद अभिषेक बनर्जी की उपस्थिति में घर वापसी की। इससे पहले 2017 में वे TMC छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे।
सुवेंदु अधिकारी ने लगाई थी अर्जी
18 जून 2021 को सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष को अर्जी दी थी। उन्होंने मुकुल रॉय की सदस्यता खत्म करने की मांग की थी। अधिकारी ने दल बदल कानून के तहत सदस्यता अयोग्य घोषित करने की अपील की थी।
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क्या बोले सुवेंदु अधिकारी
विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने मुकुल रॉय की विधायकी रद्द किए जाने का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि यह संविधान की जीत है। अधिकारी ने कहा कि विधायकों की सदस्यता तुरंत समाप्त होनी चाहिए। 2020 में भाजपा जॉइन करने से पहले मैंने इस्तीफा दिया था। ममता बनर्जी और बिमान बनर्जी ने संविधान का पालन किए बिना 50 विधायकों को जोड़ा।
In a landmark judgment and the first of its kind in West Bengal (possibly also in India), a Constitutional Court being the Division Bench of the Hon’ble High Court at Calcutta consisting of the Hon’ble Justice Debangsu Basak and the Hon’ble Justice Md. Shabbar Rashidi has…
— Suvendu Adhikari (@SuvenduWB) November 13, 2025
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कौन हैं मुकुल रॉय
मुकुल रॉय का विधानसभा क्षेत्र नादिया जिले में है। वह पूर्व में केंद्रीय रेल राज्य मंत्री रह चुके हैं। मुकुल रॉय ने राजनीति में कदम कांग्रेस से रखा था। वह पहले यूथ कांग्रेस के नेता थे। बाद में वह तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे। मुकुल रॉय को ममता बनर्जी के करीबी माना जाता है। वह कुछ दिन बीजेपी में रहे और फिर TMC में शामिल हो गए।
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क्या है दलबदल कानून ?
साल 1967 में हरियाणा के विधायक गया लाल ने एक दिन में तीन बार पार्टी बदली। इसके बाद राजनीति में राम-गया राम की कहावत मशहूर हो गई। दल-बदल को रोकने के लिए राजीव गांधी सरकार ने 1985 में दल-बदल कानून लागू किया। कानून में कहा गया है कि विधायक या सांसद अपनी मर्जी से पार्टी छोड़ सकता है। ऐसे में उसकी सदस्यता दल-बदल कानून के तहत रद्द हो सकती है। यदि सदस्य पार्टी के व्हिप का पालन नहीं करता, तो भी सदस्यता रद्द की जा सकती है। अगर किसी दल के दो-तिहाई सदस्य दूसरे दल में विलय के पक्ष में हों, तो यह दल बदल नहीं माना जाएगा। यह निर्णय लोकसभा अध्यक्ष, विधानसभा अध्यक्ष या उपसभापति लेते हैं। उनके फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है।
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