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हर बच्चे की जिंदगी में माता-पिता का बहुत ही गहरा महत्व होता है। जहां मां अपने प्यार और दुलार से बच्चे को संवारती हैं तो वहीं पिता भी अपनी संतान की अच्छी परवरिश के लिए टायरलेस एफ्फोर्ट्स करते हैं और कई चीजों का त्याग करते हैं। क्या कभी हमने पिता होने के उस इनर एक्सपीरियंस पर गहराई से गौर किया है?
वो फीलिंग्स, वो स्ट्रगल और वो अनटोल्ड स्टोरीज जो एक पुरुष के पिता बनने के सफर को डिफाइन करती हैं। तो ऐसे में फादर्स डे एक ऐसा विशेष अवसर है जब हम अपने पिता के इन बलिदानों और योगदानों को तहे दिल से थैंक यू कहते हैं।
यह दिन हमें उन अनमोल पलों को याद करने और सम्मान देने का मौका देता है जो पिता अपने बच्चों के लिए जीते हैं। इस साल फादर्स डे 15 जून, 2025 को मनाया जाएगा। तो आइए, इस फादर्स डे पर सिर्फ पिता पर केंद्रित होकर कुछ ऐसे ही पहलुओं पर बात करें, जो शायद ही कभी चर्चा में आते हैं।
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कैसे शुरू हुआ फादर्स डे का प्रचलन
पिता को सम्मान देने और उनके दिल से शुक्रिया कहने के लिए फादर्स डे जैसे खास दिन की शुरुआत अमेरिका से हुई। 1909 में एक अमेरिकी महिला, सोनोरा स्मार्ट डोड ने यह सुझाव दिया कि जैसे मां के लिए मदर्स डे मनाया जाता है, ठीक उसी तरह पिता के लिए भी फादर्स डे मनाया जाना चाहिए।
सोनोरा के पिता एक अमेरिकी सैनिक थे जो सिविल वॉर का हिस्सा रहे थे। उनकी पत्नी की दुखद मृत्यु के बाद, उन्होंने अकेले ही अपने 6 बच्चों की परवरिश की। सोनोरा अपने पिता के इस असाधारण समर्पण और बलिदान के लिए उन्हें सम्मान देना चाहती थीं। उन्होंने इस विचार को रियलिटी में बदलने के लिए अथक प्रयास किए और लोगों का समर्थन जुटाया।
यह उनके लिए किसी जंग से कम नहीं था, लेकिन उनकी स्ट्रांग विल और लव ने उन्हें सफलता दिलाई। आखिरकार, वाशिंगटन में 19 जून, 1910 को पहली बार फादर्स डे मनाया गया।
इस दिन को ऑफिसियल मान्यता मिलने में कई साल लगे और फाइनली 1972 में अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने इसे ऑफिसियल तौर पर नेशनल हॉली डे घोषित किया। भारत में भी फादर्स डे जून के तीसरे रविवार को ही मनाया जाता है।
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एक पुरुष से पिता तक का सफर
एक पुरुष का पिता बनना सिर्फ बायोलॉजिकल प्रोसेस नहीं है, बल्कि यह एक गहरा इमोशनल और मेन्टल ट्रांसफॉर्मेशन है। जिस पल एक पिता को पता चलता है कि वह पिता बनने वाला है, उसके जीवन में एक इनविजिबल चेंज शुरू हो जाता है। अचानक, उसके भविष्य की कल्पनाओं में एक नया चेहरा शामिल हो जाता है और उसकी प्रिऑरिटीज का ऑर्डर बदल जाता है।
यह परिवर्तन अक्सर धीरे-धीरे होता है जैसे बच्चे के पहले अल्ट्रासाउंड से लेकर उसकी पहली किलकारी सुनने तक। इस समय वह अपनी खुशियों, चिंताओं और नई जिम्मेदारियों को अंदर ही अंदर महसूस करता है।
वह खुद को एक गार्डियन के रूप में देखना शुरू करता है, जिसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी अब अपने बच्चे के भविष्य को सुरक्षित करना है। यह एक पुरुष से पिता बनने का आंतरिक सफर है, जो बाहरी दुनिया को अक्सर दिखाई नहीं देता।
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पिता का अनकहा बलिदान
हम अक्सर मां के बलिदानों की बात करते हैं, जो निश्चित रूप से अतुलनीय हैं। लेकिन पिता के बलिदान अक्सर मौन और अदृश्य होते हैं। वे अपनी इच्छाओं, शौकों और कभी-कभी करियर की अम्बिशन्स को भी चुपचाप पीछे छोड़ देते हैं ताकि उनके बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सके।
यह सिर्फ आर्थिक सहायता तक सीमित नहीं है, वे अपने व्यक्तिगत सपनों को स्थगित कर देते हैं। देर रात तक काम करते हैं और अपने बच्चे के लिए एक स्थिर और सुरक्षित माहौल बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। वे अक्सर शिकायत नहीं करते और उनकी यही मौन समर्थन की शक्ति उन्हें और भी खास बनाती है।
उनका प्रेम अक्सर शब्दों में व्यक्त नहीं होता, बल्कि उनके अथक प्रयासों और अटूट मौजूदगी में झलकता है। वे हमारी जिंदगी के सुपरहीरो और रोल मॉडल होते हैं।
बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम
जो पिता अपने बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताते हैं, उनके बच्चों की पर्सनैलिटी में एक अलग ही आत्मविश्वास होता है और बच्चे उनसे अपनी हर बात को बिना डरे साझा करते हैं।
हर पिता को अपने बच्चे के साथ खेलना चाहिए, सोते वक्त उन्हें कहानी सुनानी चाहिए, स्कूल छोड़ने जाना चाहिए, वीकेंड पर कहीं घुमाने ले जाना चाहिए, या उनके साथ कोई एक्टिविटी करनी चाहिए। इससे बच्चों को यह महसूस होता है कि उनके पिता उन्हें अहमियत देते हैं और उनका ध्यान रखते हैं।
पिता को दिखाने चाहिए इमोशन
पिता की छवि को अक्सर कठोर और निष्ठुर पेश किया जाता है। समाज में यह धारणा है कि वे अपने कंधों पर सारी जिम्मेदारी का बोझ उठाते हैं लेकिन उफ्फ तक नहीं करते। ऐसे में यह छवि बच्चों के लिए खतरनाक हो सकती है। हर इंसान के अंदर भावनाएं होती हैं, पिता भी परेशान होते हैं, उन्हें भी रोना आता है।
पिता को अपने बच्चों के सामने अपनी भावनाएं दिखाने से डरना नहीं चाहिए। भावनाओं को जाहिर करना कमजोरी नहीं, बल्कि इमोशनल स्ट्रेंथ का सिंबल है। जो पिता अपने बच्चों से अपनी भावनाएं साझा करते हैं, उनके बच्चे भावनात्मक रूप से ज्यादा मजबूत बनते हैं।
यह इमोशनल सपोर्ट उन्हें ताकतवर बनाता है और उन्हें सिखाता है कि भावनाओं को व्यक्त करना सामान्य और स्वस्थ है। तो ऐसे में इस फादर्स डे, हमें अपने पिता को यह दिलासा देनी चाहिए कि वे जैसे हैं, वैसे ही प्यार किए जाते हैं और उनकी ह्यूमन वीकनेस भी उनके बच्चों के लिए सीखने का एक हिस्सा हो सकती हैं।
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