ध्वजारोहण और झंडावंदन में क्या है बड़ा अंतर, जानें स्वतंत्रता दिवस पर इनका महत्व

हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री जहां ध्वजारोहण करते हैं तो वहीं गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रपति झंडावंदन करते हैं। यह दोनों प्रक्रिया सुनने में लोगों को भले एक जैसी लग सकती है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि यह दोनों परंपराएं एक दूसरे से बिलकुल अलग हैं।

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Sanjay Dhiman
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15 अगस्त पर हमारा देश अपना 79वां स्वतंत्रता दिवस मनाने जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 अगस्त, शुक्रवार को दिल्ली के लाल किले पर ध्वजारोहण करेंगे। इसे लेकर लोगों में काफी उत्साह भी है। दोनों राष्ट्रीय पर्व स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर ध्वजारोहण और झंडावंदन किया जाता है। हर साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री जहां ध्वजारोहण करते है तो वहीं 26 जनवरी गणतंत्र दिवस पर देश के राष्ट्रपति झंडावंदन करते है।

यह दोनों प्रक्रिया देखने और सुनने में लोगों को भले एक जैसी लग सकती है, लेकिन बहुत कम लोग जानते है कि यह दोनों परंपराएं एक दूसरे से बिलकुल अलग हैै। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे दोनों परंपराओं का इतिहास और इनमे क्या अंतर है।  

ध्वजारोहण (Flag Hoisting)

ध्वजारोहण की परंपरा भारत के स्वतंत्रता संग्राम और आजादी की याद दिलाती है। 15 अगस्त 1947 को जब भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की थी, तब देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लाल किले की प्राचीर से राष्ट्रीय ध्वज फहराया था। तभी से यह परंपरा शुरू हुई थी।

ध्वजारोहण के दौरान, राष्ट्रीय ध्वज को पहले नीचे से ऊपर उठाया जाता है, और उसके बाद उसे सम्मानपूर्वक फहराया जाता है। यह प्रक्रिया केवल स्वतंत्रता दिवस पर होती है, यानी 15 अगस्त को। 

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झंडा फहराना (Flag Hurling)

अब बात करते हैं झंडा फहराने की। झंडा फहराने का कार्य गणतंत्र दिवस, 26 जनवरी को होता है। इस दिन, राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। झंडा पहले से ही खंभे पर बंधा होता है और इस पर फूलों की पंखुड़ियां भी सजी होती हैं। जब तिरंगे को फहराया जाता है, तो आकाश से पुष्प वर्षा होती है, जो एक विशेष दृश्य प्रस्तुत करती है।

झंडा फहराना एक सामान्य प्रक्रिया है जिसे कोई भी आम आदमी कर सकता है। हालांकि, गणतंत्र दिवस पर यह कार्य राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है, और इसे कर्तव्य पथ पर किया जाता है। 

स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण के लिए नियम

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जब आप स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराते हैं या ध्वजारोहण करते हैं, तो कुछ महत्वपूर्ण नियमों का पालन करना होता है:

  • तिरंगा साफ-सुथरा और बिना फटे या कटी हुई अवस्था में होना चाहिए।

  • झंडा अगर मंच पर फहराया जा रहा है, तो वक्ता का मुंह श्रोताओं की ओर और झंडा उसके दाहिनी ओर होना चाहिए।

  • झंडा हर किसी को दिखाई देना चाहिए और उसे सम्मानपूर्वक प्रदर्शित किया जाना चाहिए।

  • अशोक चक्र झंडे की बीच में और सफेद पट्टी पर होना चाहिए। इसमें 24 तीलियां होनी चाहिए।

ध्वजारोहण और झंडा फहराने में क्या अंतर है?

ध्वजारोहण और झंडा फहराने दोनों प्रक्रिया का महत्व समान है, लेकिन दोनों में एक मूल अंतर है। ध्वजारोहण एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है, जो केवल स्वतंत्रता दिवस पर होती है। वहीं झंडा फहराना गणतंत्र दिवस पर होता है, और यह एक सामान्य सार्वजनिक परंपरा है जिसे कोई भी व्यक्ति कर सकता है। 

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तिरंगे को नीचे उतारने के नियम

झंडा फहराने के बाद उसे नीचे उतारने का भी एक तरीका होता है:

  • सबसे पहले, राष्ट्रीय ध्वज को क्षैतिज रूप से रखा जाए।

  • केसरिया और हरे रंग की पट्टियों को सफेद पट्टी के नीचे मोड़ें।

  • सफेद पट्टी को इस प्रकार मोड़ें कि केवल अशोक चक्र दिखाई दे।

  • मोड़े हुए झंडे को हथेलियों या हाथों में सुरक्षित रूप से रखा जाए।

ध्वजारोहण और झंडा फहराने का ऐतिहासिक महत्व

15 अगस्त 1947 वह दिन था जब भारत ने ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्रता प्राप्त की। पंडित नेहरू ने लाल किले से भारतीय झंडे को फहराया था। इस ऐतिहासिक घटना को याद रखने के लिए हर साल 15 अगस्त को ध्वजारोहण की प्रक्रिया की जाती है।

वहीं, 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, और तब से गणतंत्र दिवस के दिन झंडा फहराने की परंपरा शुरू हुई। यह दिन भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रतीक है।

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