Alimony पर दिल्ली हाईकोर्ट का अहम फैसला- अगर पत्नी अपनी कमाई से खर्च उठाए, तो गुजारा भत्ता क्यों?

दिल्ली हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ते पर बड़ा फैसला दिया। कोर्ट ने कहा, यह सिर्फ आर्थिक जरूरत की स्थिति में मिलेगा। तलाकशुदा महिला ने तलाक के बाद गुजारा भत्ता और हर्जाना मांगा था। कोर्ट ने आदेश दिया कि महिला साबित करे कि उसे आर्थिक मदद की जरूरत है।

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Sandeep Kumar
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NEW DELHI. दिल्ली हाईकोर्ट ने गुजारा भत्ता (Alimony) पर बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता अपने आप मिलने वाली कोई चीज नहीं है। अगर पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है, तो भत्ता नहीं मिलेगा। पत्नी को यह साबित करना होगा कि उसे पैसों की सख्त जरूरत है। यह फैसला भारतीय रेलवे की महिला अधिकारी की याचिका पर आया है। महिला अधिकारी ने तलाक के बाद स्थायी गुजारा भत्ता और हर्जाना मांगा था।

क्या बोला हाईकोर्ट ?

हाईकोर्ट ने महिला के रवैये पर ध्यान दिया। कोर्ट ने पाया कि महिला तलाक के खिलाफ नहीं थी। वह पैसों की सुरक्षा चाहती थी। कोर्ट ने कहा कि पत्नी शादी तोड़ने का विरोध करती है। लेकिन, यहां वह पैसों की मांग कर रही है। इसका मतलब वह पैसे चाहती है, न कि रिश्ते को बचाना।

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क्या है पूरा मामला?

यह मामला एक तलाकशुदा जोड़े का है। महिला ने पति से तलाक के बाद गुजारा भत्ता और हर्जाना मांगा था। उनकी शादी 2010 में हुई थी। वे एक साल साथ रहे थे। इसके बाद महिला ने तलाक की अर्जी लगाई। अगस्त 2023 में फैमिली कोर्ट ने तलाक मंजूर किया था। महिला ने फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी। कोर्ट ने पति पर क्रूरता का आरोप लगाकर भत्ता देने से इनकार किया था।

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2  पॉइंट्स में समझें पूरी स्टोरी

👉 दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा, गुजारा भत्ता स्वचालित नहीं है। यदि पत्नी आर्थिक रूप से सक्षम है, तो भत्ता नहीं मिलेगा। पत्नी को यह साबित करना होगा कि उसे पैसों की सख्त जरूरत है।

👉यह फैसला भारतीय रेलवे की महिला अधिकारी की याचिका पर आया। महिला ने तलाक के बाद स्थायी गुजारा भत्ता और हर्जाना मांगा था। महिला ने फैमिली कोर्ट के फैसले को चुनौती दी। कोर्ट ने पति पर क्रूरता का आरोप लगाकर भत्ता देने से इनकार किया था।

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क्या है कानून?

कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम (HMA) की धारा 25 का हवाला दिया। इस धारा के तहत, कोर्ट को गुजारा भत्ता देने का अधिकार है। कोर्ट पति-पत्नी की कमाई, संपत्ति और अन्य पहलुओं को देखती है। जस्टिस अनिल क्षेत्रपाल और हरीश वैद्यनाथन शंकर की बेंच ने कहा, यह कानून निष्पक्ष है। इसका उद्देश्य आर्थिक न्याय सुनिश्चित करना है। यह इसलिए है, ताकि किसी को शादी टूटने के बाद बेसहारा न होना पड़े। राहत असली आर्थिक जरूरत और निष्पक्षता पर निर्भर करती है।

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