भोपाल. लोकसभा चुनाव के बीच सुप्रीम कोर्ट ( Supreme Court ) में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम ( EVM ) को लेकर सुनवाई चल रही है। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ( Association for Democratic Reforms एडीआर ) की ओर से दायर की गई याचिका में वोटिंग और वीवीपैट पर्चियों से मिलान की मांग की गई है। इस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम अपनी जिंदगी के छठे दशक में हैं। हम सभी जानते हैं कि जब बैलट पेपर्स से मतदान होता था, तब क्या समस्याएं हुआ करती थीं। हो सकता है आपको पता नहीं हो, लेकिन हम भूले नहीं हैं। याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ( Advocate Prashant Bhushan ) तर्क दे रहे थे कि कैसे अधिकांश यूरोपीय देश ईवीएम छोड़कर वापस कागज के मतपत्रों पर लौट आए हैं। अब इस केस पर 18 तारीख को सुनवाई होगी।
वीवीपैट की पर्ची अलग से मतपेटी में डाली जाए
प्रशांत भूषण ने कहा कि हम वापस पेपर बैलट्स ( मतपत्रों ) पर जा सकते हैं। दूसरा विकल्प ये है कि ईवीएम से वोटिंग के दौरान मतदाताओं को हाथ में वीवीपैट की पर्ची देना। ये भी हो सकता है कि स्लिप मशीन में गिर जाए और इसके बाद वोटर को ये स्लिप मिले। इसके बाद इसे बैलट बॉक्स में रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये VVPAT पर्चियां वोटर के हाथ में दी जानी चाहिए।
जर्मन में 6 करोड़ और भारत में 97 करोड़ वोटर, दोनों की तुलना कैसे संभव
जब प्रशांत भूषण ने जर्मनी का उदाहरण दिया, तो जस्टिस दीपांकर दत्ता ने पूछा कि जर्मनी की जनसंख्या कितनी है। प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि यह लगभग 6 करोड़ है, जबकि भारत में 50-60 करोड़ मतदाता हैं। जस्टिस खन्ना ने कहा कि देश में कुल रजिस्टर्ड मतदाताओं की संख्या 97 करोड़ है। हम सभी जानते हैं कि जब बैलट पेपर से वोटिंग होती थी तब क्या हुआ था। जब याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने कहा कि ईवीएम पर डाले गए वोटों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाना चाहिए। इस पर जस्टिस खन्ना ने जवाब दिया कि आप कहना चाहते हैं कि 60 करोड़ वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जानी चाहिए। सही? जस्टिस खन्ना ने कहा कि हां, समस्या तब उत्पन्न होती है जब मानवीय हस्तक्षेप होता है, इसी से समस्या बढ़ जाती है। अगर इंसानी दखल नहीं हो तो वोटिंग मशीन सटीक जवाब देगी। अगर आपके पास ईवीएम में छेड़छाड़ रोकने के लिए कोई सुझाव है, तो आप हमें दे सकते हैं।
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