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केंद्र सरकार द्वारा डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023 लागू करने की योजना के खिलाफ सामाजिक संगठनों का विरोध बढ़ता जा रहा है। इन संगठनों का कहना है कि इस नए कानून के तहत सूचना के अधिकार (RTI) अधिनियम में किए गए संशोधन से इस कानून का प्रभाव पूरी तरह घट जाएगा। इससे नागरिकों को सरकारी जानकारी तक पहुंच प्राप्त करने में कठिनाई का सामना करना पड़ेगा। चलिए इस मामले को पूरी तरह समझते हैं।
कैसे चर्चा में आया यह मामला
हाल ही में दिल्ली के कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में राष्ट्रीय जन सूचना अधिकार अभियान के तहत लगभग 34 संगठनों ने एक बैठक का आयोजन किया। इस बैठक में विपक्षी दलों के सांसदों को यह बताया गया कि कैसे इस संशोधन से सूचना के अधिकार की सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। बैठक में भाग लेने वाले सांसदों ने इस संशोधन का संसद में विरोध करने की आवश्यकता पर बल दिया।
बैठक में कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, सीपीआई (एम) और सीपीआई (माले) के सांसद शामिल हुए। इसके अलावा, इन संगठनों के प्रतिनिधि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी से भी मिले और अपने विचार साझा किए।सूचना अधिकार कार्यकर्ता अंजलि भारद्वाज कहती हैं कि सरकार डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन (DPDP) को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रही है, ताकि सूचनाओं पर नियंत्रण रखा जा सके। इसके दायरे में अब आम नागरिक, पत्रकार और सामाजिक संगठन भी आ जाएंगे।
विपक्षी दलों के सांसदों ने जताई चिंता
इस विवाद के बीच सवाल उठता है कि सरकार किस प्रकार इस नए कानून के माध्यम से सूचना के अधिकार को कमजोर कर रही है। इस संशोधन के लागू होने से RTI पर क्या असर पड़ेगा। विपक्षी दलों के सांसदों ने भी इस मुद्दे पर अपनी चिंताएं व्यक्त की हैं और संसद में इस पर चर्चा की आवश्यकता जताई है।
नागरिक संगठनों ने भी जताया विरोध
हाल ही में 30 से अधिक नागरिक समाज संगठनों ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह सूचना का अधिकार (RTI) अधिनियम, 2005 को कमजोर करने से बचें। इन संगठनों का यह कहना है कि 2023 में किए गए संशोधन ने सरकारी जानकारी को सार्वजनिक करने में गंभीर बाधाएं उत्पन्न कर दी हैं।
समझें क्या संशोधन किए गए
RTI एक्ट में 2023 में एक संशोधन किया गया था, जिसमें सरकारी जानकारी के सार्वजनिक खुलासे पर रोक लगाने के लिए सेक्शन 8(1)(j) में बदलाव किया गया है। इस संशोधन ने सार्वजनिक हित के मामलों में व्यक्तिगत जानकारी के खुलासे की छूट को हटा दिय गया है। इससे अब सरकारी जानकारी प्राप्त करना और भी कठिन हो गया है। यह संशोधन डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (DPDP) अधिनियम, 2023 के तहत किया गया था।
आपको बता दें कि इस संशोधन से पहले, सरकारी अधिकारियों की व्यक्तिगत जानकारी को सार्वजनिक करने से मना करने का अधिकार था, लेकिन अगर वह जानकारी सार्वजनिक हित में होती, तो उसे जारी किया जा सकता था। अब इस संशोधन ने सार्वजनिक हित की इस छूट को भी समाप्त कर दिया, जिससे सरकार से संबंधित महत्वपूर्ण डेटा प्राप्त करने में बाधाएं आ रही हैं।
आरोप: हाल के वर्षों में RTI अधिनियम को कई बार कमजोर किया गया
1. 2019 का संशोधन:
2019 में किए गए एक संशोधन ने सूचना आयुक्तों के कार्यकाल और वेतन तय करने का अधिकार सरकार को दे दिया था, जिससे उनके स्वतंत्रता पर असर पड़ा।
2. कर्मचारियों की कमी:
कई महत्वपूर्ण RTI पद रिक्त पड़े हैं, जिससे लोगों के सवालों का समय पर जवाब नहीं मिल पाता।
3. राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता:
राष्ट्रीय सुरक्षा और गोपनीयता के आधार पर RTI आवेदन बढ़ते जा रहे हैं और इसे एक बहाने के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे RTI की अधिकतम मांगों को नकारा जा रहा है।
4. आवेदकों और व्हिसलब्लोअर का उत्पीड़न:
RTI आवेदन करने वाले और व्हिसलब्लोअर कई बार उत्पीड़न का सामना करते हैं, जिससे यह कानून लागू करने में रुचि कम हो रही है।
5. डिजिटल प्लेटफॉर्म की कमी:
कई राज्यों में डिजिटल RTI प्लेटफॉर्म का अभाव है, जिससे नागरिकों के लिए RTI आवेदन दाखिल करना और सरकारी जानकारी प्राप्त करना कठिन हो जाता है।
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लोकतंत्र में एक मजबूत टूल है RTI
RTI अधिनियम, 2005, लोकतंत्र में एक मजबूत टूल है जो शासन के पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा देता है। इस क्षेत्र में कार्यरत एक्टीविस्ट का मानना है कि हाल के संशोधनों से यह कानून कमजोर हुआ है। इससे लोगों का विश्वास टूट सकता है। अगर हम RTI के उद्देश्य को बचाए रखना चाहते हैं, तो सरकार को इन संशोधनों को पलटने और RTI प्रणाली को प्रभावी बनाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए।
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