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Photograph: (THESOOTR)
हिन्दी! यानी भारत की आत्मा। संस्कृति की पहचान। भावों की अभिव्यक्ति। सब कुछ समाया है हिन्दी में। आज हिन्दी दिवस तो नहीं है, पर वजह बड़ी खास है।
मध्यप्रदेश के मंत्री विजय शाह और उप मुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा के बयानों ने हिन्दी को फिर चर्चा में ला दिया है। विजय शाह ने भारतीय सेना की वीरांगना कर्नल सोफिया कुरैशी के खिलाफ विवादित टिप्पणी की, जिसमें उन्होंने कहा, "जिन्होंने हमारी बेटियों के सिंदूर उजाड़े थे, उन्हीं लोगों को उन्हीं की बहन भेजकर उनकी...।"
बाद में उन्होंने सफाई में कहा कि सोफिया उनकी सगी बहन से भी बढ़कर हैं। आप एक लाइन फिर ऊपर जाइए। विजय शाह ने 'उन्हीं की बहन' के स्थान पर कहा होता कि 'हमारी बहन भेजकर उनकी...' तो बहुत संभव है कि यह बखेड़ा खड़ा नहीं होता।
अब बात देवड़ा की... उन्होंने कहा, 'पूरा देश, देश की सेना और सैनिक प्रधानमंत्री मोदी के चरणों में नतमस्तक हैं।' उनकी भावना क्या थी, ये देवड़ा ही जानें। बाद में उन्होंने कहा कि बयान का अर्थ गलत निकाला गया। अब इसके मूल में भी वही है कि देवड़ा ने कहा होता कि पूरा देश सेना के आगे नतमस्तक है... तो बात कुछ और होती।
यहां गौर करने लायक बात यही है कि गलत वाक्य विन्यास, बिना पूर्ण विराम के जो बयान दिए, वे क्या माफी लायक हैं...ये जनता खुद तय करे? हम यहां किसी की पैरवी या तरफदारी नहीं कर रहे। हमारी सेना ने जो किया है, उसके आगे हम नतमस्तक थे, नतमस्तक हैं और सदैव नतमस्तक रहेंगे।
फिर मुद्दे पर लौटे तो दोनों भाजपा नेताओं के बयानों ने भले राजनीतिक विवाद को जन्म दिया, पर इनके मूल में साझा तत्व हिन्दी ही है। दोनों ने बाद में सफाई दी कि उनकी मंशा गलत नहीं थी। अब यहां सवाल है कि गलत शब्दों का चयन और सही वाक्य न बोलने की भूल ने उनके बयानों को गलत संदर्भ में पेश कर दिया।
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।
मतलब... अपनी भाषा की उन्नति के बिना समाज की तरक्की संभव नहीं और अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को मिटाना असंभव है। ...तो अभी शाह और देवड़ा के बयानों से जो पीड़ा जनता को हुई है, वास्तव में उसे मिटाना असंभव सा लगता है।
शाह और देवड़ा तो उदाहरण भर हैं। इस देश के नेताओं को समझना होगा कि हिन्दी भारत की आत्मा है। यह संवाद का माध्यम भर नहीं... यह संस्कृति, इतिहास और भावनाओं की वाहक है। भारत जैसे विविधताओं वाले देश में, जहां सैकड़ों भाषाएं और बोलियां बोली जाती हैं, इनमें हिन्दी ऐसी कड़ी है, जो हमें एकसूत्र में पिरोती है। यह उत्तर भारत की प्रमुख भाषा होने के साथ दक्षिण, पूरब और पश्चिम में भी छाप छोड़ती है। फिल्में, साहित्य की किताबें और रोजमर्रा की बातचीत... सब तो हिन्दी में होता है। अंग्रेजियत झाड़ने वाले भी सोचते तो हिन्दी में ही हैं।
आंकड़े कहते हैं, विश्व की तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के रूप में करीब 60 करोड़ लोग हिन्दी को मातृभाषा या दूसरी भाषा के रूप में बोलते हैं। यह भारत के संविधान में राजभाषा का दर्जा रखती है और मॉरीशस, फिजी, सूरीनाम जैसे देशों में भी जीवंत है।
हिन्दी का असल महत्व इसके भावनात्मक और सांस्कृतिक मूल्य में है। जब आप हिन्दी में चाय पियोगे...पूछते हैं तो उसमें जो अपनापन है, वह Would you like some tea...में कहां? हिन्दी में हर शब्द, हर वाक्य और हर मुहावरा इतना कुछ कह जाता है कि दूसरी भाषाओं को कई शब्द खर्च करने पड़ते हैं।
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बिन्दी और डंडा!
