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देश दुनिया न्यूज: सुप्रीम कोर्ट ने फैसले सुरक्षित रखने के बाद भी लंबे समय तक उन्हें नहीं सुनाए जाने की बढ़ती घटनाओं पर कड़ा रुख अपनाया है। कोर्ट ने देश के सभी हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से यह जानकारी मांगी है कि किन-किन मामलों में 31 जनवरी 2025 या उससे पहले फैसला सुरक्षित रख लिया गया, लेकिन अब तक सुनाया नहीं गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि भेजी जाने वाली रिपोर्ट में सिविल और क्रिमिनल मामलों को अलग-अलग दर्शाया जाए और यह भी साफ किया जाए कि मामला सिंगल जज के सामने था या डिवीजन बेंच के सामने। यह आदेश जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने तब दिया, जब चार दोषियों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर बताया कि झारखंड हाईकोर्ट में उनकी अपीलों पर वर्षों से फैसला सुरक्षित है लेकिन उन्हें आज तक कोई निर्णय नहीं मिला है।
दोषियों ने कहा-तीन साल से फैसला सुरक्षित
चारों दोषी जिनकी ओर से यह याचिका दायर की गई, झारखंड के रहने वाले हैं और उन पर बलात्कार व हत्या जैसे गंभीर आरोपों में मुकदमा चला था। निचली अदालतों ने उन्हें दोषी ठहराकर उम्रकैद की सजा सुनाई, जिसके खिलाफ उन्होंने झारखंड हाईकोर्ट में अपील की थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि उनकी अपीलों पर लगभग दो से तीन साल पहले सुनवाई पूरी हो चुकी थी और फैसला सुरक्षित कर लिया गया था, लेकिन इसके बाद से कोई आदेश नहीं आया। इनमें से एक दोषी पिछले 16 वर्षों से जेल में बंद है, जबकि अन्य तीन ने 11 से 14 साल तक की सजा भुगत ली है। फैसले की प्रतीक्षा के कारण वे पैरोल, छूट या नियमित जमानत के लिए भी याचिका नहीं लगा पा रहे हैं, जिससे उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता सीधे तौर पर प्रभावित हो रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से मांगा जवाब
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट से सवाल किया कि फैसलों में इतनी लंबी देरी क्यों हो रही है। याचिकाकर्ताओं की वकील ने बताया कि जैसे ही सुप्रीम कोर्ट ने इस विषय पर नोटिस भेजा, झारखंड हाईकोर्ट ने एक सप्ताह के भीतर 75 आपराधिक अपीलों का निपटारा कर दिया। हालांकि इन चार याचिकाकर्ताओं के मामलों में अभी भी फैसला नहीं आया है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने रजिस्ट्रार जनरल से उन सभी 75 मामलों की विस्तृत जानकारी मांगी है, जिनका हाल में फैसला सुरक्षित किया गया है, इस जानकारी में यह भी बताना होगा कि कब फैसला सुरक्षित किया गया था और कितने समय तक लंबित रहा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों की संख्या जानना इसलिए जरूरी है ताकि ये समझा जा सके कि क्या यह isolated घटना है या एक व्यापक समस्या।
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सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला दिया
याचिका में याचिकाकर्ताओं ने साफ तौर पर कहा है कि इतने लंबे समय तक फैसले न आने से उनका जीवन और स्वतंत्रता प्रभावित हो रही है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपने कई ऐतिहासिक फैसलों में कहा है कि शीघ्र सुनवाई और उस पर समय पर निर्णय आना, जीवन के अधिकार का ही हिस्सा है।
वर्ष 2001 में अनिल राय बनाम बिहार राज्य मामले में कोर्ट ने स्पष्ट निर्देश दिए थे कि हाईकोर्ट फैसले सुरक्षित करने के बाद उन्हें लंबित न रखें और जल्द सुनाएं। इसी तरह ‘हुसैनारा खातून’ और ‘अख्तरी बी’ जैसे मामलों में भी सुप्रीम कोर्ट कह चुका है कि न्याय में देरी, न्याय से इनकार के बराबर होती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर अपीलें लंबित हैं और फैसला सुरक्षित रखा गया है, तो दोषियों को जेल में बंद रखने का कोई संवैधानिक आधार नहीं बनता।
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सुप्रीम कोर्ट जारी कर सकता है दिशा-निर्देश
सुनवाई के अंत में जस्टिस सूर्यकांत ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि यह स्थिति बहुत चिंताजनक है और अगर जल्द ही न्यायिक व्यवस्था में इस संबंध में कोई सुधार नहीं हुआ, तो सुप्रीम कोर्ट खुद ही कुछ व्यापक दिशा-निर्देश जारी करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत यह सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में कोई भी अदालत फैसला सुरक्षित रखने के बाद उसे अनिश्चितकाल तक लटकाकर न रखे। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले में झारखंड हाईकोर्ट की रिपोर्ट और अन्य हाईकोर्ट से मिलने वाली जानकारी के आधार पर अगली सुनवाई में बड़ा आदेश दे सकता है।
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