लॉटरी किंग सैंटियागो मार्टिन की कहानी अमिताभ की फिल्मों जैसी

लॉटरी किंग पड़ोसी देश म्यांमार में एक मजदूर था। उसने साल 1988 में रंगून से लौटने के बाद तमिलनाडु में 'मार्टिन लॉटरी' के नाम से धंधा शुरू किया। शुरू में वह आम बिजनेसमेन की तरह ही काम कर रहा था, लेकिन नेताओं से दोस्ती होते ही उसकी किस्मत बदलने लगी।

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Dr Rameshwar Dayal
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इलेक्टोरल बॉन्ड
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देश की राजनीति में तूफान उठाने वाले इलेक्टोरल बॉन्ड ( electoral bond ) अब आम आदमी तक में दिलचस्पी पैदा कर रहा है। बॉन्ड के जरिए चंदा देने वाली कंपनियों में सबकी दिलचस्पी भी खूब बढ़ रही है और इनमें सबसे ज्यादा चर्चित हो रहा है 'लॉटरी किंग' ( lottery king ) सैंटियागो मार्टिन ( Santiago Martin )। इस बंदे ने खुले दिल से राजनीतिक पार्टियों को चंदा दिया और लॉटरी की दुनिया में तो नाम कमाया ही, जिस कारण अब देश भी इसके बारे में जानने का इच्छुक हो रहा है। तो आपको बता दें कि मार्टिन की जिंदगी का सफरनामा बॉलिवुड के सबसे बड़े स्टार अमिताभ बच्चन की फिल्मों सरीखा है। कभी वह पड़ोसी देश म्यांमार में एक मजदूर था, लेकिन लॉटरी की फिरकी ने इसकी किस्मत को घुमाकर बुलंदी पर पहुंचा दिया। अभी तक की जानकारी के अनुसार राजनीति पार्टियों को पिछले पांच साल में बॉन्ड के रूप में जो चंदा मिला है, उसमें मार्टिन की भागीदारी 11 प्रतिशत है। 

सबसे ज्यादा चंदा डीएमके को दिया

चुनाव आयोग ने वेबसाइट के माध्यम से जो ‘कटी-फटी’ जानकारी मुहैया कराई है, उसके अनुसार पिछले पांच सालों में बेचे गए कुल चुनावी बॉन्ड का करीब 11 प्रतिशत हिस्सा फ्यूचर गेमिंग एंड होटस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के बॉस 'लॉटरी किंग' सैंटियागो मार्टिन का है। यह भी जानकारी दी गई है कि साल 1991 में कोयंबटूर में स्थापित कंपनी ने कुल 1,368 करोड़ रुपए का चंदा बॉन्ड के माध्यम से दिया है। खास बात यह है कि इसमें से करीब 37 प्रतिशत दक्षिण भारत की राजनीतिक पार्टी डीएमके को हासिल हुआ है।

मजदूर से ऐसे बन गया सबसे बड़ा चंदादाता

जब उसका इतिहास खंगाला गया तो पता चला कि वह पड़ोसी देश म्यांमार में एक मजदूर था। उसने साल 1988 में रंगून से लौटने के बाद तमिलनाडु में 'मार्टिन लॉटरी' के नाम से धंधा शुरू किया। शुरू में वह आम बिजनेसमेन की तरह ही काम कर रहा था, लेकिन जब उसने राजनीतिक पार्टियों और नेताओं से दोस्ती गांठनी शुरू की तो उसकी किस्मत की फिरकी तेजी से घूमने लगी। बताते है कि साल 2008 में लॉटरी किंग ने केरल में माकपा के मुखपत्र को दो करोड़ रुपए का दान दिया था। हालांकि पार्टी में आंतरिक कलह के कारण यह रकम लॉटरी किंग को वापस कर दी गई थी। उसके दामाद आधव अर्जुन को तमिलनाडु के डीएमके के शीर्ष नेताओं का नजदीकी माना जाता है। अर्जुन अब दलित पार्टी विदुथलाई चिरुथिगल काची ( वीसीके ) में शामिल हो गए हैं। सूत्र बताते हैं कि जब बॉन्ड की देनदारी का पूरा खुलासा होगा तो लॉटरी किंग की चंदा-कथा में और पर लगेंगे।

पुरानी जिंदगी दागदार है लॉटरी किंग की

हम आपको बता चुके हैं कि लॉटरी किंग के जीवन का चढ़ता ग्राफ अमिताभ बच्चन की फिल्मों जैसा है, जहां उसने हिम्मत और किस्मत से धन और राजनीति की दुनिया में सिक्का जमाया। एक जानकारी के अनुसार इस लॉटरी किंग के कर्नाटक, पंजाब, पश्चिम बंगाल, केरल, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर राज्यों में लॉटरी का धंधा फैलाया और वहां अपने ऑॅफिस खोले। तेजी से बढ़ने कारोबार ने इस पर सवाल भी खड़े किए और शासन ने इसके कार्यकलापों की जांच शुरू कर दी। साल 2003 में तमिलनाडु में 'मार्टिन लॉटरी' को बैन कर दिया गया। बताते हैं कि साल 2011 के बाद इनकम चोरी, मनी लॉन्ड्रिंग और धोखाधड़ी के संदेह में इसकी कंपनी को जांच के घेरे में लिया गया। पुराने वक्त में इसकी कंपनी को सबसे बड़ा नुकसान तब हुआ था जब केरल में फर्जी लॉटरी बिक्री के कारण सिक्किम सरकार को 900 करोड़ रुपए से अधिक के नुकसान के आरोप में ईडी ने वर्ष 2023 में कपंनी की करीब 457 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की थी। सूत्र बताते हैं कि अब यह बंदा उजागर हो चुका है, तो आगामी दिनों में इसके और कारनामे सामने आ सकते हैं।

 

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