हिन्दी की खूबसूरती देवनागरी में छिपी है और इस लिपि की आत्मा है बिन्दी और डंडा। ये छोटे से दिखने वाले चिह्न हिन्दी के उच्चारण और अर्थ को पूरी तरह बदल सकते हैं। एक छोटी-सी बिन्दी गलत जगह हट जाए तो चिंता...चिता बन जाती है।
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नास (नाक) और नाश (विनाश): यानी उच्चारण नाक को विनाश में बदल देता है।
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ऐसे ही बिन्दी और बिंदी: इसमें एक गणितीय बिंदु है और दूसरी सौंदर्य का प्रतीक।
ऐसे ही डंडा (।) पूर्ण विराम का प्रतीक है, जो वाक्य को पूरा करता है। गलत जगह डंडा लग जाए या भूल जाए तो वाक्य का अर्थ भटक सकता है। जैसे खाना खा लिया और खाना खा लिया? में डंडा और प्रश्नवाचक चिह्न का फर्क पूरा मूड बदल देता है।
विजय शाह और जगदीश देवड़ा के बयानों में कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। हमारा मकसद उन्हें 'जमानत' देना कतई नहीं है। हां, ऐसा जरूर लगता है कि शाह के बयान में शब्दों का गलत चयन और संदर्भ ने उनकी बात को आपत्तिजनक बना दिया। हालांकि, वे पहले भी ऐसे बयान देते रहे हैं। अब हाल ही में उनके शब्दों ने कर्नल सोफिया कुरैशी की वीरता और भारतीय सेना की गरिमा पर सवाल उठाए, जिसके लिए मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उनके खिलाफ FIR दर्ज करने का आदेश दिया।
दूसरी ओर, देवड़ा के बयान में 'नतमस्तक' जैसे शब्द का प्रयोग और उसका संदर्भ अलग आया। यदि इन बयानों में शब्दों पर बिन्दी और डंडे की तरह ध्यान दिया जाता तो शायद विवाद टल सकता था। जैसा कि कहा जाता है, शब्दों का वजन तलवार से ज्यादा होता है, क्योंकि तीर कमान से और बात जुबान से निकलने के बाद वापस नहीं आते।
गलत उच्चारण की गफलत
हिन्दी में गलत उच्चारण की वजह से होने वाली गफलत कोई नई बात नहीं है। रोजमर्रा की जिंदगी में भी हम ऐसी गलतियां करते हैं, जो कभी हंसी का कारण बनती हैं, कभी गलतफहमी पैदा करती हैं। किसी ने बड़ी ही कमाल की बात कही है कि हिन्दी वह नदी है, जिसमें भारत की संस्कृति और सभ्यता की धारा बहती है। हिन्दी की मिठास ऐसी है कि यह हर दिल को छू लेती है, चाहे वह किसी भी प्रांत का हो। फिर ऐसे में हिन्दी बोलने वाले शाह और देवड़ा के बयानों से यही झलकता है कि...
ये हिंदी है प्यारे...बिन्दी भी संभल के...!
हिन्दी की गलतियां कुछ हुईं हों तो क्षमा करें...!
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी