उदन्त मार्तण्ड से एआई एंकर तक... हिन्दी पत्रकारिता के 199 बरस!

1826 में 'उदन्त मार्तण्ड' ने हिन्दी पत्रकारिता की शुरुआत की। आज यह क्षेत्र डिजिटल युग में प्रवेश कर चुका है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य सच बोलना और सच पहुंचाना है, जो आज भी अपरिवर्तित है।

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Ravi Kant Dixit
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सुबह की शुरुआत हो और अखबार हाथ में न हो तो लगता है कुछ अधूरा है। कभी पोहे के नीचे बिछाया जाता है, कभी पूरियों को समेटने के लिए मोड़ा जाता है, कभी खिड़की की धूप से बचाव करता है तो कभी किसी मासूम की पतंग बनता है, लेकिन इससे कहीं ज्यादा, अखबार वह आईना है जो हर सुबह हमें सच का चेहरा दिखाता है।

आज का दिन हिन्दी पत्रकारिता के लिए ऐतिहासिक है। ठीक 199 साल पहले 30 मई 1826 को कोलकाता की तपती दोपहरी में एक नई सुबह ने जन्म लिया था  'उदन्त मार्तण्ड' के रूप में। कानपुर के पंडित युगल किशोर शुक्ल द्वारा संपादित और प्रकाशित यह अखबार हिन्दी पत्रकारिता का शंखनाद था। उस समय अंग्रेजी और बांग्ला अखबार तो थे, पर हिन्दी भाषियों की आवाज को स्वर देने वाला कोई ठोस जरिया नहीं था। ‘उदन्त मार्तण्ड’ ने इस अभाव को इतिहास में बदल दिया।

तब से अब तक: स्याही से सैटेलाइट तक

‘उदन्त मार्तण्ड’ यूं तो साप्ताहिक अखबार था, लेकिन उसमें जो आग थी, उसने आने वाले दशकों की क्रांति का रास्ता दिखाया। फिर देश ने कई हिन्दी अखबारों को देखा, जिन्होंने अपनी पैनी नजर और पत्रकारिता से समाज और देश को दिशा दी।

पत्रकारिता का यह सफर ट्रेडल प्रेस से लेकर अब वेब प्रिंटिंग यूनिट्स, ऑटोमेटेड न्यूज रूम्स और डिजिटल मीडिया हब तक पहुंच गया है।पहले हाथ से कटी कापियों में खबरें लिखी जाती थीं, अब एआई की मदद से सेकंडों में फुल-पेज डिजाइन तैयार हो जाते हैं।

 इस दरमियान एक बात जरूर नहीं बदली और वो है पत्रकारिता का मूल उद्देश्य...सच बोलना, सच छापना और जनता तक सच पहुंचाना। द सूत्र भी इसी भाव के साथ सच्ची और सटीक खबरें अपने पाठकों और दर्शकों तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है।

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क्या कुछ नहीं देखा अखबारों ने

‘उदन्त मार्तण्ड’ के बाद पत्रकारिता सिर्फ सूचना देने तक सीमित नहीं रही। 1857 की क्रांति से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक, आपातकाल से किसान आंदोलनों तक हर संघर्ष में अखबारों ने मशाल का काम किया।समय के साथ पत्रकारिता और पाठक दोनों बदले हैं। 

पहले अखबार पढ़ा जाता था, अब स्क्रीन पर स्क्रॉल किया जाता है। ई पेपर पढ़े जाते हैं। पहले ‘पत्र’ थे, अब पुश नोटिफिकेशन हैं। फिर भी, हर सुबह जब कोई अखबार के पन्ने पलटता है, वह कहीं न कहीं ‘उदन्त मार्तण्ड’ की गूंज को सुनता है।

‘उदन्त मार्तण्ड’ ने यह भी सिखाया कि हिन्दी में विचार भी गूंज सकते हैं और विद्रोह भी। आज जब दुनिया ‘कंटेंट इज किंग’ की बात करती है, हिन्दी पत्रकारिता कह सकती है कि हम तो वह राजा हैं, जिसने जनता को उसकी भाषा में जगाया। आज हिन्दी अखबार सिर्फ गांवों में ही नहीं, गूगल न्यूज, इंस्टाग्राम रील्स और यूट्यूब शॉर्ट्स में भी अपनी जगह बना चुके हैं।

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हिन्दी पत्रकारिता का आज और कल

आज हिन्दी पत्रकारिता 200वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। यह एक नए युग की दस्तक है। डेटा पत्रकारिता, न्यूज स्टार्टअप, पॉडकास्टिंग और एआई सपोर्टेड रिपोर्टिंग, यह सब आज हो रहा है और आने वाले कल में कई बहुत कुछ होगा। जैसे अब न्यूज चैनल्स में एआई एंकर नजर आने लगे। इन सबके बीच हर नवाचार की जड़ें उसी तपती दोपहर में हैं, जब युगल किशोर शुक्ल ने कोलकाता से पहली बार यह घोषित किया था कि उदन्त मार्तण्ड हिन्दी भाषियों की पहली आवाज है।

इसी के साथ समाचार समाप्त... द सूत्र के सभी सुधि पाठकों एवं दर्शकों को हिन्दी पत्रकारिता दिवस की अनेकानेक बधाई एवं शुभकामनाएं। हम सिर्फ भगवान से डरते हैं।

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