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सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के उस नियम की आलोचना की है, जिसमें एमबीबीएस (MBBS) उम्मीदवारों के लिए दोनों हाथों का स्वस्थ होना अनिवार्य किया गया था। अदालत ने इसे असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण करार दिया है। यह मामला मेडिकल छात्र अनमोल से जुड़ा है। NEET-UG 2024 में दिव्यांगता (PwD) श्रेणी में 2,462वीं रैंक हासिल करने के बावजूद मेडिकल कॉलेज में दाखिले से वंचित कर दिया गया था।
चंडीगढ़ के सरकारी मेडिकल कॉलेज ने NMC के दिशानिर्देशों का हवाला देते हुए उसे अयोग्य ठहरा दिया था। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट से भी उसे राहत नहीं मिली, जिसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने इस फैसले को लेकर NMC की कड़ी आलोचना की।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह नियम न केवल संविधान के अनुच्छेद 41 के खिलाफ है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र के दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकारों पर समझौते और भारत के दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम का भी उल्लंघन करता है। अदालत ने कहा कि ऐसे नियम "एबलिज्म" (शारीरिक रूप से सक्षम लोगों को प्राथमिकता देने की मानसिकता) को बढ़ावा देते हैं, जो समावेशी समाज की भावना के खिलाफ है।
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AIIMS पैनल की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर AIIMS, नई दिल्ली के छह सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल ने अनमोल की शारीरिक क्षमता की जांच की। इनमें से पांच विशेषज्ञों ने उसे एमबीबीएस के लिए अयोग्य घोषित कर दिया, जबकि छठे सदस्य, डॉ. सत्येंद्र सिंह ने तर्क किया कि अनमोल सहायक उपकरण और समायोजन के साथ मेडिकल शिक्षा पूरी कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. सिंह की राय को स्वीकारते हुए कहा कि मेडिकल छात्रों को एंट्री लेवल पर बाहर करने के बजाय उन्हें अपनी विशेषज्ञता बाद में चुनने की आजादी दी जानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी सवाल उठाया कि पांच विशेषज्ञों ने अनमोल की परीक्षा कैसे की और उन्होंने उसे अयोग्य घोषित करने का आधार स्पष्ट क्यों नहीं किया।
दोनों हाथ जरूरी पर उठे सवाल
डॉक्टर बनने के लिए दोनों हाथ जरूरी बताए जाने पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल खड़ा किया है। उसने ये बात एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा। इसके बाद भारत दिव्यागंजनों को लेकर मुद्दा फिर से चर्चा में आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) के उस नियम पर सवाल उठया है, जिसमें कहा गया है कि MBBS करने वाले छात्रों के लिए दोनों हाथों का होना जरूरी है। इसके बाद इस पर बहस तेज हो गई है। अदालत ने इस नियम को 'भेदभावपूर्ण और असंवैधानिक' करार देते हुए सख्त टिप्पणी की है। इस फैसले ने मेडिकल क्षेत्र में दिव्यांगजन की हिस्सेदारी को लेकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
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SC में अगली सुनवाई 3 मार्च 2025 को
इस मामले की अगली सुनवाई 3 मार्च 2025 को होगी, जिसमें देखा जाएगा कि NMC ने अपने दिशानिर्देशों में कोई बदलाव किया है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने यह संकेत दिया है कि अब समय आ गया है जब दिव्यांग व्यक्तियों को उनके अधिकारों से वंचित करने वाले नियमों पर पुनर्विचार किया जाए।
फैसला हजारों छात्रों के लिए आशा की किरण
जो अपने सपनों को केवल इसलिए नहीं छोड़ सकते क्योंकि वे शारीरिक रूप से अलग हैं! अब यह देखना होगा कि NMC इस मुद्दे पर क्या कदम उठाती है और क्या मेडिकल शिक्षा को सचमुच समावेशी बनाया जाता है।