समुद्र मंथन में निकले थे खास प्रतीक, इनके बिना अधूरी है लक्ष्मी पूजा

दिवाली पर लक्ष्मी जी की पूजा में कुछ खास प्रतीकों का समावेश है, जिनके बिना लक्ष्मी जी की पूजन अधूरी मानी जाती है। ये प्रतीक सुख, शांति, वैभव, बुद्धिमत्ता और धन-संपत्ति के प्रतीक माने गए हैं।

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Ravi Singh
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Ujjain : दिवाली आ गई। हर किसी की अपनी पूजन विधि है, अपनी परम्पराएं हैं। कोई रात में पूजन करता है, कोई शुभ मुहूर्त के इंतजार में रहता है। इन सबके बीच खास यह है कि दीपावली पर लक्ष्मी जी की पूजा में कुछ खास प्रतीकों का समावेश है, जिनके बिना लक्ष्मी जी की पूजन अधूरी मानी जाती है। ये प्रतीक सुख, शांति, वैभव, बुद्धिमत्ता और धन-संपत्ति के प्रतीक माने गए हैं। 'द सूत्र' ने विद्वानों से इन प्रतीकों के बारे में विस्तार से जाना...उनके पीछे का महत्व और धार्मिक पहलू जाने-समझे...

पढ़िए ये खास खबर...

समुद्र मंथन के दौरान विभिन्न प्रकार के दिव्य प्रतीक और वस्तुएं उत्पन्न हुईं, जिनमें से कई देवी लक्ष्मी के साथ जुड़े हैं और समृद्धि, सुख-समृद्धि के प्रतीक माने जाते हैं। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन के दौरान इन प्रतीकों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व होता है, क्योंकि वे देवी लक्ष्मी के रूप और उनके आशीर्वाद को समेटे हुए हैं। आइए इन सभी प्रतीकों और उनके महत्व को विस्तार से समझते हैं:

1. हाथी (गजराज)

समुद्र मंथन से जब लक्ष्मी जी प्रकट हुईं तो उनके साथ सफेद हाथी भी प्रकट हुआ। इस हाथी में उड़ने की क्षमता थी, इसलिए अष्ट लक्ष्मी में शामिल उनका एक रूप गज लक्ष्मी का है। वे गज पर सवार हैं। दिवाली पर लक्ष्मी पूजन में चांदी, सोने या मिट्टी के हाथी की प्रतिमा भी रखी जाती है।

महत्व: हाथी को शौर्य, शक्ति और वैभव का प्रतीक माना जाता है। हाथी धन, राजसी सम्मान और स्थायित्व का प्रतीक है।

धार्मिक पहलू: गजलक्ष्मी का स्वरूप विशेष रूप से धन और शौर्य की देवी के रूप में पूजनीय है। हाथी स्थिरता और राजा के रूप में आर्थिक स्थायित्व का प्रतीक है।

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2. कलश (घड़ा)

सागर मंथन से भगवान धन्वंतरि जी जब आए तो उनके हाथ में अमृत कलश था, इसलिए कलश स्थापना से ही दिवाली सहित सभी पूजा-अर्चना आरंभ होती हैं। कलश के मुख पर भगवान ब्रह्मा, गले में भगवान शंकर और मूल में भगवान विष्णु का वास माना गया है। सभी देवी-देवता कलश में प्रतिष्ठित होकर शुभ कार्य संपन्न कराते हैं।

महत्व: कलश समृद्धि और शुभता का प्रतीक है, जो असीमित भंडार, स्वास्थ्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

धार्मिक पहलू: कलश में देवी लक्ष्मी का वास माना जाता है। इसे देवी का प्रतीक मानकर पूजा जाता है और यह जीवन की जरूरतों को संजोने का प्रतीक भी है। देवियों के अभिषेक के दौरान कलश का विशेष महत्व होता है।

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3. कमल (लोटस)

पद्म पुराण में कमल की प्रशंसा की गई है। चैत्र सप्तमी को 'कमल सप्तमी' भी कहते हैं। भगवान विष्णु की चार भुजाओं में से एक हाथ में कमल है। लक्ष्मी जी कमल पर विराजमान रहती हैं, इसलिए दिवाली पर लक्ष्मी जी को पूजा में कमल भी अर्पित किए जाते हैं। कमल वैभव का प्रतीक है।

महत्व: कमल को शुद्धता, सौंदर्य और आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है। देवी लक्ष्मी को कमल के फूल पर विराजित दिखाया जाता है, जिससे यह निस्वार्थ और स्थिर मन की भावना को दर्शाता है।

धार्मिक पहलू: कमल का फूल देवी लक्ष्मी की सुंदरता और उनकी कृपा को दर्शाता है। यह दर्शाता है कि वास्तविक समृद्धि में आध्यात्मिकता का समावेश होता है और यह मानसिक शांति का प्रतीक भी है।

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4. शंख (कौड़)

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, शंख चंद्रमा और सूर्य के समान देव स्वरूप हैं। शंख के मध्य में भगवान वरुण, पृष्ठ भाग में भगवान ब्रह्मा और आगे के भाग में मां गंगा और सरस्वती का निवास माना जाता है। समुद्र मंथन के वक्त लक्ष्मी जी और पांचजन्य शंख निकले थे। शंख को लक्ष्मी जी का भाई भी माना गया है। शंख से लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर वे प्रसन्न होती हैं।

महत्व: शंख को शुद्धता, दिव्यता और शुभता का प्रतीक माना गया है। यह वातावरण को सकारात्मक बनाता है और अशुभ शक्तियों को दूर करता है।

धार्मिक पहलू: शंख ध्वनि से वातावरण पवित्र होता है, इसे देवी लक्ष्मी की प्रिय वस्तु माना गया है। शंख को शुभ शगुन और धन व समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

5. पारिजात (हरसिंगार का पेड़)

मां लक्ष्मी को पारिजात का फूल प्रिय है। इसे हरसिंगार भी कहते हैं। समुद्र मंथन से यह वृक्ष भी लक्ष्मी जी के साथ प्रकट हुआ था। इसे इंद्र ने स्वर्ग में लगाया, फिर इसे धरती पर लाया गया था। मान्यता है कि लक्ष्मी जी को नारियल पर रखकर पारिजात पुष्प अर्पित किए जाएं तो वे प्रसन्न होती हैं। खास बात यह है कि पारिजात के फूल ही ऐसे हैं, जो वृक्ष से गिरने के बाद भी देवी को अर्पित किए जा सकते हैं।

महत्व: पारिजात का फूल अमरता, प्रेम और शांति का प्रतीक माना जाता है। इसे स्वर्गिक वृक्ष भी कहा जाता है।

धार्मिक पहलू: समुद्र मंथन से प्राप्त इस वृक्ष को धन्य और पवित्र माना गया है। इसका धार्मिक महत्व है कि यह हमारे जीवन में सच्चे और निस्वार्थ प्रेम की स्थापना करता है, जो मन को शांति प्रदान करता है।

6. चक्र (गोमती चक्र)

गोमती चक्र सीप की तरह सफेद होता है, जिस पर चक्र होता है। मान्यता है कि यह चक्र भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र है, जो नकारात्मक शक्तियों को समाप्त करता है। पूजा के दौरान इस चक्र को भी देवी लक्ष्मी के साथ रखने की परम्परा है। पूजा संपन्न होने के बाद इसे लाल कपड़े में लपेटकर तिजोरी में रख दिया जाता हैं।

महत्व: चक्र रक्षा और शक्ति का प्रतीक है। इसे भगवान विष्णु का अस्त्र माना जाता है और यह मां लक्ष्मी तथा भगवान नारायण के समन्वित रूप का प्रतिनिधित्व करता है।

धार्मिक पहलू: सुदर्शन चक्र भगवान विष्णु की रक्षा करने की शक्ति को दर्शाता है। यह आत्म-संयम, शक्ति और धर्म के प्रति अडिगता का प्रतीक है। दिवाली पर लक्ष्मी जी की पूजा करते समय चक्र उनकी संरक्षकता और सुरक्षा का आह्वान है।

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7. श्रीयंत्र

श्री यंत्र शरीर की संरचना, ऊर्जा और चक्रों को दर्शाने वाला है, इसमें मां लक्ष्मी का स्थाई वास माना गया है। दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि पूजा करने पर आदि देवी सुख, भोग, स्वर्ग देती हैं। श्रीयंत्र की स्थापना के लिए शुभ दिन दिवाली का है। दिवाली पर सोने, चांदी, पीतल और तांबे के श्रीयंत्र को खरीदने और उनकी पूजा का महत्व है।

महत्व: श्रीयंत्र को देवी लक्ष्मी का ही प्रतीक माना जाता है और यह सभी प्रकार की समृद्धि और शक्ति का केंद्र होता है।

धार्मिक पहलू: इसे एक शक्तिशाली यंत्र माना गया है, जो लक्ष्मी की कृपा और शांति का आह्वान करता है। श्रीयंत्र का दर्शन धन, वैभव और समृद्धि की वृद्धि करने के लिए किया जाता है। यह विशेष रूप से ध्यान और पूजा के दौरान शुभता और सौभाग्य लाने के लिए स्थापित किया जाता है।

8. उल्लू (लक्ष्मी जी का वाहन)

दिवाली की रात में उल्लू को देखना लक्ष्मी जी के आगमन की सूचना माना जाता है। कहते हैं, लक्ष्मी जी को जब वाहन चुनने का कहा गया तो उन्होंने कहा कि जब मैं धरती पर आऊंगी, तब जो पशु, पक्षी, जीव सबसे पहले मुझ तक पहुंचेगा, वही वाहन होगा। अमावस्या की रात जब वे आईं तो उल्लू सबसे पहले पहुंचा, क्योंकि उल्लू में काली रात में देखने की खास क्षमता होती है।

महत्व: उल्लू को ज्ञान, जागरूकता और रहस्य के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लक्ष्मी जी का वाहन होने के नाते यह समृद्धि और विवेक का परिचायक है।

धार्मिक पहलू: उल्लू का वाहन रूप से प्रतीकात्मक अर्थ है कि लक्ष्मी जी अंधकार में भी उजाला फैलाती हैं और उनके वाहन उल्लू को धन के साथ बुद्धिमत्ता और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है। उल्लू लक्ष्मी के साथ अज्ञानता का नाश और विवेक का आवाहन करता है।

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