कन्यादान पर कोर्ट की बड़ी टिप्पणी , कहा - हिंदू मैरिज एक्ट में शादी के लिए इस काम की जरूरत

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक आदेश में हिंदू मैरिज एक्ट के तहत होने वाली शादियों में कन्यादान पर बेहद जरूरी बात कही है ...

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Sandeep Kumar
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BHOPAL. भारतीय शादियां अपनी सदियों पुरानी रस्मों और परंपराओं के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं। ऐसी ही एक रस्म है कन्यादान। ये रस्म हिंदू विवाह ( Hindu marriage  ) का एक अहम हिस्सा है, लेकिन क्या ये जरूरी है? नहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट ( Allahabad High Court ) ने अपने एक आदेश में कहा है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी संपन्न कराने के लिए कन्यादान की रस्म जरूरी नहीं है। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने आशुतोष यादव की ओर से दायर एक रिवीजन याचिका पर सुनवाई करते हुए ये बात कही। जस्टिस सुभाष विद्यार्थी ने कहा कि शादी के लिए सिर्फ 'सप्तपदी' ( सात फेरे लेना ) ही जरूरी रस्म है।

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हाईकोर्ट ने भी खारिज की याचिका

आशुतोष ने अपनी याचिका में कहा था कि उसकी शादी 27 फरवरी 2015 को हिंदू रीति-रिवाजों से हुई थी। रीति-रिवाजों के हिसाब से कन्यादान जरूरी है। उसने मांग की थी कि उसकी शादी में कन्यादान हुआ या नहीं, इसका पता लगाने के लिए उसके ससुर को गवाही के लिए बुलाया जाए।  ताकि वो आकर बता सकें कि कन्यादान हुआ था या नहीं।  ट्रायल कोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। 

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क्या कहता है कानून?

हिंदू धर्म के शादी और तलाक से जुड़े मामले 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट में आते हैं. इस कानून की धारा 5 में उन शर्तों का जिक्र है, जिसके तहत शादी को वैलिड माना जाता है। सबसे जरूरी शर्त यही है कि शादी के वक्त लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की 18 साल से ज्यादा होनी चाहिए। दूसरी शर्त ये कि शादी के वक्त लड़का या लड़की में से कोई भी पहले से शादीशुदा नहीं होना चाहिए। दोनों की कोई रिश्तेदारी नहीं होनी चाहिए और दोनों सपिंड भी नहीं होने चाहिए। इस कानून की धारा 7(2) के मुताबिक, हिंदू शादी को संपन्न तब माना जाएगा, जब सप्तपदी यानी ( सात फेरे लेने  ) की रस्म पूरी हो जाएगी। 

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तलाक को लेकर ये हैं नियम

हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13 में तलाक का प्रावधान किया गया । इसमें तलाक लेने के कुछ आधार बताए गए हैं।
इसके मुताबिक, अगर पति या पत्नी में से कोई भी एक अपनी मर्जी से किसी तीसरे व्यक्ति के साथ शारीरिक संबंध बनाता हो तो इस आधार पर तलाक मांगा जा सकता है। इसके अलावा मानसिक या शारीरिक क्रूरता होती है या पति या पत्नी में से कोई एक मानसिक या संक्रामक यौन रोग से पीड़ित है तो भी तलाक लिया जा सकता है। इतना ही नहीं, अगर पति या पत्नी में से कोई एक घर-परिवार छोड़कर संन्यास ले लेता है या फिर शादी के बाद पति को बलात्कार का दोषी पाया जाता है, तो भी तलाक मांगा जा सकता है।

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सहमति से भी लिया जा सकता है तलाक

हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13B में आपसी सहमति से तलाक का जिक्र है। हालांकि, इस धारा के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए तभी आवेदन किया जा सकता है जब शादी को कम से कम एक साल हो गए हैं।  इसके अलावा, इस धारा में ये भी प्रावधान है कि फैमिली कोर्ट दोनों पक्षों को सुलह के लिए कम से कम 6 महीने का समय देता है और अगर फिर भी सुलह नहीं होती है तो तलाक हो जाता है।  पिछले साल अप्रैल में सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में साफ कर दिया था कि अगर पति-पत्नी के बीच रिश्ते इस कदर टूट चुके हैं कि ठीक होने की गुंजाइश न बची हो तो इस आधार पर वो तलाक की मंजूरी दे सकता है।

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